महाराष्ट्र में जाति पंचायतों के मनमाने और असहिष्णुता भरे फैसलों के कारण कमजोर तबके के लोगों को सामाजिक बहिष्कार का दंश झेलना पड़ रहा है। साल भर में ऐसी 140 घटनाएं सामने आई हैं। सरकार अब इसके खिलाफ सात से 23 दिसंबर तक नागपुर में चलनेवाले शीतकालीन सत्र में सामाजिक बहिष्कार प्रतिबंधक विधेयक 2015 पास करने जा रही है। पंचायतों के असहिष्णु फैसले झेल रहे लोगों को इस प्रगतिशील कानून का बेसब्री से इंतजार है, ताकि कानून के डंडे के डर से पंचायतें सहिष्णु बनने पर मजबूर हों।

अगर यह कानून बनता है तो महाराष्ट्र देश का पहला ऐसा राज्य होगा जिसमें सामाजिक बहिष्कार के पंचायती फैसलों के खिलाफ सजा का प्रावधान होगा। सात साल की सजा और पांच लाख के दंड की प्रस्तावित कानून में व्यवस्था की गई है। यही नहीं अगर बहिष्कृत परिवार आरोपियों को माफ करता है तो आरोपियों के लिए सामाजिक सजा भी रखी गई है। इसके तहत गांव के रास्तों की सफाई जैसे काम करने होंगे।

सूबे में लगभग 400 जाति पंचायतें हैं जिनके असहिष्णुता भरे मनमाने फैसलों ने कई परिवारों का जीना दूभर किया है। श्रीवर्धन तहसील के भरडखोल (जिला रायगढ़) गांव के 85 साल के नाथूराम घडशी और उनकी पत्नी लक्ष्मी पिछले सात-आठ सालों से सामाजिक बहिष्कार का सामना कर रहे हैं। नाथूराम की जमीन हथियाने के लिए उनके बेटे ने ही उन्हें बिरादरी बाहर करवाने में अहम भूमिका निभाई। नाथूराम के नाती-पोतों से गांव के लोग बातचीत नहीं करते। वे अपने रिश्तेदारों के घर आ-जा नहीं सकते। इस सामाजिक उपेक्षा से नाथूराम के पोते अमोल को इतनी ठेस लगी कि वह मानसिक तौर पर बीमार हो गया। पोती अर्चना की शादी में गांव का कोई व्यक्ति शामिल नहीं हुआ न किसी तरह की मदद की। नाथूराम के परिवार पर ढाए जा रहे जुल्म को इसी बात से समझा जा सकता है कि गणेशोत्सव के दौरान उसके परिवार को गणेश प्रतिमा के दर्शन करने से भी दूर रखा गया।

नाथूराम के तीन बेटों में से एक राजेश, पिता की पूरी जमीन अपने नाम करवाना चाहता था। पिता का कहना था कि राजेश की शादी के लिए उसने जो कर्ज लिया, वह राजेश चुका दे, तो जमीन में उसे हिस्सा मिल सकता है। राजेश ने अपने प्रभावशाली ससुर की मदद और जाति पंचायत का सहारा लिया। पंचायत ने राजेश का हिस्सा देने का फैसला सुनाया, जो नाथूराम ने नहीं माना। इसी के बाद नाथूराम और उसके परिवार का गांव में हुक्का-पानी बंद कर दिया गया। गांव में ऐसे उदाहरण भी हैं जिनमें 15 सालों से लोगों को जाति पंचायत ने बहिष्कृत कर रखा है। गांव के लोगों ने नाथूराम की बहू पर 20 हजार रुपए का दंड तक लगाया, जिसे परिवार को भरने पर मजबूर होना पड़ा। गांव पंचायतों के मनमाने फैसलों से तंग आकर नाथूराम के बड़े बेटे हरिश्चंद्र को गांव तक छोड़ना पड़ा। नाथूराम को पूरे मामले की शिकायत मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस समेत संबंधित अधिकारियों से करनी पड़ी।

रायगढ़ जिले के ही राहुल येलंगे का हुक्का पानी उसके गांव येलंगेवाडी के ताकतवर लोगों ने बंद कर दिया। येलंगेवाडी मुंबई-गोवा हाइवे पर बसा छोटा-सा गांव है, जिसमें बमुश्किल दर्जन भर घर भी नहीं हैं। राहुल 2012 में माउंट एवरेस्ट की चोटी पर पहुंचने का इतिहास बना कर गांव का नाम रोशन कर चुका है। राहुल ने कानून की पढ़ाई कर चुकी पुणे की पूर्णिमा से अंतरजातीय शादी की है। गांव के दकियानूसी समाज ने राहुल को सिर्फ इसलिए गांव से बहिष्कृत कर दिया क्योंकि उसकी पत्नी जींस पहनती थी। पूर्णिमा को गांव में ताने मारे गए। राहुल ने गांव में दूध डेयरी खोली तो एक दिन अज्ञात लोगों ने उसके मवेशियों के तबेले में आग लगा दी। राहुल का गांव में जीना दूभर कर हो गया। पुलिस में राहुल ने शिकायत की थी। लेकिन पुलिस उसके तबेले को जलने से नहीं बचा पाई।

दाभोलखाडीय भोई समाज के मुंबई में लगभग चार सौ लोग ऐसे हैं जिनका हुक्का पानी उनके गांवों में सिर्फ इसलिए बंद कर दिया गया क्योंकि उन्होंने बिरादरी के बाहर शादियां की। बिरादरी में वे तभी शामिल हो सकते हैं, जब जाति पंचायत उन्हें चरित्र प्रमाणपत्र दे। भोई समाज के अंतर्गत दाभोलखाड़ीय भोई समाज दापोली, चिपलूण, दाभोल आदि गांवों में फैला है। परंपरागत रूप से मछली बेचकर गुजारा करने वाले समाज के लोग मुंबई समेत बड़े शहरों में स्थाई हो गए। आधुनिक समाज के रीति-रिवाजों में ढल कर वे नौकरी-धंधा करने लगे और कई लोगों ने जाति के बाहर शादियां भी कीं।

यही शादियां उन्हें समाज से बहिष्कृत किए हुए है और गांववाले और रिश्तेदार बिरादरी बाहर शादियां करनेवालों को अपने सामाजिक उत्सवों और समारोहों में शामिल नहीं कर रहे हैं। रोहा तहसील की एक महिला तो बहिष्कार के कारण आत्महत्या कर चुकी है। रायगढ़ जिले के हरिहरेश्वर में संतोष और संदेश जाधव चुनाव में खड़े हुए तो उन्हें बिरादरी बाहर कर दिया गया। एडवोकेटक असीम सरोदे ने इसके खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी।

अलीबाग जिले में जाति बहिष्कार को खत्म करने के लिए एडवोकेट असीम सरोदे और एडवोकेट रमा सरोदे ने सामाजिक बहिष्कार और जाति पंचायत (प्रतिबंध और संरक्षण) कानून 2015 का न सिर्फ प्रारूप तैयार किया, बल्कि सरकार के सुपुर्द भी किया। इस प्रस्तावित प्रारूप में जाति बहिष्कार को दंडनीय अपराध की श्रेणी में रखते हुए पांच लाख रुपए जुर्माना और तीन से सात साल की सजा की सिफारिश की है। जाति पंचायत में हुक्का-पानी बंद होनेवाले परिवार को जुर्माने की रकम देने की अनुशंसा की गई है।