राजस्थान में भाजपा को अब आठ महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में करारी हार साफ दिखने लग गई है। उपचुनावों में हुई हार के बाद से ही धरातल की हकीकत को जानने वाले भाजपाई अब पूरी तरह से मन बना चुके हैं कि कोई करिश्मा ही फिर से सत्ता लौटा सकता है। संभावित हार को देखते हुए भाजपा में अब सत्ता की मलाई खा रहे नेताओं के तेवर बदलने लग गए है। इनमें कई मंत्री भी शामिल हैं। प्रदेश भाजपा के संगठन मंत्री चंद्रशेखर ने हाल में मंत्रियों की ऐसी बैठक बुलाई जिसमें मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को शामिल नहीं किया गया। इस बैठक में राष्ट्रीय संगठन मंत्री वी सतीश भी प्रदेश प्रभारी के नाते मौजूद रहे। इस बैठक में ही मंत्रियों से सरकार के कामकाज की असलियत जानने की कोशिश की गई। दोनों संगठन मंत्रियों का मकसद था कि बैठक में मुख्यमंत्री की गैर मौजूदगी में मंत्री खुल कर अपनी बात कहें और सरकार के भ्रष्टाचार और नौकरशाही के रवैये के बारे में अपनी बात कह सके। पर बैठक में तीन-चार ऐसे मंत्रियों की मौजूदगी ने ही मकसद पर पानी फेर दिया।
इन मंत्रियों को मुख्यमंत्री का करीबी माना जाता है और जो मंत्री उलटी भी बात करता तो उसकी रिपोर्ट सीधे ही राजे तक पहुंचने का अंदेशा था। इससे बैठक में ज्यादातर मंत्रियों ने हार का ठीकरा नौकरशाही पर ही फोड़ने में अपनी भलाई समझी। इसमें भी ऐसे नौकरशाहों के बारे में कुछ नहीं कहा गया जो मुख्यमंत्री राजे के सबसे बेहद करीबी हैं। जबकि प्रदेश भाजपा में निचले स्तर का कार्यकर्ता भी जानता है कि किस वजह से राजस्थान में भाजपा का बंटाधार हो रहा है। प्रदेश भाजपा नेतृत्व अब अपने को बचाने के लिए कई तरह के फार्मूले राष्ट्रीय नेतृत्व को दे रहा है जिससे फिर से सत्ता बचाई जा सके। इसमें एक मंत्रिमंडल में फेरबदल कर कुछ को हटा कर नयों को लेने वाला फार्मूला भी है। मंत्रिमंडल फेरबदल की चर्चाएं चलने से ही भाजपा के कार्यकर्ताओं की हंसी फूटने लग गई है।
जमीनी कार्यकर्ताओं का कहना है कि ऐसा करने से भी कुछ नहीं होगा जब उच्च स्तर पर ही सब गड़बड़ है तो कुछ भी करने का फायदा नहीं होगा। प्रदेश में भाजपा के हाल अब ऐसे हो गए है कि मौजूदा नेतृत्व जो भी फार्मूला सरकाता है कार्यकर्ताओं के साथ ही केंद्रीय नेतृत्व भी सतर्क हो जाता है और उसे नकार देता है। दरअसल भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व अब ऐसे लोगों से फीडबैक जुटा रहा है जिन को स्थानीय राजनीति की समझ है। इनमें संघ विचारधारा से जुड़े कई लेखक, साहित्यकार और मीडिया के लोग भी है। ऐसे लोगों की मौजूदा नेतृत्व ने पूरे चार साल तक अनदेखी की। ऐसे लोगों की मूल विचारधारा भाजपा समर्थित है और राजस्थान का मौजूदा नेतृत्व और उनके कारिंदे इनको अपने पास फटकने तक नहीं देते हैं।