इलाहाबाद हाई कोर्ट ने योगी सरकार को बड़ी राहत दी है। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने उत्तर प्रदेश के 5000 स्कूलों के मर्जर पर रोक लगाने वाली याचिका को खारिज कर दिया है। यानी इलाहाबाद हाईकोर्ट ने योगी सरकार के फैसले पर मुहर लगा दी है। 51 बच्चों ने याचिका दायर की थी और मर्जर पर रोक लगाने की मांग की थी।

सरकार ने क्या फैसला लिया था?

बता दें कि 50 से कम छात्रों वाले प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूलों को पास के संस्थानों के साथ जोड़ने का फैसला किया गया था। जस्टिस पंकज भाटिया की पीठ ने सोमवार को यह फैसला सुनाया। अदालत ने शुक्रवार को कृष्णा कुमारी और अन्य द्वारा दायर दो अलग-अलग याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिन्होंने राज्य सरकार के 16 जून के आदेश को रद्द करने की मांग की थी।

याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता एल पी मिश्रा और गौरव मेहरोत्रा ​​ने तर्क दिया था कि राज्य सरकार की कार्रवाई संविधान के अनुच्छेद 21A का उल्लंघन करती है, जो 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए शिक्षा के अधिकार की गारंटी देता है। उन्होंने तर्क दिया कि निर्णय के कार्यान्वयन से बच्चे अपने पड़ोस में शिक्षा के अधिकार से वंचित हो जाएंगे। उन्होंने कहा कि सरकार को इसके बजाय अधिक छात्रों को आकर्षित करने के लिए स्कूलों के मानक को सुधारने पर ध्यान देना चाहिए।

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याचिकाकर्ताओं ने क्या कहा?

इसके अलावा याचिकाकर्ताओं ने कहा कि सरकार ने आर्थिक लाभ या हानि को दरकिनार करते हुए जन कल्याण की दिशा में काम करने के बजाय इन स्कूलों को बंद करने का आसान तरीका चुना। अतिरिक्त महाधिवक्ता अनुज कुदेसिया, मुख्य स्थायी वकील शैलेंद्र सिंह और बेसिक शिक्षा निदेशक का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता संदीप दीक्षित ने तर्क दिया कि सरकार का निर्णय नियमों के अनुसार लिया गया था, जिसमें कोई खामी या अवैधता नहीं थी।

याचिका के विरोध में तर्क दिया गया कि कई स्कूलों में बहुत कम या कोई छात्र नहीं थे। सरकार ने कहा कि स्कूलों को विलय नहीं किया बल्कि उन्हें जोड़ा दिया जाएगा, जिससे यह सुनिश्चित होगा कि कोई भी प्राथमिक विद्यालय बंद नहीं होगा।