कावेरी नदी के पानी को लेकर चल रहे विवाद के बीच कन्‍नड़ समर्थकों की हिंसा के बाद बेंगलुरु के आसपास सुरक्षा बढ़ा दी गई है। प्रदर्शनकारियों ने कई वाहनों को आग के हवाले कर दिया और सरकारी दफ्तरों को नुकसान पहुंचाया। मेट्रो की सेवा भी सस्‍पेंड कर दी गई। सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक को 15 हजार क्‍यूसेक पानी तमिलनाडु को देने का आदेश दिया था। हालांकि सोमवार को आदेश में सुधार करते हुए कहा कि 12 हजार क्‍यूसेक पानी छोड़ना होगा। बावजूद इसके हिंसा और प्रदर्शन में कमी नहीं आई है। लेकिन कावेरी जल विवाद आखिर है क्‍या, जिसकी वजह से दक्षिण के दो राज्‍यों में मनमुटाव है। साथ ही क्‍यों कर्नाटक के लोग इसका विरोध कर रहे हैं।

कावेरी नदी कर्नाटक, तमिलनाडु के बड़े हिस्‍से में बहती है। साथ ही यह केरल और पुदुचेरी से भी गुजरती है। इन राज्‍यों में पानी की हिस्‍सेदारी को लेकर झगड़ा है। शुरुआत में कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच इसको लेकर विवाद था। बाद में केरल और पुदुचेरी भी इसमें कूद पड़े। विवाद की जड़ 1892 से शुरू होती है। उस समय मद्रास प्रेसीडेंसी और मैसूर के बीच मध्‍यस्‍थता के लिए एग्रीमेंट हुआ। लेकिन इससे नए विवाद उठ खड़े हुए। बाद में भारत सरकार की देखरेख में समझौते के प्रयास हुए। 1924 में दूसरा एग्रीमेंट साइन हुआ।

आजादी के बाद के प्रयास: भारत की आजादी के बाद केरल और पुदुचेरी ने भी कावेरी के पानी पर हक जताया। 1970 में एक फैक्‍ट फाइडिंग कमिटी का गठन किया गया। 1972 में इस कमिटी ने रिपोर्ट सबमिट की। 1976 में राज्‍य एक समझौते पर सहमत हुए। हालांकि तमिलनाडु में नई सरकार ने एग्रीमेंट को मानने से इनकार कर दिया, इससे नए सिरे से विवाद शुरू हो गया। 1986 में तमिलनाडु सरकार ने केंद्र सरकार से अंतरराज्‍यीय जल विवाद कानून के तहत एक ट्रिब्‍यूनल का गठन करने को कहा। हालांकि सरकार ने ऐसा नहीं किया लेकिन बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इस पर संज्ञान लेते हुए ट्रिब्‍यूनल के गठन का आदेश दिया तो 1990 में इसे गठित किया गया। 2 जून 1990 को कावेरी जल ट्रिब्‍यूनल का गठन हुआ।

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16 साल तक चली सुनवाई और अं‍तरिम आदेश के बाद ट्रिब्‍यूनल ने 2007 में आदेश सुनाया। इसमें 419 थाउजेंड मिलियन क्‍यूबिक फीट पानी तमिलनाडु, 270 थाउजेंड मिलियन क्‍यूबिक फीट पानी कर्नाटक, 30 थाउजेंड मिलियन क्‍यूबिक फीट पानी केरल और सात थाउजेंड मिलियन क्‍यूबिक फीट पानी पुदुचेरी को देने का आदेश दिया गया। लेकिन कर्नाटक और तमिलनाडु दोनों ने रिव्‍यू पीटिशन दाखिल कर दी। 2012 में तत्‍कालीन पीएम मनमोहन सिंह ने कर्नाटक को रोजाना नौ हजार क्‍यूसेक पानी छोड़ने का निर्देश दिया। कर्नाटक ने ऐसा नहीं किया तो उसे उच्‍चतम न्‍यायालय से फटकार सुननी पड़ी। इसके बाद कर्नाटक ने बिना शर्त माफी मांगी और पानी छोड़ा। हालांकि इस दौरान भी काफी विरोध-प्रदर्शन हुए। कर्नाटक ने बाद में पानी छोड़ना बंद कर दिया। इस पर तमिलनाडु की सीएम जयललिता ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने 12 हजार क्‍यूसेक पानी छोड़ने का आदेश दिया।

विरोध-प्रदर्शन क्‍यों: कन्‍नड़ समर्थकों का कहना है कि कर्नाटक के पास खुद की जरूरतों के लिए ही पानी नहीं है। उनका कहना है कि सिंचाई और पीने के लिए कम पानी है। ऐसे में पानी नहीं छोड़ा जाना चाहिए।