30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी के सीने में गोली उतार दी थीं। जिसके बाद बापू के आखिरी शब्द थे- हे राम..। आज बापू की 71वीं पुण्यतिथि है ऐसे में आज का दिन पूरा देश जब बापू की शहादत पर उनको याद करता है तो वहीं एक तबका ऐसा भी है जो बापू को नहीं उस शख्स का महिमामंडन करता है जिसने बापू की हत्या की थी। ये तबका महात्मा गांधी नहीं बल्कि नाथूराम गोडसे का मंदिर और मूर्ति बनवाने के पक्ष में रहता है।

15 नवंबर 1949 को गोडसे को मिली था फांसी: 15 नवंबर 1949 को महात्मा गांधी की हत्या करने वाले नाथूराम गोडसे को फांसी की सजा सुनाई गई थी। आज तक की रिपोर्ट के मुताबिक देश के कुछ संगठनों को वो दिन आज भी कुरेदता है और वो कैलेंडर में 15 नवंबर की तारीख को शहीद दिवस के रूप में मनाते हैं। इन लोगों ने कई जगहों पर गोडसे के मंदिर और मूर्तियां बनाने के प्रयास किए।

गोडसे के मन में क्यों आया था बापू की हत्या का ख्याल: गोडसे का जन्म पुणे में हुआ था और अखिल भारतीय हिंदू महासभा जैसे कुछ संघठनों को लगता है कि बापू ने अली जिन्ना और पाकिस्तान को तरजीह देते हुए भारत का बंटवारा होने दिया। ऐसे में गोडसे की नाराजगी इतनी बढ़ गई कि उसने बापू को गोली मार दी। इन संघठनों का मानना है कि राष्ट्र के साथ अन्याय हुआ जिसका खामियाजा बापू की हत्या के रूप में भुगतना पड़ा। जबकि वहीं इसके विरोधी संगठनों का कहना है कि किसी को भी अहिंसा के पूजारी के साथ हिंसक रवैया अपनाने का कोई नैतिक अधिकार नहीं।

गोडसे का मंदिर और मूर्ति: अखिल हिंदू महासभा ने देश के कुछ हिस्सों में गोडसे के मंदिर बनवाए। जिसमें उत्तर प्रदेश के सीतापुर में मंदिर जबकि मेरठ में स्टैच्यू शामिल हैं। हालांकि पुलिस ने इन्हें सील कर दिया है। जानकारी के मुताबिक गोडसे के समर्थकों का मानना है कि गोडसे का मंदिर और मूर्तियां एक मिशन है जिसे हर हाल में पूरा करना है और गोडसे की राष्ट्रवादी छवि को जन जन तक पहुंचाना है।

ग्वालियर में किया था मूर्ति शिलान्यास: गौरतलब है कि करीब 2 साल पहले ग्वालियर के दौलतगंज इलाके में गोडसे की प्रतिमा लगाने के लिए शिलान्यास किया गया था और हिंदू महासभा ने मंदिर के लिए जमीन खरीदने की इजाजत भी मांगी थी। हालांकि प्रशासन ने इसके लिए इनकार कर दिया था। जिसके बाद भी प्रतिमा का शिलान्यास हुआ।