इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने बलात्कार के दोषी करार एक व्यक्ति की चुनौती याचिका को खारिज करते हुए कहा है कि बलात्कार सिर्फ शारीरिक आघात ही नहीं है बल्कि यह अक्सर पीड़ित के पूरे व्यक्तित्व के लिए विध्वंसकारी घटना होती है और अदालतों को ऐसे मामलों की सुनवाई के दौरान अत्यन्त संवेदनशीलता बरतनी चाहिए। न्यायमूर्ति विजयलक्ष्मी की अवकाशकालीन पीठ ने बलात्कार के मामले में निचली अदालत द्वारा दोषी करार दिए गए लखनऊ के मलिहाबाद निवासी जगमोहन नामक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए गत नौ जून को यह टिप्पणी की।

जगमोहन ने 22 अक्तूबर 2009 को एक नाबालिग लड़की से बलात्कार करने के आरोप में लखनऊ की एक फास्ट ट्रैक अदालत द्वारा खुद को सुनाई गई सात साल कैद और 2100 रुपए जुर्माने की सजा को उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ में चुनौती दी थी। न्यायालय ने कहा कि बलात्कार महज शारीरिक आघात नहीं है, बल्कि इससे अक्सर पीड़ित के सम्पूर्ण व्यक्तित्व को गहरी चोट पहुंचती है, लिहाजा अदालतों को बलात्कार के आरोपी के मामले की सुनवाई करते वक्त अत्यधिक जिम्मेदारी से काम लेना चाहिए और ऐसे मामलों को बेहद संवेदनशीलता के साथ निस्तारित करना चाहिए।