उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के लिए 80 में से दो सीटें छोड़ कर सपा प्रमुख अखिलेश यादव और बसपा प्रमुख मायावती को लगा होगा कि ज्यादा सीटें न देने से नाराज कांग्रेस अगर सभी 80 सीटों पर चुनाव लड़ेगी तो कई सीटों पर भाजपा के वोट काटकर उनकी जीत आसान करेगी। इसी सोच के तहत रालोद से भी समझौता किया गया। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के मन में क्या चल रहा था, इसका आभास सपा-बसपा के नेताओं को नहीं हुआ। कांग्रेस प्रमुख ने उत्तर प्रदेश में अगला मुख्यमंत्री कांग्रेस का बनाने की बात कही, तब भी नहीं। अब अपनी बहन प्रियंका गाधी को कांग्रेस महासचिव बनाकर पूर्वी उत्तर प्रदेश की लोकसभा सीटों का प्रभारी बनाकर तुरुप का इक्का फेंका तो भाजपा के साथ-साथ सपा-बसपा के नेता भी धराशायी होने लगे। कहने के लिए तो भाजपा के नेता खुल कर यही कह रहे हैं कि प्रियंका गांधी की नई जिम्मेदारी से कोई अंतर नहीं होगा, वे तो पहले भी अमेठी, रायबरेली में चुनाव प्रचार करती ही थीं। लेकिन वास्तव में सभी दलों के नेता अब तो इसी उधेड़बुन में लगे हैं कि इसकी क्या काट खोजी जाए। भाजपा तो विरोधी पार्टी है, सपा-बसपा तो सहयोगी पार्टी बनी थी। उन्हें भय है कि अगर प्रियंका का रथ चल निकला तो कहीं उनका नुकसान ज्यादा न कर दे।
भाजपा का हिंदुत्व कार्ड: भाजपा पश्चिम बंगाल में हिंदुत्व कार्ड के जरिए चुनाव मैदान में उतरेगी। पार्टी आलाकमान ने बांग्लादेश की सीमा से लगे मालदा जिले में अपनी चुनावी रैली के दौरान इसका साफ संकेत दे दिया। मालदा जिला सीमा पार से घुसपैठ के लिए बदनाम रहा है। आलाकमान ने वहां से अपनी रैली के जरिए ही राज्य में भाजपा के चुनाव अभियान की शुरुआत की। भाजपा ने कहा कि नागरकिता (संशोधन) विधेयक संसद में पारित होने पर तमाम बंगला शरणार्थियों को नागरिकता मिल जाएगी। उन्होंने कहा कि तृणमूल कांग्रेस सरकार ने इन शरणार्थियों के लिए कुछ नहीं किया है। लेकिन भाजपा उनको नागरिकता देगी। उन्होंने कहा कि यहां सत्ता में आने पर भाजपा घुसपैठ पूरी तरह रोक देगी। अभी तो वोट बैंक की वजह से ममता ने इस मुद्दे पर चुप्पी साध रखी है। पार्टी इस अधिनियम को पश्चिम बंगाल में हिंदुओं को लुभाने के लिए अपना प्रमुख चुनावी हथियार बनाने की रणनीति बना रही है।
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता उम्मीद जताते हैं कि इस कानून की वजह से राज्य के हिंदुओं को अपने पाले में खींचने में तो सहायता मिलेगी ही, इसके जरिए पार्टी खुद पर लगे बंगाल विरोधी ठप्पे को भी धो सकती है। भाजपा के शरणार्थी प्रकोष्ठ के संयोजक मोहित राय दावा करते हैं कि नागरिकता विधेयक कानून में बदलाव के बाद पश्चिम बंगाल में रहने वाले एक करोड़ बंगाली शरणार्थियों का भविष्य बदल जाएगा। उनका आरोप है कि विभिन्न राजनीतिक दलों ने बीते कई दशकों में राज्य में रह रहे बंगला शरणार्थियों की भावनाओं से खिलवाड़ किया है। तृणमूल कांग्रेस और माकपा की अगुआई वाली सरकारों ने बंगाली शरणार्थियों के लिए कुछ नहीं किया है। लेकिन अब भाजपा उनको नागरिकता देगी।
झटके पे झटका: राजस्थान में भाजपा को झटके पर झटके लग रहे हैं। प्रदेश की सत्ता गंवाने के बाद भाजपा को दूसरा तगड़ा झटका जयपुर शहर के मेयर पद का लगा है। जयपुर नगर निगम में भाजपा के पास तीन चौथाई बहुमत है, बावजूद इसके मेयर के चुनाव में उसके पार्षदों की बगावत ने तो पार्टी को राष्ट्रÑीय स्तर तक हिला दिया। जयपुर शहर भाजपा का परंपरागत गढ़ है पर विधानसभा चुनाव में आठ में से सिर्फ तीन सीटें ही उसके कब्जे में आर्इं। मेयर अशोक लाहोटी विधायक बन गए तो उनके खाली पद के लिए उपचुनाव हुआ और इसी में भाजपा की जमकर किरकिरी हो गई। विधानसभा चुनाव की हार के बाद भी भाजपा के बड़े नेताओं का घमंड सातवें आसमान पर है। प्रदेश नेतृत्व ने पार्षदों के मन की बात नहीं सुन कर अपनी मनमर्जी का नेता मेयर के लिए खड़ा कर दिया। बस इससे ही पार्षदों ने भी सबक सिखाने की तैयारी कर ली। इसकी भनक लगते ही नेतृत्व ने पार्षदों की घेरेबंदी एक बड़े होटल में करवा दी। लेकिन विद्रोही पार्षद विष्णु लाटा दीवार फांद कर भाग गए और निर्दलीय के तौर पर मेयर का परचा भर दिया।
कांग्रेस और निर्दलीय पार्षदों का तो समर्थन उन्हें मिल गया पर जीत के लिए 20 पार्षद भाजपा के लेने में भी उन्हें कामयाबी मिल गई। मेयर का चुनाव हुआ और नतीजा आया तो भाजपा में सन्नाटा छा गया। अनुशासन का दम भरने वाली पार्टी में ऐसी बगावत हुई कि पार्टी के नेता ही अब कहने लग गए कि गई लोकसभा की सीट। जयपुर लोकसभा सीट ऐसी है जिसे कांग्रेस कभी भी अपना नहीं मानती है। पर अब जब भाजपा का ही स्थानीय कार्यकर्ता दम ठोक कर कह रहा है कि जयपुर में तो किसी भी हालत में पार्टी नहीं जीत पाएगी तो कांग्रेस के बल्ले-बल्ले हो रही है। दरअसल पिछली भाजपा सरकार ने अपने मजबूत गढ़ जयपुर में कोई विकास का काम ही नहीं किया और भ्रष्टाचार के सारे रिकार्ड भी तोड़ डाले। इसी से भाजपा का जमीनी कार्यकर्ता अपने ही नेताओं के खिलाफ मैदान में आ डटा है।
पार्टी के भीतर ही रहकर उसने अपने नेताओं को जमीनी हकीकत बताना शुरू कर दिया है। भाजपा में बैठकों का चलन कुछ ज्यादा ही है। इन बैठकों में तो कार्यकर्ता नेताओं की हां में हां मिला देता है, पर चुनावी मौकों पर सबक भी सिखाने में जुट गया है। प्रदेश भाजपा के चुनाव प्रभारी केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर लगातार जयपुर में रह रहे हैं, इसके बावजूद पार्टी की गति नहीं सुधर रही है। भाजपा के लोगों को ही लगने लगा है कि उनकी सरकार ने जो कारनामे किए हंै उसका फल अब भुगतना पड़ रहा है। यह तो भला हो आलाकमान की रणनीति का जो संगठन खासा मजबूत हो गया। पर सरकार की छवि के काण बंटाधार भी खूब हुआ है।