अमौर विधानसभा सीट: बिहार में सियासी पारा चढ़ने लगा है। हर दल जनता के बीच जाकर अपना गुणगान करते नजर आ रहे हैं। क्या-बीजेपी, क्या जेडीयू या फिर कांग्रेस या राजद सभी आगामी विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज करने की जुगत में लग गए हैं। निर्वाचन आयोग भी तैयारी में है। ऐसा अनुमान है कि जल्द ही चुनाव की घोषणा भी हो सकती है। जहां राज्य की सभी प्रमुख दल दावेदारी में जुटे हैं वहीं हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM भी मजबूत स्थिति में नजर आ रही है। पिछले चुनाव में पार्टी ने बड़ा उलटफेर किया था।

पूर्णिया जिले का अमौर विधानसभा सीट कभी कांग्रेस की गढ़ हुआ करती थी। लेकिन पिछले चुनाव में एआईएमआईएम ने सभी समीकरणों को ध्वस्त करते हुए यहां से पहली बार जीत दर्ज की। हालांकि इस विधानसभा सीट से 1952 से लेकर आजतक केवल एक बार हिंदू उम्मीदवार ने जीत दर्ज की है। इस सीट से बीजेपी ने भी एक बार कमल खिलाया है। आइए समझते हैं पूरा समीकरण…

18 बार में केवल एक बार जीता हिंदू उम्मीदवार

सीमांचल में आने वाले अमौर विधानसभा सीट के समीकरण की बात करें तो स्थानीय मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक करीब 70 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है। इस वजह से यहां पर अब तक हुए कुल 18 विधानसभा चुनावों में से 17 बार मुस्लिम उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की है।

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साल 2020 में हुए विधानसभा चुनाव की बात करें तो यहां से एआईएमआईएम के अख्तरुल ईमान ने एकतरफा जीत दर्ज की थी। एआईएमआईएम के बिहार प्रदेश अध्यक्ष ईमान को करीब 94 हजार वोट मिले। जबकि जेडीयू के सबा जफर को महज 41 हजार वोट मिले, वहीं कांग्रेस के दिग्गज नेता अब्दुल जलील मस्तान को 31 हजार वोट मिले थे। ईमान इससे पहले आरजेडी से तीन बार के विधायक रह चुके थे।

बीजेपी के सबा जफर को पहली बार मिली जीत

साल 2015 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में यहां पर कांग्रेस को जीत मिली थी। उस चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर अब्दुल जलील मस्तान छठी बार विधायक बने थे। इस दौरान जीत के बाद महागठबंधन की नीतीश सरकार में उनको मंत्री भी बनाया गया था। इस चुनाव में मस्तान को करीब 1 लाख वोट मिले, जबकि बीजेपी के सबा जफर को 48 हजार वोट से संतोष करना पड़ा था।

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वहीं साल 2010 में हुए विधानसभा चुनाव में यहां से पहली बार एनडीए को जीत मिली और बीजेपी उम्मीदवार सबा जफर ने जीत दर्ज की। इस चुनाव में सबा ने कांग्रेस उम्मीदवार मस्तान को करीब 18 हजार वोटों से हराया था।