दीदी का दिवास्वप्न
ममता बनर्जी ऊंचे ख्वाब देख रही हैं। दिमाग में 1989 और 1996 की तस्वीर उभर रही होगी। जब केंद्र में गैर भाजपा-गैर कांग्रेस गठबंधन की सरकारों ने सत्ता संभाली थी। हालांकि, 1989 में वीपी सिंह सरकार को भाजपा और वामदलों ने बाहर से समर्थन दिया था, तो 1996 में संयुक्त मोर्चे की सरकार कांग्रेस के समर्थन से बनी और चली थी। कांग्रेस ने जब चाहा उसे गिरा दिया। इसके उलट 2004 से 2014 तक क्षेत्रीय दलों के सहयोग से यूपीए गठबंधन की सरकार अगर दस साल तक सत्ता में रही तो वजह यही मानी गई कि उसका नेतृत्व कांग्रेस कर रही थी।

ममता बनर्जी भी वही सपना देख रही हैं जो 2009 में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहते मायावती ने देखा था। उत्तर प्रदेश फिर भी बड़ा सूबा ठहरा। लोकसभा की अस्सी सीटें हैं। पश्चिम बंगाल में तो महज 42 सीटें हैं। फिर कौन करेगा दीदी का राष्ट्रीय स्तर पर नेतृत्व स्वीकार। बहरहाल अपनी पार्टी का अरविंद केजरीवाल की तर्ज पर दूसरे राज्यों में विस्तार कर रही हैं। पहले त्रिपुरा और अब गोवा पर फोकस है। नजर असम पर भी जरूर होगी। तभी तो सुष्मिता देव को राज्यसभा भेज दिया। यह सही है कि तीनों राज्यों में कांग्रेस कमजोर हुई है पर तृणमूल कांग्रेस का भी तो यहां कोई जनाधार नहीं।

त्रिपुरा में अगली बार सरकार बनाने के दीदी के मिशन को हाल में हुए निकाय चुनाव के नतीजों से झटका लगा है। तो भी गोवा में जाकर फरमाया कि भाजपा को हटाना हो तो कांग्रेस उनके नेतृत्व में उनके गठबंधन में आ जाए। विधानसभा की चालीस सीटों वाले गोवा में फरवरी में चुनाव होगा। हालांकि 2017 में 17 सीटों के साथ कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। बेशक जोड़तोड़ और सौदेबाजी के खेल में वह भाजपा से मात खा गई। ममता बनर्जी ने यहां महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी से गठबंधन किया है।

एनसीपी के इकलौते विधायक चर्चिल अलेमाओ भी उनके साथ आ गए हैं। पर केजरीवाल की पार्टी तालमेल के लिए तैयार नहीं। बहुकोणीय मुकाबले में दीदी भाजपा को कैसे सत्ता से बेदखल कर पाएंगी, कहना मुश्किल है। सूबे में महिला मतदाताओं को लुभाने के लिए घोषणा तो कर ही दी कि सत्ता में आई तो हर परिवार में एक महिला को हर महीने पांच हजार रुपए की गृहलक्ष्मी योजना का लाभ देंगी। भाजपा ने इस घोषणा पर यह कहकर घेराबंदी की है कि पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री रहते तो हर महीने पांच सौ रुपए ही देती हैं गरीब महिलाओं को। पहले वहीं पांच हजार कर देती, तब गोवा में वादा करती तो बात कुछ समझ आती।

श्रद्धांजलि की राजनीति
उत्तराखंड की राजनीति बड़ी विचित्र है। जब जनरल बिपिन रावत की मौत के बाद राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सार्वजनिक सभाओं में उनका स्मरण किया और उनकी याद में सैन्य धाम के मुख्य द्वार का नाम रखने और उनके गांव सेंण में उनका भव्य स्मारक बनाने का ऐलान किया तो कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भाजपा पर जनरल बिपिन रावत के नाम पर राजनीति करने का आरोप लगाया।

जब गुरुवार 16 दिसंबर को भारत-पाकिस्तान युद्ध के 50 वर्ष के मौके पर कांग्रेस की देहरादून के परेड ग्राउंड में शौर्य विजय पर्व समारोह और रैली का आयोजन किया तो उसमें पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और राहुल गांधी के कटआउट के साथ जनरल बिपिन रावत का बड़ा कटआउट लगाया गया। साथ में तमिलनाडु में हुए हेलीकॉप्टर हादसे में शहीद हुए भारतीय सेना के अधिकारियों और सैनिकों का एक बड़ा बैनर लगाया गया।

मंच पर जनरल बिपिन रावत की फोटो रखी गई जिसमें राहुल गांधी ने पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की जिस पर भाजपा ने कड़ी आपत्ति की। धामी ने कहा कि जिन्होंने जनरल रावत को थल सेना अध्यक्ष बनने पर भला-बुरा कहा था वे आज राजनीतिक फायदे के लिए श्रद्धांजलि दे रहे हैं। इस तरह सैनिकों के नाम पर कांग्रेस और भाजपा में श्रद्धांजलि देने की होड़ लगी हुई है।

नाम बिना गुमनाम
आम आदमी पार्टी उत्तर प्रदेश से लेकर पंजाब विधानसभा चुनाव में अपना दावा ठोक रही है। आम आदमी पार्टी की चुनौती का असर यह है कि दिल्ली में उत्तर प्रदेश सरकार की उपलब्धियों के बाद पंजाब सरकार के भी पोस्टर लग गए हैं। कुछ दिनों पहले उत्तर प्रदेश में हुए विकास के पोस्टर दिल्ली में जगह-जगह लगाए गए थे। उन पोस्टरों को दिल्ली में लगाए जाने के औचित्य पर सवाल भी उठे थे। लेकिन पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी को अपनी लोकप्रियता का इतना मुगालता हो गया है कि उन्होंने दिल्ली में लगाए गए अपनी मुफ्त-मुफ्त की घोषणाओं वाले पोस्टर में अपना या पंजाब सरकार का नाम डालने की जरूरत नहीं समझी।

चन्नी और उनके प्रचार से जुड़े विभाग को गलतफहमी है कि लोग उनकी बिना नाम वाली तस्वीर से जान जाएंगे कि ये घोषणाएं चन्नी सरकार की हैं। हकीकत यह है कि आम लोगों के बीच उनके चेहरे को अभी नाम के पहचान की दरकार है। मजेदार बात यह है कि पंजाब के लिए चन्नी की मुफ्त वाली घोषणाएं आम आदमी पार्टी की घोषणाओं की इतनी नकल लग रही हैं कि लोग इसे मूल रूप से अरविंद केजरीवाल की घोषणा ही समझेंगे। प्रचार में खर्च चन्नी का और फायदा केजरीवाल जी को मिले, ये तो बहुत नाइंसाफी है।
(संकलन : मृणाल वल्लरी)