राजस्थान में पिछले एक साल में ही भाजपा की तस्वीर बदल गई है। प्रदेश भाजपा में एक साल पहले तक वसुंधरा राजे के समर्थकों का बोलबाला था और उनमें भी ज्यादातर तो सरकार में दलाली के लिए कुख्यात हो गए थे। महारानी के साथ ही उनके खास प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी ने पार्टी संगठन में ऐसे लोग पनपा दिए थे जो जमकर मलाई कूटने में लग गए थे। ऐसे हालात में पार्टी की प्रदेश से सरकार जाना तो तय हो ही गया था। पर अब काफी कुछ बदल गया है।
प्रदेश दफ्तर में दाखिल होने से पहले जहां संघ से जुड़े लोग रुमाल मुंह पर लगा लेते थे वहीं अब ऐसे संघी मुस्कराते हुए मिलते हैं। प्रदेश भाजपा की कमान जब से संघनिष्ठ सतीश पूनिया के हाथ में आई है। आरएसएस के स्वयंसेवक खुद को भाजपाई कहलाने से गुरेज नहीं करते हैं। पूनिया ने भी प्रदेश के संगठन महामंत्री चंद्रशेखर के साथ मिल कर दूरदराज से संघियों को खोज निकाला है और उन्हें ही अब पार्टी में मंडल और जिलों की कमान सौंपने का अभियान चलाया हुआ है। प्रदेश भाजपा के संगठन चुनाव इन दिनों चल रहे है और उनमें वसुंधरा राजे के शासन के दौरान सत्ता सुख लेने वाले नेता अब भी जुगाड़ से पद लेने में लगे हैं। प्रदेश भाजपा संगठन में जिस तरह से बदलाव का दौर चल रहा है उससे ही वसुंधरा राजे के इर्द-गिर्द रहने वालों ने महारानी के कान भी भरना शुरू कर दिया है। वसुंधरा राजे भी हालात अब भांप गई हैं।
राजे को लगता है कि पार्टी अब उन्हें हाशिए पर लाने में लगी हुई है। हालात ऐसे ही रहे तो अगले चुनाव तक तो कमान दूसरों के हाथों में जाने का अंदेशा होने से ही वसुंधरा राजे अब अपनी ताकत जताने लग गई है। पूनिया को दोयम दर्जे का मान उनसे दूरी बनाए रखने वाली वसुंधरा नए हालात में अब दोस्ती का हाथ बढ़ाने में भी लग गई है। वसुंधरा राजे को लेकर संघ वाले अब आशंकित ही रहने लगे हैं। उन्हें मालूम है कि सत्ता हाथ लगते ही महारानी के तेवर अलग हो जाते है और वो केंद्रीय नेतृत्व को भी गरियाने लगती है। केंद्रीय नेतृत्व भी अब चाहता है कि राजस्थान में नया नेतृत्व ही आगे की कमान संभालें।