केरल के नवनियुक्त राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान का कानपुर से बेहद करीबी नाता है। कहा जा सकता है कि कानपुर की जनता से सीधे तौर पर उनका उनकी पत्नी का जुड़ाव रहा है। इसका जीता जागता उदाहरण यह है कि 1980 में कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़े। आरिफ मोहम्मद खान ने नगर की सीट से कांग्रेस का परचम लहराया था, तो वही पत्नी रेशमा आरिफ आर्य नगर से जनता दल की टिकट पर विधायक भी चुनी गई। इसके पीछे की मुख्य वजह एक और भी थी क्योंकि आरिफ मोहम्मद खान कानपुर लोकसभा से 1980 में सांसद बने। उनका ससुराल भी कानपुर लोकसभा में आती था। इस नाते कानपुर के लोग उन्हें बेहद सम्मान देते थे तो वहीं पत्नी कानपुर की बिटिया थी जिसके चलते आर्य नगर की सीट पर जनता दल की टिकट से परचम लहराने में रेशमा आरिफ कामयाब रही थी, लेकिन सबसे खास बात आरिफ मोहम्मद खान में यह थी।

1980 में सांसद चुने जाने के बाद सबसे कम उम्र के सांसदों में शुमार थे। वह कानपुर की जनता के बीच कुछ ऐसे रहते थे जैसे कि एक आम आदमी उन्हें इस बात पर कतई किसी प्रकार का घमंड नहीं था कि वह कानपुर नगर से सांसद हैं। वह आम आदमी की तरह कानपुर से बेहद अच्छी तरीके से वाकिफ थे लोग तो यह तक कहते हैं कभी-कभी आरिफ मोहम्मद खान पैदल ही अपनी लोकसभा का भ्रमण करने निकल पड़ते थे। नुक्कड़ व चौराहों पर खड़े होकर लोगों से उनकी समस्या जानने का प्रयास किया करते थे। इसी का नतीजा था कि वह जनता के बेहद करीब हो गए थे और यहां का आम आदमी उनसे छोटी छोटी बातें तक बताने लगा था चाहे वह जन समस्या हो या फिर बेटा है बिटिया की शादी ऐसी कोई बात नहीं होती थी जिस बात को यहां का आदमी अपने सांसद जी को ना बताता हो कम समय में आरिफ मोहम्मद खान इतने लोकप्रिय हो गए थे कि कानपुर में विपक्षी पार्टियां उनकी लोकप्रियता से घबराने लगी थी।

हिंदू मुस्लिम एकता की मिसाल थे-

अगर बुजुर्ग कांग्रेसियों की माने तो आरिफ मोहम्मद खान अपने आप में हिंदू मुस्लिम एकता की एक मिसाल थे। कानपुर नगर सीट से सांसद चुने जाने के बाद उन्होंने अपने आप को कभी एक वर्ग विशेष का नहीं माना वह सिर्फ और सिर्फ या कहते थे सभी मेरे भाई हैं और मैं उनका सांसद हूं। वह कहते हैं कि जो मेरे पास आएगा मैं उसके लिए तत्पर हूं। उन्होंने अपने संसदीय कार्यकाल में अपने ऊपर किसी भी प्रकार के आरोप नहीं लगने दिए जिसमें कहा जा सके आरिफ मोहम्मद खान सिर्फ और सिर्फ एक ही वर्ग विशेष के बारे में सोचते हैं। चाहे वह हिंदू आबादी वाला क्षेत्र रहा हूं या फिर मुस्लिम आबादी वाला उन्होंने विकास सभी क्षेत्रों में बराबर बराबर कराया, जिसके चलते हिंदू हो या मुस्लिम सभी अपने सांसद आरिफ मोहम्मद खान को बेहद प्यार करते थे। चाहे ईद हो या दिवाली आरिफ मोहम्मद खान सभी त्योहारों में बराबर हिस्सा लेते थे. इसी के चलते वह कानपुर में हिंदू मुस्लिम एकता की मिसाल बन गए थे।

कानपुर को दलहन संस्थान का दिया था तोहफा-

आरिफ मोहम्मद खान कानपुर नगर से सांसद होने के बाद सिर्फ और सिर्फ कानपुर के विकास के बारे में सोचते थे, जिसके चलते उन्हीं की मेहनत थी कि कानपुर को दलहन संस्थान का तोहफा मिला था। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शंकर दत्त बताते हैं, आरिफ साहब बेहद ही सुलझे हुए इंसान थे। वह जब भी पार्टी कार्यालय में बैठते थे, तो कानपुर की विकास को लेकर चर्चा किया करते थे। उस दौरान दलहन संस्थान केंद्र की बात छिड़ गई और इससे क्या फायदे हो सकते हैं इस बारे में बातचीत हुई बस फिर क्या था दलहन संस्थान को कानपुर लाना है इसको लेकर आरिफ मोहम्मद खान साहब ने तैयारियां शुरू कर दी। चूंकि आरिफ मोहम्मद खान साहब संजय गांधी के बेहद करीबी माने जाते थे। उस समय संजय गांधी कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव हुआ करते थे जिसके चलते आरिफ मोहम्मद खान ने दलहन का पूरा प्रारूप सरकार के सामने रखा और उसका नतीजा यह रहा दलहन संस्थान कानपुर को मिला। सांसद के रूप में आरिफ मोहम्मद खान साहब की सोच सदा विकासवादी रही है बहुत सारे ऐसे काम है जो उन्होंने सांसद रहते हुए कानपुर के लिए किए है।