रावत का दांव
उत्तराखंड कांग्रेस में पूर्व मुख्यमंत्री और चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष हरीश रावत के सोशल मीडिया पर भेजे गए ट्वीट के बाद राजनीति में बवाल मचा। दरअसल इसके पीछे असली राजनीति यह है कि नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह ने भाजपा सरकार के कैबिनेट मंत्री कांग्रेसी गोत्र के भाजपा नेता हरक सिंह रावत को कांग्रेस में लाने के लिए तैयार कर लिया था।
उनके साथ भाजपा के उमेश शर्मा काऊ जैसे विधायक भी कांग्रेस में आने को तैयार थे। पर, यह हरीश रावत को नागवार गुजरा। हरक सिंह रावत विजय बहुगुणा सतपाल महाराज तथा कांग्रेस के अन्य विधायक हरीश रावत के मुख्यमंत्री काल में उनके रवैये के कारण कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे।
जब हरीश रावत को यह लगा कि अब इनकी कांग्रेस में वापसी से उनका राजनीतिक समीकरण डगमगा जाएंगे और उनके मुख्यमंत्री बनने के मार्ग में यह सब नेता सबसे बड़ी रुकावट बनेंगे और कांग्रेस गोत्र के भाजपाई नेताओं के कांग्रेस में वापस आने से नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह मजबूत होंगे।
कांग्रेस के केंद्रीय प्रभारी भूपेंद्र यादव भी कांग्रेस छोड़कर भाजपा में गए नेताओं की घर वापसी के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाए हुए थे ताकि पार्टी को मजबूती मिले। लेकिन हरीश रावत इसे कतई बर्दाश्त नहीं कर सके और उन्होंने मसालेदार ट्वीट भेजकर राज्य में मजबूत होती कांग्रेस को कमजोर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
इससे पहले भी हरीश रावत के कारण ही उनके मुख्यमंत्री रहते ही कांग्रेस पार्टी का उत्तराखंड में बंटवारा हो गया था और 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की दुर्गति हुई थी। हरीश रावत खुद दो विधानसभा सीटों से चुनाव हारे और पार्टी 11 सीटों पर सिमट गई।
दरअसल हरीश रावत का चेहरा उत्तराखंड में मुसलिम परस्त माना जाता है। इसलिए पार्टी हाईकमान इस हिंदू बाहुल्य प्रदेश में रावत को पिछले विधानसभा चुनाव की तरह इस बार मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं बना रही है जिसके लिए रावत पार्टी पर दबाव डाल रहे हैं।
कांग्रेस का क्या?
कांग्रेस का क्या होगा? केंद्र सरकार और भाजपा के निशाने पर तो लगातार पहले से ही चल रही थी देश की सबसे पुरानी पार्टी। भाजपा नेताओं ने तो कहा भी था कि उनका लक्ष्य देश को कांग्रेस मुक्त बनाना है। भाजपा के बाद निशाने पर ममता बनर्जी ने भी भाजपा के बजाए अपनी पुरानी पार्टी को ही लिया है।
त्रिपुरा, गोवा और असम समेत सभी राज्यों में कांग्रेस को तोड़ने का अभियान तेज कर रखा है। ऊपर से पार्टी की अंदरूनी लड़ाई भी अब और तेज हो गई है। एक के बाद एक पार्टी के कद्दावर नेता ही बागी तेवर दिखा रहे हैं। गोवा में पिछले चुनाव में 17 सीटें जीतकर कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। अब उसके पास दो ही विधायक बचे हैं।
सुष्मिता देव जैसी राहुल गांधी की करीबी समझी जाने वाली असम की नेता भी ममता के साथ चली गई। पंजाब में बगावत कर अमरिंदर ने अलग पार्टी बनाने और भाजपा से गठजोड़ करने का एलान कर दिया है। पंजाब में तीन महीने पहले तक यही संकेत मिल रहे थे कि कांग्रेस की वापसी होगी। अब आम आदमी पार्टी दौड़ में सबसे आगे दिखने लगी है।
पंजाब के बाद उत्तराखंड भी कांग्रेस के लिए उम्मीद की किरण दिख रहा था। भाजपा ने एक के बाद एक तीन मुख्यमंत्री बदलकर यहां कमजोरी दिखाई थी। लेकिन हरीश रावत के बागी तेवर से यहां भी पार्टी की संभावनाओं पर खतरा मंडरा रहा है।
हरीश रावत को शिकायत सोनिया, राहुल या प्रियंका से नहीं बल्कि सूबे के प्रभारी देवेंद्र यादव से है। दिल्ली के इस नेता का पार्टी में भाव रणदीप सिंह सुरजेवाला का करीबी होने से अचानक बढ़ा है। हरीश रावत खेमे का आरोप है कि यादव उन्हें भाजपा से खुलकर लड़ने का अवसर नहीं दे रहे।
यादव के दिल्ली से आए दर्जनों चेले उत्तराखंड में भाजपा से अंदरखाने साठ-गांठ कर पार्टी की साख को अपनी हरकतों से बट्टा तो लगा ही रहे हैं, जीत की संभावना को भी पलीता लगा रहे हैं।
अब सपा खफा
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव के करीबियों पर आयकर के छापों का सिलसिला जारी है। अखिलेश ने कहा कि भाजपा को उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अपनी हार साफ नजर आ रही है। उन्हें बखूबी पता है कि आयकर के बाद अब प्रवर्तन निदेशालय की पूछताछ का सिलसिला शुरू होगा।
बकौल अखिलेश पश्चिम बंगाल में भी विधानसभा चुनाव से ठीक पहले केंद्रीय एजंसियों ने इसी तर्ज पर तृणमूल कांग्रेस के नेताओं को निशाना बनाया था। भाजपा नेताओं का तर्क है कि सरकारी एजंसियों का यह काम है जिनके ठिकानों पर आयकर के छापे लग रहे हैं, अगर उन्होंने कोई कर चोरी नहीं की है तो उन्हें घबराहट होनी ही नहीं चाहिए।
सपा के मुखिया का कहना है कि चुनाव के मौके पर ही इन एजंसियों की सक्रियता क्यों दिखने लगती हैं। कांग्रेस और बसपा के नेताओं और उनके करीबियों पर तो फिलहाल किसी एजंसी ने छापे नहीं डाले हैं। अखिलेश का आरोप है कि मुकाबले में सपा है, इसलिए सपा के नेताओं और करीबियों को ही डराया जा रहा है। चूंकि उनकी सभाओं में खासी भीड़ जुट रही है तो जनता का मूड भांप भाजपा नेता बौखला गए हैं। छापों में तेजी अचानक चाचा-भतीजे यानी शिवपाल और अखिलेश के मिलकर चुनाव लड़ने से है।
(संकलन : मृणाल वल्लरी)