पंजाब की सत्ता में आम आदमी पार्टी (आप) का दखल हो पाए या न हो पाए लेकिन दिल्ली में सिखों की कमेटी में उसने अपनी उपस्थिति दर्ज करा ली है। यहां दिल्ली सिख गुरुद्वारा कमेटी की सियासत हर समय करवट ले रही है और ऊंट आखिरकार किस करवट बैठेगा इसका फैसला अभी होना है। लेकिन सिरसा-प्रकरण के बाद छीका कुलवंत सिंह बाठ के पक्ष में टूट चुका है। वे कार्यकारी प्रधान बनाए जा चुके हैं। कहना न होगा कि दिल्ली कमेटी में बाठ की ठाठ है! लेकिन खुश ‘आप’ है। क्योंकि बात केवल ‘बाठ’ की नहीं बल्कि आम आदमी पार्टी की भी है जो बिना जीता गदगद हैं! क्योंकि बाठ ‘आप’ के नेता भी हैं। और इस बहाने ‘आप’ का भी दबदबा कमेटी पर कायम हो गया। किसी ने ठीक ही कहा-दो की लड़ाई में तीसरे को हुआ फायदा! दबे जुबान से चर्चा है कि अकाली दल साफ हुआ और बाठ के बहाने आप सत्तारूढ़ हुआ! भाजपा-कांग्रेस से जुड़े सिख गुट लड़ते रहे-भिड़ते रहे!
कोरोना की कड़ी
कोरोना को लेकर सबसे पहले जो बात कही गई थी वह यह थी कि इसकी कड़ी को तोड़ना जरूरी है। दूसरी लहर पार करने के बाद अब तीसरे दौर में लोग ज्यादा बेपरवाह दिख रहे हैं। दिल्ली से सटे औद्योगिक महानगर नोएडा में तो बीमारों का हाल पूछने वाला कोई नहीं। बीमार होने के बाद जब वे संक्रमण का पता लगाने को अस्पताल पहुंच रहे हैं तो उन्हें और संक्रमण फैलाने का मौका मिल रहा है। अस्पतालों में न तो नियमों का पालन किया जा रहा है और न ही मरीजों की जांच हो रही है। इससे 30 से 40 फीसद लोग बिना जांच के ही वापस लौट रहे हैं। बेदिल से एक मरीज ने अपना हाल बताया। कहा, सरकारी में जांच के लिए समय नहीं है और निजी प्रयोगशाला में शुल्क इतना ज्यादा है कि जांच करवा नहीं सकते।
नेताजी का पर्व
लोकतंत्र में चुनाव एक पर्व ही है, लेकिन इसे सबसे ज्यादा हर्षोल्लास से जनता नहीं नेता मनाते हैं। जनता तो पर्व कोई भी हो पैसे और वोट खर्च करने के बाद ठगी रह जाती है। इसलिए दिल्ली में होने वाले निगम चुनाव को लेकर यहां के नेता उतने ही खुश हैं जितने पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर वहां के नेता। भले ही चुनाव, पद और प्रतिष्ठा के मामले में पार्षद और विधायक में काफी अंतर हो लेकिन नेताजी के लिए चुनाव-चुनाव है। दिल्ली के एक पूर्व विधायक तो बेदिल से कह बैठे भले ही राज्य विधानसभा और निगम चुनाव में बड़ा अंतर हो लेकिन जब ये साथ होंगे और नतीजे साथ आएंगे तो खुशी सभी को बराबर होगी। वो बात अलग है कि यह तो सदन में पता चलता है कि वे विधायक हैं या निगम पार्षद।
थाना से बुलावा
दिल्ली पुलिस किसी को कभी भी थाने बुला सकती है। जवान का बस इतना ही कहना भर होता है कि आपको साहब थाने बुला रहे हैं। किसलिए, यह नहीं बताया जाता। बस यह कहा जाता है कि तुरंत बुलाया है। पिछले कुछ समय में दिल्ली में घटित बड़े मामलों के बाद तो हर कोई इस बुलावे को लेकर काफी सतर्क रहता है। बेदिल को पिछले दिनों एक अधिकारी मिले जिन्होंने एक वाकया सुनाया। उनको भी थाने से बुलावा आया था। लेकिन उनका कहना था कि उस पुलिस वाले ने बार-बार अनुरोध के बाद भी यह नहीं बताया कि उन्हें किस कारण से थाने बुलाया गया है। हालांकि वे भी ठहरे एक विभाग में भारत सरकार के अधिकारी तो उन्होंने भी ‘आप कारण नहीं बताएंगे तो हम नहीं आएंगे’ के लहजे बता को आया गया कर दिया। बेदिल को पता चला है कि थाने से रोज फोन आ रहा है लेकिन साहब ने साफ तौर पर कह रखा है कि बिना कारण बताए वह हिलेंगे नहीं। फिलहाल मामला शांत है, लेकिन दिल्ली पुलिस की महिमा कौन जाने।
फुस्स हुए दावे
अपने आप को तेज तर्रार कहने वाली राष्ट्रीय राजधानी की पुलिस इस बार सोशल मीडिया पर विवादित पोस्ट के मामले में आरोपियों को ढूंढने में पिछड़ गई। मामले में राजधानी की महिलाएं पीड़िताओं की सूची में शामिल थी लेकिन इसे खाकी पर हावी सुस्ती कहें या गैरजरूरी कामों का बोझ जिसने उनके दावों को फुस्स कर दिया। उनकी जगह दूसरे राज्य की पुलिस ने गंभीरता दिखाते हुए कई आरोपियों को धर दबोचा और राजधानी पुलिस को आईना भी दिखाया। लेकिन इस बीच मामले को थोड़ा संभालने के लिए पुलिस ने अपनी सुस्ती तोड़ी और एक शख्स को पकड़ा। बेदिल ने विभाग में किसी को कहते सुना, इतने अगंभीर मसलों में खाकी उलझी रहती है कि उसे यही पता नहीं चल पाता कि कौन सा मामला कब गंभीर हो जाए। फिलहाल मित्र पुलिस दिल्ली में मास्क न पहनने वालों को तो पकड़ ही रही है। यह काम अभी खत्म नहीं हुआ है।
-बेदिल