Bareilly Riots 2010: बरेली में साल 2010 में सांप्रदायिक दंगे हुए थे। इसको लेकर को बरेली की एक कोर्ट ने आईपीसी की धाराओं के तहत गंभीर आरोप लगाते हुए और बरेलवी संप्रदाय के मौलवी मौलाना तौकीर रजा खान को 2010 की सांप्रदायिक हिंसा का “मास्टरमाइंड” बताया। बरेली की एक कोर्ट ने मंगलवार को अपने आदेश में कहा कि सत्ता के पदों पर बैठे लोगों को “धार्मिक व्यक्ति” होना चाहिए। इस दौरान कोर्ट ने उदाहरण के तौर पर सीएम योगी आदित्यनाथ का हवाला दिया।
कोर्ट ने यह भी कहा कि एक धार्मिक व्यक्ति का जीवन “त्याग और समर्पण” का है, न कि विलासिता में जीने का। कोर्ट ने यह टिप्पणी करते हुए यह कहा कि कैसे रज़ा एक धार्मिक व्यक्ति होने और बरेली में दरगाह आला हजरत के एक बेहद प्रतिष्ठित परिवार से संबंधित होने के बावजूद समुदाय के लोगों को भड़काने, कानून और व्यवस्था को बिगाड़ने में शामिल थे।
2010 के बरेली दंगा मामले की सुनवाई अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश रवि कुमार दिवाकर द्वारा की जा रही है। जिन्होंने 2022 में वाराणसी में तैनात रहते हुए पूजा के अधिकार की मांग करने वाली पांच महिलाओं द्वारा दायर एक मुकदमे पर ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के कोर्ट की निगरानी में सर्वे करने का आदेश दिया था।
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि यदि कोई धार्मिक व्यक्ति राज्य का नेतृत्व करता है, तो परिणाम सामने आते हैं, जैसा कि दार्शनिक प्लेटो ने अपनी पुस्तक ‘Philosopher King’ की अवधारणा में उल्लेख किया है। कोर्ट ने कहा कि उल्लेखनीय है कि वर्तमान समय में न्याय शब्द का प्रयोग कानूनी अर्थ में किया जाता है, जबकि प्लेटो के समय न्याय शब्द का प्रयोग धर्म के अर्थ में किया जाता था।
कोर्ट ने कहा कि इसलिए, “शक्ति का उपयोग करने वालों को सत्ता का प्रमुख एक धार्मिक व्यक्ति होना चाहिए, क्योंकि एक धार्मिक व्यक्ति का जीवन आनंद का नहीं, बल्कि त्याग और समर्पण का होता है। उदाहरण के लिए, सिद्ध पीठ गोरखनाथ मंदिर के पीठाधीश्वर महंत बाबा योगी आदित्य नाथ, जो वर्तमान में हमारे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं। उन्होंने उपरोक्त अवधारणा को सच साबित किया है।
कोर्ट ने कहा कि अगर मौलाना तौकीर रजा खान जैसा कोई धार्मिक व्यक्ति अपने समुदाय को भड़काकर उपरोक्त अवधारणा के विपरीत गतिविधियों में शामिल होता है, तो इससे कानून और व्यवस्था में व्यवधान पैदा हो सकता है, जिसका उदाहरण 2010 के दंगे हैं।
मंगलवार को पारित अपने आदेश में बरेली कोर्ट ने मामले में गवाहों के बयान दर्ज करते हुए तौकीर रजा को तलब करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि मौलाना तौकीर रजा खान ने मुस्लिम समुदाय की सभा में भाषण दिया, जिससे बाद में हिंसा हुई।
बरेली के सरकारी वकील दिगंबर पटेल ने कहा, “कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए मामले में मौलाना तौकीर रजा को तलब किया और अगली सुनवाई 11 मार्च को होनी है।”
कोर्ट ने यह भी कहा कि जांच में पर्याप्त सबूत होने के बावजूद मौलाना तौकीर रजा खान का नाम आरोप पत्र में शामिल नहीं किया गया था, जो पुलिस अधिकारियों, प्रशासनिक अधिकारियों और सरकारी स्तर के अधिकारियों द्वारा अपने कर्तव्यों को निभाने में विफलता का सुझाव देता है। पटेल ने कहा कि कोर्ट ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि नियमों का पालन नहीं किया गया और कथित तौर पर दंगे भड़काने वाले मौलवी का जानबूझकर समर्थन किया गया।
इसके अतिरिक्त कोर्ट ने अपने आदेश में इस बात पर प्रकाश डाला कि उस समय के प्रमुख अधिकारियों, जिनमें बरेली के मंडलायुक्त, जिला मजिस्ट्रेट, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, पुलिस उपमहानिरीक्षक, पुलिस महानिरीक्षक शामिल थे। उन्होंने कानूनी तौर पर और सरकार के इशारे पर काम नहीं किया। मौलाना तौकीर रज़ा का समर्थन किया। पटेल ने कहा, कोर्ट ने निर्देश दिया कि उसके आदेश की एक प्रति आवश्यक कार्रवाई के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भेजी जानी चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि आला हजरत के परिवार से ताल्लुक रखने वाले मौलाना तौकीर रजा खान एक धार्मिक नेता और आईएमसी के अध्यक्ष के रूप में अपनी स्थिति के कारण मुस्लिम समाज में महत्वपूर्ण प्रभाव रखते हैं। कोर्ट ने ज्ञानवापी मामले के दौरान मिले एक धमकी भरे पत्र का जिक्र किया करते हुए समाज में व्याप्त भय के माहौल पर भी चर्चा की। इस मामले में जस्टिस को कथित “आपत्तिजनक टिप्पणियों” वाला एक कथित पत्र भेजने के लिए अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था।
कोर्ट ने उनके परिवार के सदस्यों की चिंताओं पर प्रकाश डाला, जिनमें लखनऊ में उनकी मां और शाहजहांपुर में सिविल जज छोटा भाई भी शामिल था। कोर्ट ने कहा कि उनके और उनके परिवार में डर का माहौल इस तरह बना हुआ है कि इसे शब्दों में बयां करना संभव नहीं है। परिवार में हर कोई एक-दूसरे की सुरक्षा को लेकर चिंतित है। घर से निकलने से पहले कई बार सोचना पड़ता है।
बता दें, मार्च 2010 में बारावफात के जुलूस के रास्ते को लेकर हुए विवाद में बरेली में दंगे भड़क उठे। कई लोग घायल हो गए और वाहन एवं दुकानें क्षतिग्रस्त हो गईं। शहर में कर्फ्यू भी लगा दिया गया। पुलिस ने मामले में तौकीर रजा खान समेत अन्य को गिरफ्तार किया था। बाद में पुलिस ने चार्जशीट में तौकीर रजा खान का नाम नहीं डाला।
अभियोजन पक्ष के अनुसार, प्रेमनगर थाने में 178 लोगों के खिलाफ नामजद और कई अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था। पुलिस ने 197 लोगों के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किया। पटेल ने कहा कि कोर्ट में चल रहे मुकदमे में 13 गवाहों के बयान दर्ज किए हैं। 49 आरोपियों का मुकदमा फिलहाल बरेली कोर्ट में चल रहा है।