मनोज मिश्र
दिल्ली की आम आदमी पार्टी (आप) की 49 दिन पुरानी सरकार के लिए आने वाले दिन ज्यादा चुनौती देने वाले होंगे। आप में आपसी कलह खत्म होने का नाम नहीं ले रही है और हर रोज इसके बढ़ने ही खबर आ रही है। वहीं दिल्ली के परंपरागत दल कांग्रेस और भाजपा हार के सदमे से उबरने के लिए आप की सरकार को घेरने में लग गए हैं। आप का अगला लक्ष्य 2017 का दिल्ली नगर निगमों का चुनाव है। यह पिछले दिनों के घटनाक्रम से साबित हो गया है। वैसे तो सरकार की पूरी बागडोर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को दे रखी है। खुद केजरीवाल पिछली बार से उलट किसी भी मुद्दे पर बयान देने से बच रहे हैं।
लेकिन नगर निगम विवाद पर वे विधानसभा में खूब बोले और निगमों को भंग करने से लेकर उनके अधिग्रहण तक की चेतावनी दे डाली। इतना ही नहीं निगमों को पैसा देने के बहाने केंद्र सरकार पर सीधा हमला किया। पूरा बजट बनाने का समय नहीं मिल पाने के कारण 24 मार्च को विधानसभा में लेखानुदान पेश किया गया। उसी दौरान बताया गया कि राजस्व वसूली कम होने से नए वित्तीय वर्ष के बजट के लिए योजना राशि बढ़ाने के बजाय कम की गई है। राजस्व वसूली में साढ़े चार हजार करोड़ कमी आने का ठीकरा सरकार ने राष्ट्रपति शासन के माध्यम से केंद्र पर फोड़ने की कोशिश की।
इस बार कई मायने में आप की सरकार पिछली सरकार से अलग दिख रही है। पिछली बार पार्टी बनाने के महज कुछ महीनों में 28 सीटों के साथ कांग्रेस से बिना मांगे समर्थन से 28 दिसंबर, 2013 को सरकार बनी थी। तब सरकार के रंग-ढंग से ही लगने लगा था कि यह ज्यादा दिन नहीं चलने वाली। इसलिए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल फटाफट घोषणाएं करते गए। हर चीज में उन्होंने अपनी छाप छोड़ी और जनलोकपाल पेश नहीं करने देने के नाम पर 14 फरवरी को इस्तीफा दे दिया।
इस बार 70 में से 67 सीटों के प्रचंड बहुमत से 14 फरवरी को बनी सरकार के सामने स्थिरता का संकट नहीं है। इसलिए सरकार आराम-आराम से काम कर रही है। 400 यूनिट तक बिजली के दाम आधा करने और बीस हजार लीटर तक हर महीने खर्च करने वालों को पानी फ्री देने जैसी घोषणा तो 25 फरवरी को कर दी गई लेकिन बाकी पर विचार विमर्श के बाद फैसला किया जा रहा है।
24 मार्च को लेखानुदान पेश करके दो दिन की विधानसभा की बैठक में उसे पास करवा दिया गया। जून के आखिर में पूरा बजट आने पर साफ होगा कि सरकार और क्या-क्या करना चाहती है। इस बीच अनधिकृत कालोनियों में रजिस्ट्री शुरू करवाने, तैनाती के दौरान शहीद होने पर सुरक्षा कर्मी के परिवार को एक करोड़ रुपए का मुआवजा, भ्रष्टाचार निरोधक शाखा (एंटी करप्शन ब्यूरो) का बजट दो गुणा करके उनके पदों की संख्या बढ़ाने जैसे अनेक फैसले किए गए।
लेकिन पार्टी में शुरू हुई कलह बढ़ती ही जा रही है। पिछली सरकार जनलोकपाल न पेश कर पाने के चलते गई थी। इस बार उसकी अभी तक चर्चा न होने, अपने जनलोक पाल को हटाने के अलावा भ्रष्टाचार रोकने के लिए चलाए जाने वाला स्टिंग आप के ही खिलाफ सबसे घातक हथियार बनकर उभरे हैं। विपक्षी इसे हथियार तो बना ही रहे हैं, इसकी वजह से पार्टी में भी लगातार बिखराव बढ़ रहा है। पार्टी के दो कद्दावर नेताओं योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण को निशाना बना कर पहले उन्हें पार्टी की राजनीतिक मामलों की समिति (पीएसी) से चार मार्च की राष्ट्रीय कार्यकारणी की बैठक में खुला मतदान कराकर हटाया गया।
फिर इन दोनों के साथ प्रो आनंद कुमार और अजीत झा को 28 मार्च को राष्ट्रीय परिषद की बैठक में पार्टी की कार्यकारणी से निकाला गया। इस पर पार्टी दो फाड़ होती दिख रही है। खुलेआम आरोप लग रहा है। यह संदेश चला गया कि जो भी केजरीवाल पर सवाल उठाएगा, उसे बाहर कर दिया जाएगा। दोनों तरफ से आरोप प्रत्यारोप लगने का सिलसिला जारी है। पार्टी के तोप माने जाने वाले आंतरिक लोकपाल एडमिरल (रिटायर) रामदास को हटाने के मामले ने तो हालात ज्यादा खराब कर दिए। दोनों गुट दिल्ली से बाहर समर्थन जुटाने में लगे हैं। 14 अप्रैल को विरोधी गुट के सम्मेलन पर सभी की नजर है।
इस झगड़े में जबरन विधायकों और सांसदों को शामिल किया गया। चार सांसदों के दल के नेता धर्मवीर गांधी का योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण का समर्थन करना पार्टी के ही लोगों को नागवार गुजरा। पीएसी की बैठक के बाद ही दोनों नेताओं को पार्टी से निकालने के लिए विधायकों से हस्ताक्षर अभियान चलवाया गया। उसकी अगुआई करने वाले करावल नगर के विधायक कपिल मिश्र को दिल्ली जल बोर्ड का उपाध्यक्ष बना दिया गया।
पर अब आप के नेताओं का प्रयास है कि पार्टी के झगड़े का असर सरकार पर न हो। सरकार ने कई अच्छे प्रयास शुरू किए हैं। दिल्ली पुलिस से टकराव के बजाय सहयोग की कोशिश की गई है। खुद केजरीवाल पुलिस मुख्यालय जाकर पुलिस के कामकाज की सराहना कर आए। जबकि पिछली बार पुलिस के खिलाफ हर रोज बोलते थे और धरने पर भी बैठे थे। पिछली बार केजरीवाल समेत सारे नेता हर रोज तरह-तरह के बयान देते थे। इस बार तो दिल्ली सचिवालय में पत्रकारों के प्रवेश पर पाबंदी लगा दी गई है। जब मंत्री चाहते हैं तभी परिसर में पत्रकार प्रवेश कर पाते हैं।
अलबत्ता दिल्ली विद्युत नियामक आयोग (डीईआरसी) के अध्यक्ष रहे विजेंद्र सिंह से बिजली पर निजीकरण से लेकर अब तक के काम पर श्वेत पत्र तैयार करवाने या ईमानदार माने जाने वाले संजीव चतुर्वेदी को दिल्ली सरकार में लाने और चुनावी वादों को लागू करने के लिए आयोग बनाने जैसे कई फैसलों की सराहना की गई। 16 फरवरी को मंत्रिमंडल की पहली बैठक में तोड़फोड़ पर रोक लगाने और अनधिकृत कालोनियों में रजिस्ट्री शुरू करवाने जैसे कई कठिन काम करने की घोषणा की है। अभी तक तो यही लग रहा है कि सरकार की नीयत सही है। कम अधिकारों और कम बजट में ज्यादा काम करने की चुनौती है और उससे भी बड़ी चुनौती पार्टी के अंदरूनी झगड़ों की छाया सरकार पर न पड़े।
इस बार जल्दबाजी में नहीं:
इस बार 67 सीटें जीतकर आने वाली आप सरकार के सामने स्थिरता का संकट नहीं है। इसलिए सरकार आराम-आराम से काम कर रही है। 400 यूनिट तक बिजली के दाम आधा करने और बीस हजार लीटर तक हर महीने खर्च करने वालों को पानी मुफ्त देने जैसी घोषणा तो 25 फरवरी को कर दी गई लेकिन बाकी पर सोच विचार कर फैसला किया जा रहा है। बयानबाजियां बंद हैं और आप के नेताओं का प्रयास है कि पार्टी के झगड़े का असर सरकार पर न हो।