सूबे के शहरी निकाय चुनाव में विरोधियों का सूपड़ा साफ करने के बाद पश्चिम बंगाल की दीदी के हौसले और बुलंद हुए हैं। त्रिपुरा में भी वे तृणमूल कांग्रेस के विस्तार की कोशिश कर रही हैं। मंशा अपनी पार्टी को राष्ट्रीय स्तर की मान्यता दिलाने की न होती तो गोवा में इतनी मशक्कत क्यों करती। दूसरे दलों के नेताओं को तोड़कर 40 विधानसभा सीटों वाले सूबे में भाजपा को चुनौती दी थी। कांग्रेस को भी आगाह किया था कि भाजपा को रोकना हो तो उसके झंडे के नीचे आ जाए। लेकिन संकेत वहां कांग्रेस की दमदारी से विधानसभा चुनाव लड़ने के ही मिल रहे हैं। पर ममता बनर्जी चैन से बैठने वाली कहां।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के पक्ष में प्रचार करने के लिए भी वक्त निकाल लिया। पहली बार लखनऊ आई थीं। अब वाराणसी में जमीं हैं। हवाई अड़्डे पर पहुंचते ही भाजपा को चुनौती दे डाली। फरमाया कि प्रधानमंत्री अपने संसदीय क्षेत्र में प्रवास कर चुनावी रैलियां कर रहे हैं। दूसरी तरफ यूक्रेन में फंसे भारतीय छात्रों की जान पर बनी है। ममता को भाजपा समर्थकों ने काले झंडे भी दिखाए और उनके खिलाफ नारेबाजी भी की। पर वे डरी नहींं। अपनी गाड़ी से उतरकर गंगाघाट की कुर्सियों पर बैठने के बजाए आम लोगों के साथ सीढ़ियों पर ही जा बैठी।
फिर पत्रकारों से बोली कि भाजपाइयों ने जिस तरह उनका विरोध किया उससे उनकी हताशा ही झलकती है। साफ दिख रहा है कि वे हार की आशंका से बौखला रहे हैं। अपने मकसद को भी छिपाया नहीं। चुनावी रैली में बोली कि उत्तर प्रदेश में 2022 में भाजपा को अखिलेश यादव रोक रहे हैं। तो 2024 में दिल्ली में वे रोककर दिखाएंगी। काशी के लोगों के कोरोना काल के घावों को भी हरा कर गई।
बोली कि जब लोग कोरोना से मर रहे थे, तब भाजपा और उसकी डबल इंजन की सरकारें कहां थी। प्रधानमंत्री को यूक्रेन में फंसे छात्रों की चिंता होती तो कूटनीतिक वार्ता में समय लगाते, पार्टी की चुनावी रैलियों में नहीं। अवध और पूर्वांचल के दौरे का कार्यक्रम दीदी ने सोच-समझकर बनाया है। इलाहाबाद और काशी में बंगालियों की संख्या कम थोड़े ही है।
साथ की बात
इन दिनों हिमाचल विधानसभा का बजट सत्र चल रहा है। चूंकि यह चुनावी साल है तो सभी राजनीतिक दलों के विधायक कुछ न कुछ ऐसा करना चाहते हैं जो यादगार रहे। लेकिन कई बार बहुत सी चीजें अनायास ही हो जाती हैं। बीते दिनों पुरानी पेंशन योजना की बहाली की मांग को लेकर कर्मचारी आंदोलन की राह पर थे। इस दौरान सदन में कांग्रेस विधायकों और वामपंथी विधायक ने सदन में विरोध कर दिया व विरोध करते-करते वेल में आ गए। इस दौरान कांग्रेस विधायकों के साथ एकमात्र वामपंथी विधायक भी वेल में पहुंच गए।
इस बीच नारेबाजी की कमान वामपंथी विधायक राकेश सिंघा के हाथ में आ गई। वो तो ठहरे जनआंदोलनों से निकले नेता, तो उनकी नारेबाजी में दम होता ही है। सिंघा के पीछे कांग्रेस विधायक नारेबाजी करने लगे। यह देखकर भाजपा विधायक सदन में मजे लेने लगे कि कांग्रेस विधायकों को एक वामपंथी विधायक का सहारा लेना पड़ रहा। इस बाबत मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने सदन में कहा भी कि कांग्रेस आउटसोर्स हो गई है। उसे नारेबाजी के लिए वामपंथी विधायक के सहयोग की जरूरत पड़ गई। बात आई-गई हो गई। लेकिन जयराम सरकार के सबसे ताकतवर मंत्री महेंद्र सिंह सिंघा के एक प्रश्न का जवाब देने उठे तो सबसे पहले उन्होंने सिंघा को बधाई दे डाली कि उन्होंने कांग्रेस पर कब्जा कर लिया।
साथ ही चुटकी भी ली कि अब कांग्रेस में मुख्यमंत्री का एक और दावेदार खड़ा हो गया है। इस दौरान सब मजे लेते रहे। महेंद्र सिंह ने यह भी कहा कि वह कांग्रेस का ही साथ दे रहे हैं भाजपा का साथ भी दें। सिंघा भी पीछे नहीं रहे, बोले कि आप मौका तो दो, आपके साथ जहां चलना होगा वहां आपको पकड़ कर ले जाऊंगा। सिंघा ने ज्यादा कुछ तो नहीं बोला लेकिन वह गदगद जरूर हो गए।
2014 की याद
यूक्रेन में फंसे भारतीय विद्यार्थियों के मामले ने विपक्ष को केंद्र सरकार की साख पर सवाल उठाने का एक और मौका दे दिया। लोगों के सामने 2014 का उदाहरण भी आया जब सुषमा स्वराज विदेश मंत्री थीं और उन्होंने दावा किया था कि यमन में गोले बारूद को कुछ घंटे के लिए रुकवाकर वहां फंसे भारतीय नागरिकों को संकटग्रस्त इलाके से निकालने के लिए समय पर कदम उठाया था। 2014 में भी भाजपा की अगुआई वाली राजग की ही सरकार थी। विपक्ष, पक्ष के ही इस काल को लेकर उस पर सवाल उठा रहा है।
आरोप है कि विदेश मंत्रालय जैसे अहम महकमे की पूरी नौकरशाही का चरित्र ही बदल गया है। पिछले काफी समय से दूतावास जितनी सक्रियता से भारत सरकार के कार्यक्रमों का छवि प्रबंधन करते हैं, वहीं किसी आपदा के समय सवालों के घेरे में आ जाते हैं। अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद भी देखा गया था कि वहां पाकिस्तान और चीन के दूतावासों का पलड़ा भारी हो गया था, जबकि कश्मीर के कारण भारतीय राजनयिकों को ज्यादा मुस्तैद होना चाहिए था।
यूक्रेन से विद्यार्थियों की वापसी को लेकर जिस तरह से वहां भेजे गए केंद्रीय मंत्रियों के वीडियो जारी हो रहे हैं वह इस त्रासदी के समय भी हास्यास्पद हालात पैदा कर रहे हैं। अभी तो भारत सरकार के मंत्री पानी की बोतलें बांट कर और विद्यार्थियों को कतार में लगा कर विमान में बैठा कर अपना रिपोर्ट कार्ड दुरुस्त कर रहे हैं।
(संकलन : मृणाल वल्लरी)