बिहार विधानसभा चुनाव के लिए महागठबंधन में शामिल दलों के बीच अभी तक सीट शेयरिंग पर बात नहीं बन पाई है। बीते दिनों दिल्ली में कांग्रेस पार्टी के मुख्यालय पर एक प्रेस वार्ता में बिहार में कांग्रेस पार्टी के इंचार्ज कृष्णा अल्लावारु ने कहा था कि हर राज्य में ‘अच्छी’ और ‘बुरी’ सीटें होती हैं। उन्होंने यह भी कहा था, “और ऐसा नहीं होना चाहिए कि एक पार्टी को सारी अच्छी सीटें मिलें और दूसरी को बुरी सीटें। सीट बंटवारे में अच्छी और बुरी सीटों के बीच संतुलन होना चाहिए।”
कांग्रेस जिन सीटों को “अच्छी” मान रही है, वो वे सीटें हैं जहां पार्टी 2020 के विधानसभा चुनावों में या तो जीत गई थी या मामूली अंतर से हारी थी।
कांग्रेस पार्टी के एक नेता ने कहा, “हमारा दावा उन सभी 19 सीटों पर होगा जो कांग्रेस ने 2020 में जीती थीं। और उन सीटों पर भी जहां पार्टी के उम्मीदवार लगभग 5,000 वोटों के अंतर से हारे थे। मौजूदा माहौल में, जब राहुल गांधी की मतदाता अधिकार यात्रा ने पूरे बिहार में इंडिया ब्लॉक कार्यकर्ताओं में जोश भर दिया है, हमें यकीन है कि हम सहयोगियों के सहयोग से ऐसी सीटें जीत सकते हैं।”
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उन्होंने आगे कहा, “सीटों का बंटवारा इस तरह नहीं होना चाहिए कि कांग्रेस को सिर्फ वही सीटें मिलें जहां राजद और उसके सहयोगी दल पिछले चुनावों में जीत नहीं पाए थे। और ऐसा भी नहीं होना चाहिए कि एक ही पार्टी को वे सारी सीटें मिल जाएं, जहां सामाजिक समीकरण महागठबंधन के पक्ष में हों।”
कांग्रेस के लिए कौनसी सीटें अच्छी?
बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में कांग्रेस पार्टी ने 70 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा था, हालांकि उसे सफलता सिर्फ 19 सीटों पर मिली थी। इससे पहले साल 2015 के बिहार विधानसभा में कांग्रेस पार्टी ने 41 सीटों पर चुनाव लड़ 27 सीटों पर जीत हासिल की थी। इस बार भी कांग्रेस पार्टी 70 विधानसभा सीटों की मांग कर रही है, खासकर राहुल गांधी की हालिया यात्रा के बाद।
सूत्रों ने बताया कि साल 2020 में जिन 70 सीटों पर कांग्रेस ने चुनाव लड़ा था, उनमें से 27 उसके लिए ‘अच्छी’ हैं। इसमें 19 सीटें जीती गईं और आठ सीटें ऐसी हैं जहां पार्टी लगभग 5,000 वोटों से हारी।
कांग्रेस के इस ‘गणित’ के हिसाब से चलें तो राजद के लिए बिहार में 92 ‘अच्छी सीटें’ हैं। यह महागठबंधन के दलों में सबसे ज्यादा हैं। पिछले बिहार विधानसभा चुनाव में राजद ने 144 सीटों पर किस्मत आजमाई थी, इनमें से उसे 75 पर सफलता मिली। इसके अलावा वह 17 सीटों पर 5000 वोटों से कम वोटों से हारी थी।
सीपीआई (एम-एल) (एल) का प्रदर्शन कैसा रहा था?
बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में सीपीआई (एम-एल) (एल) ने 19 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़, 12 पर सफलता हासिल की थी। वह दो सीटें पांच हजार से कम वोटों से हारी। वह पांच और सीटों पर चुनाव लड़ी थी लेकिन वहां हार जीत का फैसला पांच हजार से ज्यादा वोटों से हुआ था। महागठबंधन में शामिल अन्य वामपंथी दलों सीपीआई (एम) और सीपीआई ने दो-दो सीटें जीतीं और एक-एक सीट 5,000 से कम वोटों से हारी।
महागठबंधन में पिछली बार सीटों की अदला-बदली कितनी सफल रही?
बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में कांग्रेस को 2015 के चुनावों में लड़ी गई 41 सीटों में से 32 सीटें मिलीं। इन 32 सीटों में से कांग्रेस ने 2020 में 11 सीटें जीतीं। हालांकि 2020 में पार्टी को मिली 38 अतिरिक्त सीटों में से, उसे केवल आठ सीटें ही मिलीं। कांग्रेस ने 2015 में जो चार सीटें जीती थीं, उन्हें 2020 में उसके सहयोगियों – राजद, सीपीआई, सीपीआई (एम), सीपीआई (एम-एल) (एल) – को आवंटित कर दी गईं।
राजद ने 2020 में अपने सहयोगियों के लिए 10 सीटें छोड़ीं थीं। इन 10 सीटों में से सीपीआई (एम-एल) (एल) ने पांच पर चुनाव लड़ा और तीन पर जीत हासिल की, सीपीआई ने तीन पर चुनाव लड़ा और दो पर जीत हासिल की और कांग्रेस ने दो पर चुनाव लड़ा और एक पर जीत हासिल की।
इस बार नए दलों को मिल सकती है सीट
इस बार महागठबंधन में हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली झामुमो और पूर्व केंद्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस की राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (आरएलजेपी) भी शामिल है। इन दोलों के साथ महागठबंधन में कुल घटक आठ हो गए हैं – जिसमें मौजूदा सहयोगी राजद, कांग्रेस, वामपंथी दल और मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) शामिल हैं।
बिहार में कांग्रेस का काम देख रहे पार्टी के सचिव शाहनवाज़ आलम ने कहा, “हमारा महागठबंधन मजबूत है, हमारा अंतिम लक्ष्य एनडीए को हराना है। कभी-कभी ऐसे लक्ष्यों को हासिल करने के लिए समझौते करने पड़ते हैं। यह कोई मुद्दा नहीं है।”
राजद के एक वरिष्ठ नेता ने सहयोगी दलों के बीच चल रही बातचीत का हवाला देते हुए सीट बंटवारे पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। पार्टी के एक अन्य नेता ने कहा, “2020 में राजद ने अपनी कई मौजूदा सीटें सहयोगियों को दे दीं, जिससे उन सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे राजद नेता नाराज हो गए और गठबंधन उम्मीदवार के खिलाफ काम करने लगे, जिससे उनकी हार हुई। अगर राजद ने 2020 में अपनी सभी मौजूदा सीटों पर चुनाव लड़ा होता, तो महागठबंधन ज्यादा सीटें जीतता।”
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