राम मंदिर भूमि पूजन से पहले भाजपा नेता और राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने मोदी सरकार से खास अपील की है। उन्होंने गुरुवार (23 जुलाई, 2020) को ट्वीट कर कहा कि प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी को राष्ट्र को आश्वस्त करना चाहिए कि जब राम मंदिर का निर्माण हो जाएगा तब उनकी सरकार इसका अधिग्रहन नहीं करेगी। ना ही मोदी मंदिर का प्रबंध देखने वाले बोर्ड के अध्यक्ष बनेंगे।

भाजपा नेता ने ट्वीट में आगे कहा कि भाजपा ने लगातार सरकारों द्वारा मंदिरों के नियंत्रण का विरोध किया है। मगर क्या उत्तराखंड सरकार ने चार धाम और 51 अन्य मंदिरों पर अधिग्रहण नहीं किया है? क्या ये भाजपा की सहमति के साथ हुआ है? भाजपा सांसद ने ट्वीट ऐसे समय पर किया है जब राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास के सदस्य स्वामी गोविंद देवगिरि महाराज ने कहा कि पीएम मोदी अयोध्या में प्रस्तावित राम मंदिर के पांच अगस्त को भूमि पूजन समारोह में शामिल होंगे।

स्वामी देवगिरि ने कहा कि पीएम राम मंदिर के भूमि पूजन के लिए पांच अगस्त को अयोध्या आने के लिए सहमत हो गए हैं। वह वहां करीब डेढ़ घंटे रूकेंगे। वह पहले हनुमान गढ़ी जाएंगे, फिर भूमि पूजन समारोह में शामिल होने से पहले राम लला के दर्शन करेंगे। उन्होंने कहा कि इससे पहले ये अटकलें थी कि वह (मोदी) डिजिटल माध्यम से समारोह में शामिल होंगे, लेकिन मैंने आग्रह किया कि यह व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर किया जाना चाहिए।

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इधर भाजपा नेता के ट्वीट पर सोशल मीडिया यूजर्स भी जमकर प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं। ट्विटर यूजर फजलुर रहमान @fazlur31 लिखते हैं, ‘मंदिर या हॉस्पिटल? पहली प्राथमिकता कौन सी है?’ कुमार @Secular12345 लिखते हैं, ‘भाजपा वाले हिंदू मंदिरों और हिंदू भगवानों को अपना निजी संपत्ति समझते हैं। भाजपा अगर धर्म की राजनीति नहीं करेगी तो उन्हें वोट कौन देगा।’ श्रीनिवास राव @SrinivasaChava लिखते हैं, ‘मंदिर उस ट्रस्ट के अधीन होना चाहिए जो सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर बना है। वित्तीय रिकॉर्ड को सही तरीके से ऑडिट किया जाना चाहिए और ट्रस्टियों को दानकर्ताओं या भक्तों द्वारा चुना जाना चाहिए।’

इसी तरह छवि @c4chhavi लिखती हैं, ‘मैं खुद इस मुद्दे पर पीएमओ की प्रतिक्रिया का इंतजार कर रही हूं। हम हिंदुओं को यह जानने की जरुरत है कि हम अपने विश्वास और धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिए कहां खड़े हैं।’ तनराज @Tanraj58 लिखते हैं, ‘उत्तराखंड में 51 मंदिरों का अधिग्रहण भाजपा को दोहरे चरित्र का नमूना प्रदर्शित करता है। शीर्ष नेतृत्व संवेदनशील मुद्दों पर चुप रहता है और राज्य आगे बढ़ते हैं। क्या मोदी और शाह की सहमति के बिना भाजपा शासित राज्यों में कुछ भी हो सकता है?’