योगी सरकार ने साबित कर दिखाया कि विकास के एजंडे में भले उसकी रैंकिंग बाकी राज्यों के मुकाबले काफी नीचे हो पर एक खास वर्ग के विरोध और उग्र प्रदर्शन से निपटना उसे बखूबी आता है। पिछले शुक्रवार को सूबे के बीस से ज्यादा स्थानों पर केंद्र सरकार के नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ हुए प्रदर्शनों पर पुलिस ने कड़ी कार्रवाई ही नहीं की बल्कि बेकाबू भीड़ को नियंत्रित करने के लिए की गई फायरिंग को भी नकार दिया। सूबे के डीजीपी लगातार बोलते रहे कि दंगों में मरे बीस से ज्यादा लोग उपद्रवी थे और उपद्रवियों की गोलियों का ही शिकार हुए।
उत्तर प्रदेश सांप्रदायिक नजरिए से देश का सबसे संवेदनशील सूबा रहा है। लेकिन इस बार कहीं भी नाराज मुसलमानों ने किसी भी गैरमुसलमान खासकर हिंदू से कहीं कोई झगड़ा नहीं किया। पर पुलिस की कार्यप्रणाली पर उंगली खूब उठ रही है। बेकसूरों पर कार्रवाई में भेदभाव का सवाल हो या सार्वजनिक संपत्ति को हुए नुकसान की भरपाई के लिए वसूली के कानून पर अमल का सवाल। जब पहले से अशांति की आशंका में पूरे सूबे में धारा 144 यानी निषेधाज्ञा लागू थी तो पुलिस प्रशासन ने नमाज के वक्त चाकचौबंद बंदोबस्त क्यों नहीं किए थे? उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से कहीं भी शांति और सद्भाव के लिए सियासी प्रयास नहीं दिखे। सरकार शुरू से ही हिंदू-मुसलमान के खास एजंडे पर चली है।
विकास कहीं प्राथमिकता में नहीं। और तो और सूबे में पिछले चार महीने से मुख्य सचिव की नियुक्ति तक नहीं हो पाई है। अपने ही उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य के साथ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के रिश्तों की कड़वाहट लखनऊ के सियासी गलियारों में किसी से नहीं छिपी है। मौर्य के पीडब्ल्यूडी विभाग की निगरानी मुख्यमंत्री सचिवालय इस तर्ज पर कर रहा है मानो वे किसी विपक्षी दल के हों। पार्टी के जिस विधायक नंद किशोर गुर्जर ने विधानसभा के भीतर भ्रष्टाचार शिखर पर होने का आरोप लगाया था, उसका समर्थन करने वाले पार्टी विधायकों को अब आलाकमान के निर्देश पर फटकार लगाई जा रही है। अच्छा होता कि विधायक के दर्द को जनभावनाओं का आईना मान अपने तौर-तरीकों और प्राथमिकताओं पर मंथन करते योगी।
पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने तो सीधे आरोप लगाया है कि मुख्यमंत्री की भाषा के कारण सीएए के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में लोगों की जानें गई हैं। उनकी बदला लो और ठोको नीति के परिणाम स्वरूप प्रदेश में कानून व्यवस्था चौपट हुई है। पुलिस ने गाड़ियां तोड़ी हैं और घरों में लूटपाट की है। जिनकी मौतें हुई है उनकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट नहीं दी जा रही है। एफआईआर नहीं लिखी जा रही है। मृतकों के परिजनों से विपक्षी नेताओं को मिलने भी नहीं दिया जा रहा है। अखिलेश इस मामले में खामोश नहीं रहे। डंके की चोट पर फरमाया है कि जिसके साथ अन्याय होगा, समाजवादी पार्टी उसके साथ खड़ी होगी। भले वह किसी भी संप्रदाय का क्यों न हो।