Written by Sujit Bisoyi
धान की कटाई का मौसम पूरा होने के बाद काम नहीं पाने के चलते कालाहांडी जिले के जयपटना ब्लॉक के कटार मांझी, बुडू मांझी और भिकारी मांझी रोजी-रोटी कमाने के लिए जनवरी के बीच में काफी दूर बेंगलुरु चले गए थे। वे तीनों रविवार को अपने परिवारों के पास वापस आ गए। वे जितने गरीब हैं, उनकी कहानी उतनी ही कठिनाई, संघर्ष और शोषण से भरी हुई है।
ठेकेदार के झांसे में 12 मजदूर गए थे बेंगलुरु
तीनों मजदूरों ने बेंगलुरु से कालाहांडी तक की 1,000 किलोमीटर से ज्यादा की दूरी को सात दिनों में पैदल तय किया। रास्ते में मिलने वाले लोगों से जो भी मदद मिली उसी पर किसी तरह से जीवित रहे। दरअसल, ओडिशा के जयपटना ब्लॉक के अंतगर्त जमचुआ और टिंगुपखान गांवों के तीनों मजदूर एक ठेकेदार के संपर्क में आए और वे 12 सदस्यों वाले समूह का हिस्सा होकर बेंगलुरु चले गए। वहां उन्होंने निर्माण कार्यों के मजदूर के रूप में काम किया।
ठेकेदार ने नहीं दी मजदूरी, पैसा मांगने पर मारपीट
कोरापुट के पोट्टांगी में किसी के द्वारा शूट किए गए वीडियो में कटार मांझी ने कहा, “हम दो महीने पहले वहां (बेंगलुरु) कुछ पैसे कमाने और अपने परिवार की मदद करने गए थे। एक महीने की मेहनत के बाद भी पैसा नहीं मिला। जब हमने पैसे मांगे तो ठेकेदार ने हमारे साथ मारपीट की। तब हमने वहां से घर लौटने का फैसला किया।” कटार, बुडू और भिकारी ने 26 मार्च को अपने घर की यात्रा शुरू की। जेब में पैसे नहीं होने के कारण उन्होंने विशाखापत्तनम को अपने शुरुआती मंजिल के रूप में निर्धारित किया। फिर वहां से आंध्र प्रदेश के विजयनगरम में चले गए।
बुरी हालत पर तरस खाकर लोगों ने दिया खाना
द इंडियन एक्सप्रेस से फोन पर बात करते हुए एक पहाड़ी गांव टिंगुपखान के रहने वाले बुडू मांझी ने कहा कि वे ज्यादातर समय पैदल चलते थे। बीच में उन्हें कुछ और सहयात्री भी मिले थे। उनकी बुरी हालत पर तरस खाकर कुछ अच्छे लोगों ने उन्हें रास्ते में भोजन कराया था। जब तीनों ने कोरापुट में पोट्टांगी की ओर से ओडिशा में प्रवेश किया तो कुछ स्थानीय लोगों ने उनकी कुछ पैसों से मदद की और उन्हें पड़ोसी नबरंगपुर जिले के पापड़ाहांडी के लिए एक बस में चढ़ने में मदद की। इसके बाद तीनों व्यक्ति पापड़ाहांडी से पहाड़ियों के रास्ते अपने घरों को चले गए। एक हफ्ते की कठिन यात्रा के बाद आखिरकार रविवार को तीनों अपने-अपने घर पहुंच गए।
ठेकेदार और कंस्ट्रकशन फर्म को पहचान नहीं सकते बुडू
40 साल की उम्र पार कर चुके बुडू मांझी ने कहा, “अपने परिवारों को छोड़कर कौन दूर जाना चाहता है, लेकिन हमारे पास कोई विकल्प नहीं है। हमारे गांव में हमारी जमीन नहीं है। हालांकि हमारे पास महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत जॉब कार्ड हैं, लेकिन हमारे लिए नियमित रूप से नौकरी पाना मुश्किल है।” बुडू की पत्नी और तीन बच्चे हैं। उनकी सबसे बड़ी बेटी शादीशुदा है। बुडू मजदूरों के उस ठेकेदार को भी नहीं पहचान सकता जो उन्हें बेंगलुरु ले गया था। उसके पास उस निर्माण फर्म का कोई विवरण नहीं है जिसके लिए उन्होंने बेंगलुरु में काम किया था।
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क्या बोले बीडीओ और टिंगुपखान गांव के वार्ड मेंबर
250 की आबादी वाले टिंगुपखान गांव के वार्ड सदस्य देबेंद्र मांझी के मुताबिक गांव में 9 लाख रुपये की आखिरी मनरेगा परियोजना पिछले साल जुलाई में आई थी और यह सितंबर तक चली। देबेंद्र ने कहा, “चूंकि लोगों को कृषि के मौसम के बाद यहां पर्याप्त रोजगार नहीं मिलता है, इसलिए वे रोजगार की तलाश में बड़े शहरों की ओर पलायन करने को मजबूर हैं।” जयपटना के प्रखंड विकास अधिकारी (BDO) स्निग्धरानी प्रधान ने संपर्क करने पर कहा कि प्रशासन लोगों के बीच ठेकेदारों और काम देने वालों के प्रवास के समय उनके विवरण साझा करने के लिए जागरूकता पैदा कर रहा है ताकि मदद दी जा सके।
ओडिशा के श्रम आयुक्त ने नहीं दिया कोई जवाब
ओडिशा के श्रम आयुक्त एन थिरुमाला नाइक ने इस मुद्दे पर जवाब मांगे जाने पर कोई जवाब नहीं दिया। आपदा प्रवासन को कम करने के लिए ओडिशा सरकार ने बलांगीर, बरगढ़, कालाहांडी और नुआपाड़ा में 20 कमजोर ब्लॉकों की पहचान की है। हालांकि, जयपटना उन 20 ब्लॉकों का हिस्सा नहीं है। राज्य सरकार मनरेगा के तहत इन ब्लॉकों में अतिरिक्त कार्य दिवसों का प्रावधान करती है।