बिहार के भागलपुर जिले की सिविल कोर्ट में एक केस करीब 45 साल से फैसले का इंतजार कर रहा है। इस मामले में पुलिस और जिला प्रशासन ने इस कदर लापरवाही बरती कि कोर्ट को 28 साल से पोस्टमॉर्टम व फॉरेंसिक रिपोर्ट ही नहीं मिली। ऐसे में कोर्ट ने 18 सितंबर को 7 गवाहों और मौजूदा सबूतों के आधार पर 5 में से एक आरोपी को दोषी करार दे दिया। हालांकि, उसे बुधवार (25 सितंबर) को सजा सुनाई जाएगी।

पुलिस के मुताबिक, यह केस पोथिया निवासी सर्वे इंस्पेक्टर धनंजय चौधरी की हत्या से जुड़ा हुआ है। उन्हें 28 अप्रैल 1974 के दिन जमीन के विवाद में मार दिया गया था। प्रॉपर फॉलोअप नहीं होने के चलते यह केस करीब 17 साल तक लटका रहा और इसकी नियमित सुनवाई 1991 में शुरू हुई थी। इसके बाद केस दर्जनों कोर्ट में पहुंचा और पोस्टमॉर्टम व फॉरेंसिक रिपोर्ट की तलाश में अदालतों, पुलिस और स्वास्थ्य विभाग के बीच झूलता रहा।

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इस मामले में अब अडिशनल एवं डिस्ट्रिक्ट जज एमपी सिंह ने धनंजय चौधरी के चचेरे भाई चतुरानंद चौधरी (65) को दोषी करार दिया, लेकिन चतुरानंद के छोटे भाई रविंद्र चौधरी को संदेह के आधार पर बरी कर दिया गया। बता दें कि इस मामले में सनहौला पुलिस स्टेशन में चंद्र किशन चौधरी और उनके तीनों बेटों चतुरानंद, रविंद्र, मदन और एक अन्य रामविलास यादव के खिलाफ केस दर्ज किया था।

बताया जा रहा है कि कुछ साल पहले चंद्र किशन चौधरी व रामविलास यादव की मौत हो गई थी। मदन ने दावा किया था कि हत्या के वक्त वह नाबालिग था, जिसके बाद उसका केस रिव्यू के लिए जुवैनाइल कोर्ट भेज दिया गया था।

अडिशनल पब्लिक प्रोसिक्यूटर मोहम्मद रियाज हुसैन ने बताया, ‘‘मामला 45 साल तक लंबित रहने की वजह से कोर्ट ने दोनों रिपोर्ट के बिना ही फैसला सुनाने का निर्णय लिया।’’ पोथिया गांव में रहने वाले धनंजय चौधरी के बेटे सुभाष की पत्नी माधुरी देवी ने बताया कि यह केस हम सबके लिए मुसीबत बन गया। मेरे जेठ दिलीप चौधरी इस केस की देखरेख करते थे, लेकिन 3 साल पहले उनकी मौत हो गई थी।

जानकारी के मुताबिक, धनंजय चौधरी के भतीजे राजकिशोर चौधरी आरोपियों के डर से गांव से दूर रहते हैं। उन्होंने बताया कि चतुरानंद के परिवार ने इस केस को लड़ने के लिए 70 बीघा जमीन बेच दी थी, लेकिन पैसे के दम पर वे कानून को अपनी तरफ नहीं झुका सके।