इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बड़ा फैसला दिया है। हाई कोर्ट ने उस व्यक्ति को बरी कर दिया, जिसे 2002 में छह साल की बच्ची से बलात्कार के आरोप में निचली अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। हाई कोर्ट ने बताया कि अभियोजन पक्ष आरोपी के खिलाफ आरोपों को साबित करने में विफल रहा, जिससे आरोपी को संदेह का लाभ मिल गया। हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि मेडिकल रिकॉर्ड में पीड़िता को कोई चोट लगने का संकेत नहीं मिला है।

23 साल पुराना है मामला

पीड़ित पक्ष के अनुसार मामला 31 मार्च 2001 का है, जब शिकायतकर्ता काम पर गया था और उसकी पत्नी अपनी बेटी को घर पर अकेला छोड़कर चारा लाने गई थी। इसके बाद शाम को खेलते समय पीड़िता अपनी मां को ढूंढने के लिए घर से बाहर निकली। उसी दौरान आरोपी कथित तौर पर उसे एक खेत में ले गया और उसके साथ बलात्कार किया। जैसे ही लड़की ने शोर मचाया, दो स्थानीय निवासी मौके पर पहुंचे और उन्होंने कथित तौर पर आरोपी को बच्चे का यौन उत्पीड़न करते देखा। जैसे ही लोग आरोपी को पकड़ने के लिए आगे बढ़े, वह जंगल की ओर भाग गया। घटनास्थल पर लड़की घायल थी और बेहोश पड़ी थी। सूचना मिलने पर पीड़िता के माता-पिता मौके पर पहुंचे और उसे घर ले गए।

बाद में लड़की के पिता ने स्थानीय पुलिस स्टेशन में आरोपी के खिलाफ बलात्कार की शिकायत दर्ज कराई। पुलिस ने मामले की जांच की और आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल किया। इसके बाद 24 अक्टूबर 2002 को बुलंदशहर की एक स्थानीय अदालत ने आरोपी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। इस फैसले के बाद आरोपी ने अपने वकील के माध्यम से एक अपील दायर की, जिसमें तर्क दिया गया कि पीड़ित को कोई आंतरिक या बाहरी चोट नहीं लगी थी।

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इस अपील का विरोध करते हुए सरकारी वकील ने तर्क दिया कि ट्रायल कोर्ट ने अपने निष्कर्ष पर पहुंचने और आरोपी को आजीवन कारावास की सजा देने से पहले रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों पर गहन विचार किया था। अदालत ने अपने आदेश में कहा, “चर्चा और विचार-विमर्श के मद्देनजर यह आपराधिक अपील सफल होती है और इसे स्वीकार किया जाता है।

जानें इलाहाबाद हाई कोर्ट ने क्या कहा

हाई कोर्ट ने कहा, “हमने पाया है कि तथ्य के गवाहों के साथ-साथ पीड़ित के बयान भी मेडिकल सबूतों से मेल नहीं खाते हैं। साढ़े छह घंटे के अंदर पीड़िता की मेडिकल जांच करायी गयी। अभियोजन पक्ष का विशिष्ट मामला यह है कि पीड़िता पर यौन हमला किया गया था। हमारे आकलन के अनुसार छह साल की छोटी सी उम्र में यदि पीड़िता के साथ बलात्कार होता है तो किसी प्रकार की चोट लगना तय है और मेडिकल कागजात या डॉक्टर की गवाही में सामने आती है। तथ्य यह है कि कोई भी चोट नहीं गई। इस तथ्य के साथ कि गवाहों द्वारा अपराध को देखने के तरीके में विरोधाभास हैं। हमारी राय है कि अभियोजन पक्ष उसके खिलाफ लगाए गए बलात्कार के आरोपों को साबित करने में विफल रहा है और अभियुक्त संदेह का लाभ पाने का हकदार है।”