सत्ता के लिए नेता दल जरूर कपड़ों की तरह बदल रहे हैं पर जिसे जिस दल की रीति-नीति-संस्कृति की आदत पड़ जाए उसे दूसरे दल की रीति-नीति और संस्कृति आसानी से रास नहीं आती। दल के भीतर भी वफादार और समर्पित नेताओं व दल बदलू नेताओं के बीच गुटबाजी बनी ही रहती है। उत्तराखंड को ही ले लीजिए। त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार के आधे मंत्री कांग्रेसी अतीत वाले ठहरे।

कई तो खुद को घर का रहा न घाट का जैसी स्थिति में देखते हैं। मसलन सूबे के श्रम मंत्री हरक सिंह रावत अब भवन और सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष नहीं रहे। कारण मुख्यमंत्री ने इस बोर्ड का पुनर्गठन करा दिया। अब अध्यक्ष बन गए हैं शमशेर सिंह सत्याल। जो राज्य सलाहकार श्रम संविदा बोर्ड के भी अध्यक्ष ठहरे। हरक सिंह रावत के साथ-साथ बोर्ड की सचिव दमयंती को भी हटा दिया था सरकार ने। जो हरक सिंह रावत की खास मानी जाती हैं। पर वे किसी तरह अपनी कुर्सी बचाने में कामयाब हो गईं। यह बोर्ड बतौर श्रम मंत्री हरक सिंह रावत के विभाग में ही आता है। उन्हें पुनर्गठन की भनक तक नहीं लग पाई।

मुख्यमंत्री से उनकी अरसे से पट नहीं पा रही। चर्चा तो यहां तक है कि मुख्यमंत्री उनका फोन भी नहीं उठाते। वैसे भाजपा के उत्तराखंड में ग्रह नक्षत्र ठीक नहीं चल रहे। पार्टी के तीन विधायक गणेश जोशी, सहदेव पुंडीर और महेश सिंह नेगी अदालती पचड़ों में फंसे हैं। नेगी पर तो एक महिला ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगा रखा है। पार्टी की भी उनके कारण बदनामी हुई है। हरक सिंह रावत ही क्यों अपनी ही सरकार में मंत्री होते हुए भी सतपाल महाराज, सुबोध उनियाल व यशपाल आर्य खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं।

दूसरे अफसरों की बात तो दूर इन मंत्रियों के अपने विभागों के अफसर भी नहीं सुनते इनकी। अफसरों से कैसे छिपा रह सकता है कि मुख्यमंत्री उनको खास तवज्जो नहीं देते। मन मसोसकर रह जाने के सिवा कोई चारा भी तो नहीं बेचारों के पास।

एक और झटका
राजग तो अब बस नाम भर के लिए बचा है। भाजपा के ज्यादातर सहयोगी दल पहले ही अलग हो चुके हैं। बिहार में ले देकर जद (एकी) से गठबंधन जरूर है। रामविलास पासवान के निधन के साथ ही फिलहाल तो केंद्र में भी कोई हिस्सेदारी बची नहीं लोजपा की। शिवसेना के बाद शिरोमणी अकाली दल ने भी नाता तोड़ लिया भाजपा से। ताजा संबंध विच्छेद गोरखा जनमुक्ति मोर्चे ने किया है।

पश्चिम बंगाल के पर्वतीय इलाकों को अलग गोरखालैंड राज्य बनाए जाने के आंदोलन की देन है यह मोर्चा। पिछले 11 साल से भाजपा के साथ था। दार्जिलिंग लोकसभा सीट भाजपा को गोरखा जनमुक्ति मोर्चे के समर्थन की वजह से ही 2009 से मिल रही है। मोर्चे के नेता विमल गुरुंग का अचानक मोह भंग हो गया भाजपा से। कोलकाता में बकायदा मीडिया से मुखातिब हुए और एलान कर दिया कि अगले साल विधानसभा चुनाव ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ेंगे। जबकि कल तक ममता दीदी उनकी दुश्मन नंबर एक थी।

तीन साल से फरार चल रहे थे तभी तो गुरुंग। भाजपा पर वादा खिलाफी का आरोप लगाया है। अलग राज्य तो दूर गोरखा जातियों को जनजाति का दर्जा देने तक का वादा पूरा नहीं किया। नाराज उत्तर प्रदेश में अपना दल की नेता अनुप्रिया पटेल भी चल रही हैं भाजपा से। पार्टी ने 2014 में गठबंधन किया था। यूपी में दो सीटें दी थी भाजपा ने। 2014 और 2019 दोनों लोकसभा चुनाव में दोनों ही जीत भी ली।

पिछले कार्यकाल में नरेंद्र मोदी ने अनुप्रिया को अपने मंत्रिमंडल में शामिल कर सबसे कम उम्र वाली मंत्री कहलाने का अवसर दिया था। इस बार मंत्री नहीं बन पाईं। तेवर केंद्र सरकार के बजाए उत्तर प्रदेश की योगी सरकार को दिखा रही हैं। मिर्जापुर के कलेक्टर के तबादले की उनकी मांग पर योगी कोई गौर कर ही नहीं रहे। यानी रहना है तो रहें और जाना चाहें तो छूट है।

नीतीश पर दोहरा वार
बिहार में महागठबंधन और राजग के बीच टक्कर कांटे की लग रही है। तेजस्वी यादव की सभाओं में भीड़ खूब जुट रही है। चिराग भी तेजस्वी की तरह नीतीश कुमार पर ही वार कर रहे हैं। नीतीश को बिहार में राज करते डेढ़ दशक हो गया है। लिहाजा लोगों में सत्ता विरोधी कुछ नाराजगी तो होगी ही।

भाजपा के मुकाबले चिराग ने अपने उम्मीदवार नहीं उतारे हैं। वे खुद को नरेंद्र मोदी का हनुमान बताते हुए चुनाव बाद भाजपा-लोजपा की सरकार बनने का दावा कर रहे हैं। नीतीश को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार भले घोषित कर दिया है भाजपा ने पर वोट उनके या उनके काम के आधार पर नहीं मांग रही। वोट प्रधानमंत्री के नाम पर मांग रहे हैं। नीतीश हवा के बदले रूख से अनजान हों यह कैसे हो सकता है।

फीकी रैलियां देख निराशा चेहरे पर साफ झलकती है। लालू के समधी चंद्रिका राय को नीतीश ने अपनी पार्टी से उम्मीदवार बनाया है। उनके प्रचार में पहुंचे तो भीड़ ने लालू यादव जिंदाबाद का नारा लगा दिया। नीतीश गुस्से से तमतमा गए और नारा लगाने वालों को हड़काया-तुम क्या अनाप शनाप बोल रहे हो। यहां ये सब हल्ला मत करो। तुमको अगर वोट नहीं देना है तो मत दो। (प्रस्तुति: अनिल बंसल)