देशभर में कोरोनावायरस की वजह से लगे लॉकडाउन का सबसे बुरा असर गरीब मजदूर वर्ग पर हुआ। बीते कुछ महीनों में कोरोना मामलों में लगातार हुए उतार-चढ़ाव के चलते अलग-अलग शहरों में काम कर रहे प्रवासी मजदूर जल्दबाजी में अपने घर लौटने को मजबूर हो गए। हालांकि, घर पहुंचने के बाद भी कई लोगों के पास खाने की व्यवस्था तक नहीं थी। अब गुजरात सरकार ने अपनी एक रिपोर्ट में माना है कि ऐसे दिहाड़ी मजदूरों के लिए महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून (MNREGA) जान बचाने वाली योजना रही।
गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी के ओर से पिछले हफ्ते ही रिलीज की गई रिपोर्ट में कहा गया है कि कृषि व्यवस्थाओं ने दिहाड़ी मजदूरों के लिए चीजों को आसान किया और सरकार को ऐसे संकट से निपटने के लिए कृषि क्षेत्र को प्राथमिकता देनी चाहिए। दाहोद जैसे आदिवासी बाहुल जिले के गांवों का जिक्र करते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य सरकार को मनरेगा को नए सिरे से योजनाबद्ध करना चाहिए, जिससे कोरोना के बाद ग्रामीण क्षेत्रों के बिगड़े हालात ठीक किए जा सकें। इसमें कौशल विकास के साथ लंबी अवधि के जोखिम के कवरेज और तनख्वाह सुनिश्चित करने जैसे बदलाव की पैरवी की गई है।
बता दें कि मनरेगा स्कीम को 2006 में पहली बार कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए की ओर से लॉन्च किया गया था। तब से लेकर एनडीए के पिछले सात सालों में भी यह स्कीम जारी है। बताया गया है कि मनरेगा की तारीफ वाली यह रिपोर्ट राज्य सरकार के जलवायु परिवर्तन विभाग की ओर से तैयार की गई है और इसे आईआईटी गांधीनगर और आईआईएम अहमदाबाद की ओर से समर्थन दिया गया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले साल कोरोना लॉकडाउन लगने के बाद करीब एक लाख प्रवासी मजदूर दाहोद में अपने गांव लौट गए थे। इसके बाद सरकार ने उन्हें गांव में ही रोजगार दिलाने की संभावनाएं ढूंढनी शुरू कीं। रिपोर्ट के मुताबिक, इस दौरान मनरेगा घर लौट चुके मजदूरों के लिए जीवन बचाने वाली योजना बनकर उभरी।
द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट का जिक्र करते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि गुजरात में मनरेगा के तहत सबसे ज्यादा मजदूरों का जुड़ाव दाहोद में ही रहा। यहां 2.38 लाख लोगों को मनरेगा के तहत काम मिला। वहीं, भावनगर में 77,659 और नर्मदा में 59,208 लोग मनरेगा से जुड़े। रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार को प्रवासी मजदूरों को रोकने के लिए कृषि व्यवस्था को और मजबूत बनाना होगा।
जलवायु परिवर्तन विभाग के एक अफसर ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “ऐसा लगता है कि मनरेगा को आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत काफी प्रोत्साहन मिला। कोरोना महामारी खासकर लॉकडाउन के दौरान इस योजना से जुड़ने वालों की संख्या भी काफी ज्यादा रही। दाहोद जिले में मनरेगा के तहत सबसे ज्यादा मजदूरों को काम मिला। इनमें से अधिकतर को प्रधानमंत्री आवास योजना और सुजलाम् सुफलाम् जल संचय योजना के अंतर्गत रोजगार हासिल हुआ। अप्रैल में 12,378 और मई में 77,429 लोगों को रोजगार मिला। मुश्किल वक्त में उनके रोजाना वेतन को भी 198 रुपए से बढ़ाकर 224 रुपए किया गया।”