दिल्ली वाली बिजली
अरविंद केजरीवाल ने मुफ्त बिजली-पानी की सुविधा का आठ साल पहले दिल्ली में ऐसा मंत्र फूंका कि उनके इस कदम के लिए पहले जो उनकी लानत-मलानत करते नहीं अघाते थे वे ही अब केजरीवाल के फैलाए जाल में फंस रहे हैं। उत्तर प्रदेश में दूसरी पार्टियां जहां जातिवाद और सांप्रदायिक ध्रूवीकरण के सहारे अपनी चुनावी नैया पार लगाने में जुटी हैं, वहीं अरविंद केजरीवाल ने मुद्दों पर आधारित राजनीति को ही अपना एजंडा बनाया है। उत्तर प्रदेश में बेशक अभी न तो उनकी पार्टी का खास आधार है और न ही अभी वे दिल्ली की तरह यहां लोकप्रिय हो पाए हैं। हालांकि इस बार उनके राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने साल भर पहले से यहां प्रचार-प्रसार का अभियान चला रखा है।

केजरीवाल के लखनऊ दौरे की भनक लगते ही समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने एलान कर दिया कि सूबे में सपा की सरकार बनी तो हर गरीब को हर महीने तीन सौ यूनिट बिजली मुफ्त दी जाएगी। केजरीवाल लखनऊ आए तो अखिलेश की घोषणा पर कटाक्ष किया। डंके की चोट पर फरमाया कि मुफ्त बिजली केवल वे ही दे सकते हैं। पिछले आठ साल से वे दिल्ली में दे रहे हैं। इसका उन्हें वरदान हासिल है। सपा-भाजपा की सरकारों को कब्रिस्तान और श्मशान बनाना आता है। पर आम आदमी पार्टी लोगों की बुनियादी जरूरतों का ध्यान रखती है। उन्हें बिजली, पानी, शिक्षा और चिकित्सा मुफ्त उपलब्ध कराती है। उन्हें श्मशान और कब्रिस्तान नहीं स्कूल और अस्पताल बनाना आता है।

केजरीवाल के डर से अखिलेश यादव ने मुफ्त बिजली का दांव चला तो भला भाजपा ही कैसे पीछे रह जाती। कल तक मुफ्त बिजली के मामले में केजरीवाल को कोसने वाले सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी गुरुवार को एलान कर दिया कि किसानों से सिंचाई के लिए दी जाने वाली बिजली का आधा बिल उनकी सरकार भरेगी। एक अनुमान के अनुसार सूबे के 13 लाख किसानों के पास अपने नलकूप हैं। सरकार की इस घोषणा के पीछे मंशा किसानों की नाराजगी दूर करना है।

सरकार पर इसका सालाना बोझ महज एक हजार करोड़ रुपए ही होगा। पर केजरीवाल तो फिर भी कहेंगें कि उत्तर प्रदेश में आम उपभोक्ता के लिए बिजली देश के दूसरे सूबों की तुलना में कहीं महंगी है। साथ ही अखिलेश यादव की तरह योगी आदित्यनाथ पर भी लगाएंगे अपना मुद्दा चुराने का आरोप।
संतन की बात
हरिद्वार में पिछले साल दिसंबर में चार दिन तक चली कुछ तथाकथित साधुओं की कथित धर्म संसद की चर्चा पूरे देश में है। इसमें कुछ साधुओं ने एक समुदाय विशेष के खिलाफ जबरदस्त जहर उगला और इसके आयोजकों ने वीडियो वायरल किया। वीडियो वायरल होने से पूरे देश में हंगामा मच गया। इसके खिलाफ कार्रवाई की पुरजोर मांग उठी। जिन अनजान साधुओं को कोई नहीं जानता था और जिनका साधु समाज में कोई प्रभाव नहीं है वे रातों-रात चर्चा में आ गए। वे इस कथित धर्म संसद की आड़ में पूरे देश में अपना नाम फैलाना चाहते थे और वे इसमें कामयाब हुए।

इस कार्यक्रम में संत समाज के शीर्ष संतों, आचार्य महामंडलेश्वर अवधेशानंद गिरी, आचार्य महामंडलेश्वर कैलाशानंद गिरी और किसी शंकराचार्य तथा अखाड़ों के किसी महंत या जाने-माने किसी भी महामंडलेश्वर ने भाग नहीं लिया। इस कथित धर्म संसद को लेकर कोई टिप्पणी नहीं कर इससे अपने को दूर ही रखा। जब उत्तराखंड सरकार पर दबाव बना तो दिखावे के लिए कथित धर्म संसद के आयोजकों के खिलाफ थाने में दो-दो रिपोर्ट दर्ज करवाई जांच के लिए। एसआइटी गठित कर दी परंतु आज तक किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई।

राज्य के पुलिस महानिदेशक ने हरिद्वार के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक से जवाब तलब जरूर किया। उधर चर्चा में आए तथाकथित साधु संतों ने पुलिस थाने में रिपोर्ट दर्ज कराने के खिलाफ 16 जनवरी को प्रतिकार दिवस मनाने का एलान कर इस कार्रवाई का विरोध किया।ं

हालीलाज से अलग आवाज
पंजाब में प्रधानमंत्री के काफिले में सुरक्षा के मामले में भाजपा और कांग्रेस आमने-सामने है। लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के पुत्र व शिमला ग्रामीण से कांग्रेस विधायक विक्रमादित्य सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री की सुरक्षा का जिम्मा राज्य सरकार का था व इस मसले की जांच होनी चाहिए कि चूक कहां हुई। यह पहली बार नहीं है कि हालीलाज कांग्रेस के इस नेता ने पार्टी लाइन से हटकर कोई बात की हो।

इससे पहले जब किसान नेता राकेश टिकैत हिमाचल के दौरे पर आए थे और उनकी सोलन में आढ़तियों से जुबानी जंग हो गई थी तो भी विक्रमादित्य सिंह ने टिकैत के खिलाफ जुबानी रार शुरू कर दी थी। अब उन्होंने जो रुख लिया है उससे प्रदेश कांग्रेस में भीतर क्या चल रहा है इसकी झलक बाहर आ गई है।

वैसे भी हालीलाज कांग्रेस के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से करीबी रिश्ते रहे हैं। दीगर है कि यह मोदी का ही राज था जिसमें हालीलाज परिवार के सदस्यों के खिलाफ सीबीआइ और ईडी के मामले चल रहे हैं। लेकिन प्रदेश कांग्रेस में ये अलग-अलग बोल आने वाले दिनों में घटने वाले संभावित घटनाक्रमों की ओर संकेत जरूर दे रहे है। भाजपा के नेता कई कांग्रेस नेताओं पर निगाह रखे हुए हैं। उनसे संपर्क में होने का दावा भी करते रहते हैं।
(संकलन : मृणाल वल्लरी)