आशीर्वाद के खतरे
केंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री बनने के बाद पहली बार हिमाचल आए सूचना व प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर की जन आशीर्वाद यात्रा से मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के माथे पर बल पड़ गए हैं। वजह राजनीतिक तो है ही लेकिन बड़ी वजह कोरोना संक्रमण के मामलों में वृद्धि है। इस जन आशीर्वाद यात्रा में जिस तरह से भीड़ उमड़ रही है, उससे अंदेशा है कि आने वाले दिनों में प्रदेश में कोरोना संक्रमण के मामलों में बढ़ोतरी हो सकती है। यात्रा के पहले ही दिन सामाजिक दूरी और मास्क की अनिवार्यता की तो धज्जियां उड़ ही गई हैं। बाकी दिनों में भी इसमें कोई बदलाव होने वाला नहीं है। अनुराग की यात्रा ही नहीं मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की ओर से बीते दिनों की गई जनसभाओं में सामाजिक दूरी और मास्क की अनिवार्यता की शर्तों की धज्जियां उड़ती रही हैं। सरकार के स्तर पर इस तरह कोविड नियमों का उल्लंघन प्रदेश की जनता के लिए खतरे से कम नहीं है। पिछले 15 दिनों में प्रदेश में कोरोना संक्रमण के मामलों में भारी बढ़ोतरी हुई है।

जयराम सरकार को स्कूलों को बंद करना पड़ा। लेकिन अब अनुराग ठाकुर की इस यात्रा ने संकट खड़ा कर दिया है। बहरहाल, जब अनुराग भारी भीड़ के नारों के बीच प्रदेश की सीमा में दाखिल हो रहे थे और अपनी जय-जय कार करवा रहे थे, उसी समय मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर सचिवालय में कोरोना से निपटने के लिए तमाम जिला उपायुक्तों को हिदायतें दे रहे थे। संभवत: ऐसा राजनेता ही कर सकते हैं। सड़क पर कोविड नियमों का उल्लंघन हो रहा हो और सचिवालय से इन नियमों के उल्लंघन न करने की हिदायतें जारी हो रही हो। सबको मालूम है कि जयराम और अनुराग ठाकुर में छत्तीस का आंकड़ा है। अनुराग के पिता पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने इस जन आशीर्वाद यात्रा में भारी भीड़ जुटाने के लिए अपने पूरे कुनबे को पूरी ताकत से झोंक रखा है। ऐसे में जयराम ठाकुर चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहे हंै। न वह अनुराग की प्रदेश में बढ़ती राजनीतिक ताकत को रोकने की कोई काट निकाल पा रहे हैं और न ही कोविड के बढ़ते मामलों की आड़ लेकर इस यात्रा में जुटने वाली भीड़ को कम करने का कोई रास्ता निकाल पा रहे हैं।

भाई की विदाई
उत्तराखंड के प्रदेश भाजपा अध्यक्ष मदन कौशिक के ममेरे भाई और उनके दाहिने हाथ नरेश शर्मा ने देहरादून में आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के सामने अपने समर्थकों के साथ आम आदमी पार्टी का दामन थाम लिया। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष कौशिक पर उनके विरोधी, नरेश शर्मा को सुनियोजित साजिश के तहत आम आदमी पार्टी में भेजने का आरोप लगा रहे हैं। शर्मा के आम आदमी पार्टी में जाने से मदन कौशिक सवालों के घेरे में आ गए हैं। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए कौशिक ने क्यों अपने भाई को आम आदमी पार्टी में जाने दिया। नरेश शर्मा मदन कौशिक का विधानसभा का चुनाव प्रबंध लंबे समय से देखते रहे हैं। वे मदन कौशिक के कट्टर विरोधी और भाजपा सरकार में सबसे ताकतवर कैबिनेट मंत्री और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के सबसे नजदीकी स्वामी यतिस्वरानंद महाराज के विधानसभा क्षेत्र हरिद्वार ग्रामीण से भाजपा का टिकट मांग रहे थे जो असंभव था।

स्वामी यतिस्वरानंद महाराज लगातार इस विधानसभा क्षेत्र से दूसरी बार विधायक चुने गए हैं। वे इस क्षेत्र के सबसे लोकप्रिय विधायक हैं और कैबिनेट मंत्री बनने के बाद स्वामी का राजनीतिक कद और अधिक बढ़ गया है। मदन कौशिक को लगा कि वे स्वामी का टिकट नहीं कटवा सकते हैं और अपने भाई को टिकट स्वामी के खिलाफ नहीं दिलवा सकते हैं। उन्होंने भाई के आम आदमी पार्टी में जाने में ही भलाई समझी। भाजपाई मदन कौशिक को भी संदेह के घेरे में देख रहे हैं कि कहीं वे चुनाव के ऐन मौके पर आम आदमी पार्टी का दामन ना थाम लें। कौशिक पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के सबसे खास आदमी हैं। अब उनकी राजनीतिक हैसियत कम हो रही है।

नीतीश का नया दांव

नीतीश कुमार को राजनीति का पैंतरेबाज खिलाड़ी माना जाता है। दिल्ली में हुई जनता दल (एकी) की कार्य समिति की जिस बैठक में राजीव रंजन सिंह को अध्यक्ष बनाया गया, उसी में नीतीश के प्रधानमंत्री के लिए योग्य होने के नारे लगे। संकेत दिया गया कि ममता बनर्जी के साथ वो भी विकल्प हैं। अहम मुद्दों पर भाजपा से इतर रास्ता अपनाया है। पेगासस जासूसी मामले की जांच की विपक्ष की मांग का समर्थन कर उत्तर प्रदेश की जनसंख्या नीति से असहमति जताई। फरमाया कि कानून बनाकर प्रजनन दर को कम नहीं किया जा सकता। इसके लिए महिलाओं का शिक्षित होना जरूरी है। चीन का उदाहरण भी दे डाला कि किस तरह दो बच्चों के कानून पर लौटना पड़ा।

भाजपा के साथ असली मतभेद तो जाति आधारित जनगणना की मांग की अगुआई से सामने आए हैं। इस मुद्दे पर पहले तो तेजस्वी यादव से मंत्रणा की फिर प्रधानमंत्री से मिलने का समय मांग लिया। बिहार के सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के अगुआ होंगे सुशासन बाबू। विधानसभा से भी प्रस्ताव पारित करा चुके हैं। जाति आधारित जनगणना के पीछे असली मंशा आरक्षण कोटा भी जातियों की जनसंख्या के अनुपात में ही चाहते हैं। इस मांग ने जोर पकड़ा तो भाजपा के हिंदुत्व के एजंडे को पहुंच सकता है नुकसान। (संकलन : मृणाल वल्लरी)