Bihar Final Voter List: बिहार विधानसभा चुनावों से पहले और राज्य में तीन महीने तक चली एसआईआर प्रक्रिया के बाद चुनाव आयोग ने मंगलवार को बिहार के लिए अपनी फाइनल वोटर लिस्ट पब्लिश कर दी है। इसमें 7.42 करोड़ वोटर्स के नाम शामिल है। 2003 के बाद रजिस्टर्ड हुए वोटर्स को नागरिकता सहित अपनी पात्रता साबित करने के लिए चुनाव आयोग द्वारा अनिवार्य किए गए 11 दस्तावेजों में से एक पेश करना जरूरी था।
पटना के दीघा विधानसभा क्षेत्र के चितकोहरा इलाके में रहने वाले 40 साल के ड्राइवर मुकेश कुमार ने मंगलवार को इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “भगवान का शुक्र है कि मेरा नाम फाइनल वोटर लिस्ट में रह गया। आधार कार्ड से ही काम बन गया।” चूंकि, मुकेश का नाम 2003 की वोटर लिस्ट से गायब था। हालांकि, 2003 में उनकी उम्र 18 साल थी, लेकिन वे उस साल वोटर्स के तौर पर नामांकित नहीं हो सके थे। उन्होंने इस साल अगस्त में इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत के दौरान बताया था कि 2004 के लोकसभा चुनावों से पहले मतदाता के रूप में नामांकन कराने और उसके बाद से नियमित रूप से मतदान करने के बावजूद उन्हें आईडी प्रूफ पेश करना जरूरी था।
फिर एक चौंकाने वाली बात हुई। मुकेश को पता चला कि उसके पास जो आईडी प्रूफ थे जैसे कि आधार कार्ड और ड्राइविंग लाइसेंस, वे उन 11 दस्तावेजों में शामिल नहीं थे जिन्हें चुनाव आयोग ने एसआईआर प्रक्रिया के लिए अनिवार्य किया था। उन्होंने कहा, “हालांकि मुझे ड्राफ्ट रोल में जगह मिलने की खुशी थी, लेकिन जब मैंने चुनाव आयोग द्वारा जारी किए गए डॉक्यूमेंट्स की लिस्ट देखी तो मेरा दिल बैठ गया। लगभग 15-20 लोगों को फोन करने के बाद, मैंने बूथ लेवल ऑफिसर से मदद लेने का फैसला किया।”
मुकेश ने याद करते हुए कहा कि एक बार वे गांव के स्कूल गए थे, जहां बीएलओ ने एक अस्थायी कार्यालय बनाया था और पूछा था कि क्या उनके पिता की बैंक पासबुक प्रमाण पत्र के तौर पर काम करेगी क्योंकि उसमें उनका घर का पता लिखा था। जब उन्हें बताया गया कि इनमें से कोई भी दस्तावेज पर्याप्त नहीं होगा, तो निराश मुकेश को सलाह दी गई कि वे निवास प्रमाण पत्र के लिए आवेदन करें।
Bihar Voter List 2025: बिहार चुनाव के लिए जारी हो गई फाइनल वोटर लिस्ट
मैं बीएलओ से मिलता रहा- मुकेश
मुकेश ने कहा, “बीएलओ ने सुझाव दिया कि मैं आवासीय प्रमाण पत्र के लिए आवेदन करूं। हालांकि, इस दस्तावेज के लिए आवेदकों की भारी भीड़ ने मुझे अयोग्य घोषित कर दिया।” आखिरकार, वह अपने आधार कार्ड और पिता की पासबुक की फोटोकॉपी लेकर बीएलओ के पास लौटा। उन्होंने कहा, “मेरे पास सहायक डॉक्यूमेंट्स के तौर पर बस यही थे। बीएलओ ने ये फोटोकॉपी रख लीं, लेकिन कोई आश्वासन नहीं दिया। मैं उनसे नियमित अंतराल पर मिलता रहा और अपडेट के लिए फोन करता रहा। फिर, एक दिन उन्होंने मुझसे कहा, ‘चिंता मत करो अब। सुप्रीम कोर्ट ने आधार कार्ड को अनुमति दे दी है।'”
मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकता मुझ पर क्या गुजरी- मुकेश
मुकेश ने कहा, “2004 में मतदाता के रूप में नामांकन के बाद से मैंने सभी लोकसभा और विधानसभा चुनावों में मतदान किया है। मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकता कि पिछले दो महीनों में मुझ पर क्या गुजरी। सुप्रीम कोर्ट का शुक्र है कि मैं अब भी मतदान कर सकता हूं। अगर SIR की शुरुआत से ही इसकी (पहचान के प्रमाण के रूप में आधार कार्ड की) अनुमति होती, तो मेरे जैसे हजारों लोग, जिनके पास पहचान के प्रमाण के रूप में सिर्फ आधार कार्ड है, इस मानसिक पीड़ा से बच जाते।”
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