धौलपुर के विधानसभा उपचुनाव की हार जीत से न भाजपा का कुछ बिगड़ेगा और न कांग्रेस का ही कुछ बनेगा। भाजपा के पास राजस्थान विधानसभा में पहले ही 160 विधायक ठहरे। यानी कुल संख्या का 80 फीसद। कांग्रेस के 24 में एक और बढ़ जाएगा तो आसमान नहीं फटेगा। तो भी दोनों ही पार्टियां इस एक सीट के उपचुनाव को जीतने के लिए एड़ीचोटी का जोर लगा रहे हैं। जो जीतेगा उसे महज 18 महीने की विधायकी ही पल्ले पड़ेगी। यह बात अलग है कि इस एक सीट के नतीजे से अगली सरकार के बारे में भूमिका बनाना आसान होगा। धौलपुर मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का अपना इलाका ठहरा। बेशक भाजपा यहां कमजोर ही है। वसुंधरा ने अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ लिया है इस चुनाव को। भाजपा के सूबेदार और दर्जन भर मंत्री भी धौलपुर में ही डेरा डाले हैं। उम्मीदवार उधार लेकर भाजपा संदेश दे चुकी है कि उसे यह सीट हर कीमत पर जीतनी है।
बसपा के विधायक रहे बीएल कुशवााहा की पत्नी शोभा को मैदान में उतारा है पार्टी ने। उत्तर प्रदेश के नतीजों की खुमारी उतरने का खतरा है अगर यहां हार गई भाजपा। इस सीट पर मुसलमान मतदाताओं की अच्छी खासी तादाद है। यही देख कर पूर्व विधायक सगीर अहमद को राज्यमंत्री जैसी हैसियत दी है अचानक वसुंधरा ने। अमितशाह भी इस महीने तीन दिन तक सूबे में ही प्रवास करेंगे। जमीनी ताकत की पड़ताल करने की मंशा से। हालांकि भाजपाई ही निराशा में अब दबी जुबान से अगली बार जीत नहीं मिलने की आशंका जता रहे हैं। नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ को अभी से मैदान में उतारने की हिमायत कर रहे हैं। कमाल है कि धौलपुर में मोदी-मोदी के साथ-साथ योगी-योगी भी जप रहे हैं भाजपाई।
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