मुजफ्फरनगर दंगे पर न्यायमूर्ति विष्णु सहाय आयोग की रिपोर्ट आने के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव विपक्ष के हमलावर तेवरों से चौतरफा घिर गए हैं। भारतीय जनता पार्टी ने कहा कि चूंकि मुख्यमंत्री के पास गृहविभाग भी है इसलिए नैतिक आधार पर उन्हें त्यागपत्र दे देना चाहिए।
भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष लक्ष्मीकांत बाजपेयी का कहना है कि जांच रिपोर्ट में पुलिस की लापरवाही उजागर होने के बाद मुख्यमंत्री को इसलिए त्यागपत्र दे देना चाहिए क्योंकि गृह विभाग उनके पास है। जिन अधिकारियों को दंगे में आरोपी ठहराया गया है वे सीधे तौर पर मुख्यमंत्री के विभाग से ही ताल्लुक रखते हैं। उधर रिपोर्ट में आरोपी मुजफ्फरनगर के तत्कालीन एसएसपी सुभाष दुबे के पक्ष में प्रदेश के आइपीएस लामबंद हो रहे हैं।
मुजफ्फरनगर में हुए सांप्रदायिक दंगों पर सहाय आयोग ने जो रिपोर्ट सौंपी है उसने समाजवादी पार्टी सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। रिपोर्ट में आयोग ने मुजफ्फरनगर दंगों के दौरान बेकाबू हुए हालात के लिए प्रदेश सरकार, उत्तर प्रदेश शासन, सोशल मीडिया व प्रिंट मीडिया की भूमिका पर सवाल उठाए हैं। दिलचस्प यह है कि आयोग ने सवाल तो खड़े किए हैं लेकिन कार्रवाई के नाम पर तत्कालीन एसएसपी और एक इंस्पेक्टर की ही जवाबदेही तय की है।
प्रदेश के सियासी पारे में उबाल लाने वाले मुजफ्फरनगर दंगों पर हुई इस लीपापोती पर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकान्त बाजपेयी चुटकी लेते हैं। उनका कहना है कि मुख्यमंत्री के पास गृह विभाग है जिसके अधीन प्रदेश की पुलिस आती है। ऐसे में पुलिस कर्मियों को दोषी ठहराना और मुख्यमंत्री को रिपोर्ट की जद से बाहर करना आयोग पर कई सवाल खड़े करता है।
बाजपेयी का कहना है कि 27 अगस्त 2013 को कवाल में तीन हत्याओं के बाद जिस तरह मुजफ्फरनगर के जिलाधिकारी और एसएसपी को हटाया गया, उससे साफ है कि गृह विभाग मुजफ्फरनगर पर अपनी पैनी निगाहें गड़ाए था। इस घटना के ठीक 11 दिनों बाद 7 सितंबर को नंगला मंदौड़ की पंचायत में जो लोग शामिल होने जा रहे थे, उन पर बांसीकला में हमला हुआ। एक ही समय पर कई स्थानों पर हमले किए गए। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि तीन हत्याओं के बाद डीएम व एसएसपी को हटाने वाली प्रदेश की सपा सरकार ने आनन फानन में वहां कार्रवाई क्यों नहीं की?
एक सवाल यह भी है कि मुजफ्फरनगर में हुए दंगों के 11 दिन पूर्व हुई तीन हत्याओं पर कार्रवाई करने वाली सरकार ने दंगों के दौरान तत्कालीन प्रमुख सचिव गृह, तत्कालीन जिलाधिकारी, तत्कालीन सीओ के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की? बाजपेयी कहते हैं कि चंद पुलिस अधिकारियों को दंगों का आरोपी बताकर मुख्यमंत्री खुद को पाक दामन नहीं ठहरा सकते। उन्हें नैतिकता के आधाार पर त्यागपत्र देना चाहिए।
उधर मुजफ्फरनगर के तत्कालीन एसएसपी सुभाष दुबे को आरोपी करार देने से प्रदेश के आइपीएस अधिकारियों में नाराजगी है। आइपीएस अधिकारियों ने अपनी एसोसिएशन से पूरे मामले में हस्तक्षेप की मांग की है। सूत्र बताते हैं कि अभी इंटरनेट के माध्यम से प्रदेश के आइपीएस अधिकारियों के बीच सुभाष दुबे को आरोपी ठहराए जाने का विरोध जारी है। बहुत जल्द आइपीएस एसोसिएशन मामले पर अपना रुख साफ करेगी।