एक ही समय में कोरोनावायरस महामारी और बाढ़ का सामना कर रहे बिहार के लिए यह समय काफी मुश्किल साबित हो रहा है। राज्य में इसी साल के अंत तक विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में सत्ताधारी दल भी सब कुछ किनारे कर राजनीतिक तैयारियों में जुट गया है। इसी के मद्देनजर बिहार के मुख्यमंत्री व जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार की वर्चुअल रैली का ऐलान हुआ है। बताया गया है कि नीतीश 6 सितंबर को कार्यकर्ताओं को संबोधित करेंगे। दो दिन पहले ही एनडीए में जेडीयू की सहयोगी भाजपा के अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी वर्चुअल रैली का आयोजन किया था। हालांकि, उनके मुकाबले नीतीश की रैली को काफी बड़ा वर्चुअल इवेंट माना जा रहा है।

महामारी-बाढ़ के साथ राजनीतिक मतभेद भी भुलाए गए?
गौरतलब है कि कुछ दिनों पहले तक जेडीयू का विरोध कर रहे एनडीए के तीसरे घटक दल- लोजपा की बगावत भी कमजोर पड़ी है। लोजपा नेता चिराग पासवान अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को एकजुट होकर चुनाव में लग जाने की अपील कर रहे हैं। लोजपा प्रदेश उपाध्यक्ष संगीता तिवारी बताती है कि हम चुनाव की तैयारी में लग गए है। यानी एनडीए में फिलहाल सभी राजनीतिक मतभेदों को भी भुला दिया गया है।

विपक्ष भी सब कुछ भुलाकर चुनाव की तैयारियों में
राजद नेता तेजस्वी यादव पार्टी के वरिष्ठ नेता रघुवंश नारायण सिंह के नाराज होने के बावजूद अपने सिटिंग और संभावित उम्मीदवारों के बीच मंथन में जुटे हैं। वे रैलियों का कार्यक्रम तय करने के साथ-साथ सत्ता दलों पर हमला करने से नहीं चूक रहे। दूसरी तरफ कांग्रेस भी 31 अगस्त से अपना औपचारिक चुनाव अभियान का श्रीगणेश करने की घोषणा की है।

पक्ष हो या विपक्ष, सीटों की खींचतान भी जारी
हालांकि सीटों के तालमेल का खुलासा अभी तक साफ नहीं है। आपसी खींचतान जारी है। इससे एनडीए और महागठबंधन कोई भी अछूता नहीं है। भाजपा नेता अभय वर्मन का तर्क है कि भागलपुर और बांका संसदीय सीट जदयू को गईं और वे इस पर जीते भी। लेकिन अब विधानसभा की सभी सीटें भाजपा के हिस्से होनी चाहिए। इसी तरह का तर्क बिहार की कुछ अन्य सीटों पर भी है। असल में 2015 चुनाव में जदयू महागठबंधन के साथ था। इस वजह से इस दफा कौन-कौन सी सीटें किसके खाते में जाएंगी? इस पर असमंजस बरकरार है। यही हाल महागठबंधन का है। जीतनराम मांझी का दल हम भी तय नहीं कर पाया कि वह किसके साथ जाएगा। बीते चुनाव में दो सीट जीतने वाली लोजपा की मांग भी बढ़ी है। पार्टी ने अपने लिए लोकसभा सीटों के औसत में ही विधानसभा सीटों की मांग की है। इसके अलावा अन्य कई पेंच फंसे है।

चुनाव आयोग ने कोरोना-बाढ़ के बावजूद परखीं तैयारियां
इधर चुनाव आयोग ने बिहार के सभी डीएम से वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए चुनाव तैयारियों का जायजा लिया है। प्रवासी मजदूरों के नाम मतदाता सूचियों में जोड़ने की हिदायत दी है। आयोग ने कोरोना की वजह से नए दिशानिर्देश के तहत तैयारी करने को कहा है। मगर लोगों को अब भी शंका है कि चुनाव हुए तो महामारी फैलेगी। सुरक्षित दूरी का दायरा अभी लाकडाउन में ही टूटा है तो आगे कायम कैसे रहेगा? यह सवाल वरीय वकील हरिप्रसाद शर्मा सरीखे पढ़े-लिखे लोग कर रहे हैं। 25 अगस्त से राज्य में बसें चलाने का आदेश परिवहन सचिव संजय अग्रवाल ने दिया है। शायद चुनाव की तैयारी का यह भी संकेत है। मगर कहीं कोई नियम का पालन नहीं कर रहा।

गौरतलब है कि बिहार के 16 जिलों की लाखों की आबादी बाढ़ से घिरी है। कोरोना संक्रमण से राज्य के सभी 38 जिले प्रभावित है। सवा लाख से ज्यादा लोग संक्रमित हुए है। 644 मौतें हो चुकी है। यह अलग बात है कि 83.74 फीसदी यानी 104531 लोग स्वस्थ भी हुए है। इतनी आपदा और विपदा के बीच बिहार पहला राज्य बनेगा जहां चुनावी बिगुल फूंकने की तैयारियां चल रही है।

एक महीने पहले से चल रही थी कार्यक्रम की तैयारी
सत्ताधारी पार्टी जदयू डिजिटल मोर्चे पर अपने चुनावी रण का बिगुल फूंकने के लिए तैयार है। खास बात यह है कि नीतीश की इस वर्चुअल रैली की रूपरेखा 7 जुलाई से ही तैयार की जा रही थी। 7 से 16 जुलाई तक विभिन्न प्रकोष्ठों के साथ बैठक की गई। 18-30 जुलाई तक पार्टी के चार वरीय नेता बशिष्ठ नारायण सिंह, आरसीपी सिंह, बिजेंद्र यादव और सांसद राजीव रंजन 243 विधानसभा सीटों के कार्यकर्ताओं के साथ वर्चुअल संवाद में लगे थे।