असम की कुल 116 सीटों में से पहले और दूसरे चरण में क्रमश: 47 व 39 सीटों पर वोट पड़ चुके हैं। जिन 40 सीटों पर मंगलवार को वोट डाले गए, वे पश्चिम के निचले असम व अन्य क्षेत्रों में हैं। वर्ष 2016 में भाजपा व असम गण परिषद (एजीपी) को इन 40 सीटों में से 15 पर जीत हासिल हुई थी।
निचले असम में तीसरे व अंतिम चरण में 12 जिलों की 40 सीटों पर मतदान हुआ। इनमें बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद (बीटीसी) के क्षेत्र में आने वाले आठ विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। भाजपा के वरिष्ठ नेता व राज्य के वित्तमंत्री हिमंत बिस्व सरमा और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रंजीत कुमार दास की किस्मत का फैसला भी इसी चरण में ईवीएफ में कैद हुआ है। तीसरे चरण में हिमंत से पांचवी बार चुनाव मैदान में है।
आखिरी दौर में हिमंत बिस्व सरमा और बीटीसी के अध्यक्ष हग्रामा मोहिलारी के बीच जबानी तल्खी छायी रही। हग्रामा के लिए धमकी भरी भाषा के इस्तेमाल पर हिमंत के चुनाव प्रचार करने पर रोक लगी थी। जिन 40 सीटों पर मंगलवार को वोट पड़े, वे पश्चिमी असम व अन्य क्षेत्रों में हैं। वर्ष 2016 में भाजपा व असम गण परिषद (एजीपी) को इन 40 सीटों में से 15 पर जीत हासिल हुई थी।
तब अलग-अलग चुनाव लड़े कांग्रेस, बोडो पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ) और एआइयूडीएफ को 25 सीट मिली थी। इस बार ये सभी कांग्रेस की अगुवाई वाले महागठबंधन का हिस्सा है। इस दौर में बिस्व सरमा और बीपीएफ के मुखिया हग्रामा मोहिलारी के बीच तनातनी चरम पर पहुंच गई। मोहिलारी बीटीसी के अध्यक्ष हैं। बीटीसी में 11 विधानसभा क्षेत्र आते हैं। इनमें से तीन पर पहले चरण में वोट पड़े चुके हैं। तामुलपुर से बीपीएफ प्रत्याशी को कुछ दिन पहले ही भाजपा में शामिल करने से बिस्व सरमा और मोहिलारी की तल्खी और बढ़ गई है।
हग्रामा मोहिलारी का बीपीएफ तरुण गोगोई सरकार में प्रमुख घटक दल था। हग्रामा और भाजपा के बीच खटास की बड़ी वजह तीसरी ोडो संधि रही। इस संधि में आॅल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन और अन्य बोड़ो संगठनों के साथ ही हग्रामा ने भी हस्ताक्षर किए थे, लेकिन उन्हें अपने प्रतिद्वंदियों, आॅल बोडोलैंड स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष प्रमोद बोडो और पूर्व सांसद व यूपीपीएल के नेता उरखाव गौरा ब्रह्म को ज्यादा तरजीह दिए जाने के पीछे हिमंत का हाथ लगा। उग्रवादी गुट बोडो लिब्रेशन टाइगर्स के प्रमुख रहे मोहिलारी ने 2003 में 2005 के चुनाव में बीटीसी की सत्ता संभाली थी।
आखिरी दौर के मतदान के पहले बन गए नए सियासी समीकरण
भाजपा को गैर बोडो और गैर मुस्लिम मतदाताओं से उम्मीद हैं। इन दोनों की आबादी करीब 50 फीसद है। 2020 में बीटीसी चुनाव में भाजपा के नौ उम्मीदवारों में से छह गैर बोडो थे। बीपीएफ ने 2016 के विधानसभा चुनाव में 12 सीटें जीती थीं। उसके सामने पुराना प्रदर्शन दोहराने की चुनौती है। यदि वह सात-आठ सीटें जीतती है तो भी यह भाजपा गठबंधन के लिए चुनौती भरा होगा।
चुनाव में हग्रामा ने हिमंत आउट और हग्रामा इन का नारा दिया। भाजपा ने गैर बोडो और गैर मुस्लिम मतदाताओं पर ध्यान केंद्रित किया। साथ ही यूपीपीएल के जरिए बोडो मतदाताओं को भी साधने की कोशिश की। बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद में बोडो समुदाय की जनसंख्या 30 फीसद से कुछ अधिक हैं। वे खुद को मूल निवासी मानते हैं।
यहां असमिया व बांग्लाभाषी क्रमश: 25 व 20 फीसद हैं। बीटीसी क्षेत्र में कोच राजवंशियों की भी अच्छी आबादी है। ये बांग्ला व असमिया बोलते हैं। वहीं, मुसलिम समुदाय के असमिया, बांग्ला और हिंदी बोलने वालों की जनसंख्या कुल मिलाकर 19 फीसद है। चाय बागान समुदाय के लोग करीब पांच-छह फीसद है।