दिल्ली से राज्यसभा की तीन सीटों की उम्मीदवारी के लिए 16 जनवरी को चुनाव होना है। दिल्ली की सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी (आप) को अपने तीन उम्मीदवार राज्यसभा में भेजने हैं, लेकिन उच्च सदन में पहुंचने की होड़ में पार्टी में फूट का खतरा मंडराने लगा है। पार्टी के मुखिया और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पिछले दिनों साफ किया था कि पद चाहने वालों के लिए आप में कोई जगह नहीं है। उन्होंने किसी का नाम नहीं लिया है, लेकिन इनका इशारा पार्टी के वरिष्ठ नेता कुमार विश्वास की ओर था, जिन्होंने खुलेआम राज्यसभा के लिए अपनी दावेदारी पेश की और उनके समर्थक इस मुद्दे पर पार्टी दफ्तर में धरने पर भी बैठे। कांग्रेस के वोट बैंक के बल पर दिल्ली में राज कर रही आप में मचे झगड़े से कांग्रेस को अपने दिन लौटने की आस है। दिल्ली के कांग्रेस प्रमुख राष्ट्रीय स्तर की राजनीति से अलग दिल्ली में आप पर ज्यादा और भाजपा पर कम निशाना साध रहे हैं क्योंकि आप के कमजोर होने का फायदा कांग्रेस को मिलने वाला है। केजरीवाल इस हकीकत को जानते हैं इसलिए दिल्ली में सत्ता बरकरार रखने के लिए वे वोटों के समीकरण पर नजर लगाए हुए हैं। वहीं कुमार विश्वास को पार्टी में उनकी हैसियत दिखाने के लिए संजय सिंह को राज्यसभा में भेजने की बात भी चल रही है।
केजरीवाल को पता है कि मुफ्त बिजली-पानी व अनधिकृत कॉलोनियों को नियमित करने या उनमें सुविधा दिलवाने के नाम पर पूर्वांचल के प्रवासियों और अल्पसंख्यकों का पक्का समर्थन उन्हें दिल्ली में नंबर एक की दौड़ में आगे बनाए रखेगा। उसकी सीधी लड़ाई भाजपा से होती रहेगी और कांग्रेस तीसरे नंबर से ऊपर आ ही नहीं पाएगी। यह समीकरण उन सभी राज्यों में कारगर है, जिनमें तीसरा मजबूत दल नहीं है। भाजपा से विश्वास की नजदीकियां जगजाहिर हैं। उनके जन्मदिन से लेकर कई मौकों पर भाजपा नेता आते-जाते रहे हैं। आप के शुरुआती दिनों में जो नेता उससे जुड़े, उनमें ज्यादातर भाजपा और कांग्रेस के उपेक्षित नेता ही थे। खुद केजरीवाल बार-बार कह चुके हैं कि उनकी कोई विचारधारा नहीं है, जहां से फायदा मिले, वहां जाने को तैयार हैं। केजरीवाल की राजनीति की दिशा अब बदल गई है। अब वे आलोचना बर्दाश्त नहीं करने वाले हैं। इसी कारण पार्टी को वैचारिक रूप से मजबूत बनाने वाले नेताओं योगेंद्र यादव व प्रशांत भूषण को केजरीवाल ने एक ही झटके में पार्टी से बाहर कर दिया था। कुमार विश्वास भी काफी दिनों से पार्टी में अलग-थलग पड़ गए हैं।
पंजाब चुनाव और दिल्ली निगम चुनाव में उन्हें कहीं भी प्रचार के लिए नहीं बुलाया गया। इसी के चलते विश्वास खुलेआम कहने लगे हैं अब पार्टी पहले जैसी नहीं रही। हालात ऐसे बन गए हैं कि कभी भी यह खबर आ सकती है कि कुमार विश्वास आप से अलग हो गए या उन्हें निकाल दिया गया। फिलहाल तो यही लग रहा है कि केजरीवाल दबाव में आकर कुमार विश्वास को राज्यसभा सीट नहीं देने वाले हैं। इसके अलावा दो नवंबर को हुई आप की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में जिस तरह की नारेबाजी हुई, उससे साबित हो गया कि कुमार विश्वास के लिए पार्टी में अब कोई जगह नहीं है।
हालांकि कई चुनावों से यह भी जाहिर होने लगा है कि भाजपा को आप के दिल्ली की सत्ता में बने रहने से फायदा हो रहा है। तभी तो केजरीवाल के करीबी रहे पूर्व मंत्री कपिल मिश्र की ओर से उन पर लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोप पर किसी तरह की ठोस कार्रवाई नहीं हुई। इसके अलावा केजरीवाल सरकार की बात न मानने वाले अधिकारियों का दिल्ली से तबादला और शुंगलू कमेटी की रिपोर्ट पर कार्रवाई न होना भी संदेह पैदा करता है। दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष अजय माकन भी भाजपा और आप में मिलीभगत के आरोप लगाते रहे हैं। राज्यसभा चुनाव को लेकर आप में मचे झगड़े से दिल्ली का राजनीतिक माहौल गरमाया हुआ है। आने वाले दिनों में साफ हो जाएगा कि पार्टी किसे राज्यसभा भेजती है, लेकिन इतना तो तय है कि राज्यसभा में हाजिरी लगाने के लिए आप को बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी।

