सियासी दल इन दिनों दल बदल की बीमारी से कुछ ज्यादा ही परेशान हैं। गोवा जैसे छोटे राज्यों में दल बदल की बीमारी का प्रकोप ज्यादा है। गोवा में पिछले चुनाव में कांग्रेस को चालीस में से सत्रह और भाजपा को तेरह सीटें मिली थीं। लेकिन सबसे बड़ा दल होने के बावजूद कांग्रेस मात खा गई।

दल बदल से सरकार भाजपा ने बनाई। हालत यह है कि पिछली बार कांग्रेस के जो सत्रह विधायक चुने गए थे, उनमें से इस समय पार्टी में महज दो ही बचे। बाकी दूसरे दलों में चले गए।

इस कटु अनुभव से सबक लेते हुए ही राहुल गांधी ने इस बार पार्टी के सभी उम्मीदवारों से हलफनामे भरवाए हैं कि वे दल बदल कर अपनी पार्टी के साथ गद्दारी नहीं करेंगे। पंजाब में यही सावधानी राहुल ने दूसरे तरीके से बरती।

सभी उम्मीदवारों को अपने साथ स्वर्ण मंदिर ले गए। उनसे पार्टी के प्रति वफादारी का संकल्प कराया। राहुल गांधी की देखा-देखी अरविंद केजरीवाल ने भी गोवा के अपने उम्मीदवारों से दल बदल नहीं करने, मतदाताओं और पार्टी के प्रति वफादार रहने व कोई बेईमानी या रिश्वतखोरी न करने के हलफनामे लिए हैं।

दल बदल रोकने के लिए राजीव गांधी ने अपने प्रधानमंत्री काल में कानून बनाया था। शुरू में यह प्रावधान किया था कि किसी दल के कम से कम एक तिहाई सदस्य अगर अलग होंगे, तभी विधानसभा अध्यक्ष उन्हें अलग दल की मान्यता देंगे।

अन्यथा दल बदल कानून के तहत ऐसे सदस्यों की सदस्यता खत्म हो जाएगी। छोटे दलों के विधायकों के पाला बदलने पर रोक फिर भी प्रभावी नहीं हो पाई। नतीजतन अलग दल के लिए कम से कम दो तिहाई सदस्यों के अलग होने पर ही मूल पार्टी के प्रति ऐसे मोह भंग को वैधानिक मान्यता मिलेगी।

इससे दल बदल पर तो कुछ रोक लगी पर राजनीतिक दलों और दल बदलुओं ने दूसरे तरीके खोज लिए। राहुल गांधी और केजरीवाल भूल रहे हैं कि सभी निर्वाचित प्रतिनिधि संविधान की शपथ तो लेते हैं पर उसकी मर्यादा का निर्वाह नहीं करते।

रही दल बदल कानून को धता बताने की बात तो अपनी सदस्यता से इस्तीफा देने से तो कोई कानून उन्हें रोकता नहीं और न कोई नैतिकता आड़े आती है। कर्नाटक और मध्यप्रदेश में हम पिछले दिनों कांग्रेसी विधायकों के थोक इस्तीफों के बाद बहुमत से कम संख्या के बावजूद भाजपा सरकारें बनने का सफल प्रयोग देख ही चुके हैं।

मौत से पहले की सुस्ती
हिमाचल प्रदेश में जहरीली शराब पीने से सात लोगों की मौत होने के बाद अवैध शराब की तस्करी के आरोपों में घिरे आधा दर्जन के करीब कांग्रेस पदाधिकारियों को कांग्रेस ने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निकाल दिया है।

कांग्रेस पार्टी के ऐसा करते ही मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर कांग्रेस पर हमलावर हो गए हैं। जयराम ठाकुर अब कहने लगे हैं कि कांग्रेस ने माफिया लोगों को आगे बढ़ाया व वह तो कांग्रेस से पार्टी का टिकट मांग रहे थे। यह ज्यादा खतरनाक था।

उधर, कांग्रेस नेताओं ने भी कहना शुरू कर दिया है कि अगर कोई पिछले चार साल से शराब की तस्करी कर रहा था तो सरकार ने यह तस्करी करने क्यों दी। क्या सब सरकार के संरक्षण में चल रहा था। इसका जवाब मुख्यमंत्री के पास नहीं है ।

इसी तरह कांग्रेस के लोग शराब तस्करी में क्यों शामिल थे इसका जवाब कांग्रेस नेताओं के पास भी नहीं है। दोनों दल अब एक-दूसरे पर इल्जाम लगाने पर आ गए हैं। उधर पुलिस व आबकारी विभाग है जो अब छापेमारी की रस्में पूरी करने में लगा है।

चूंकि आने वाले दिनों में विधानसभा का बजट सत्र शुरू होने वाला है, ऐसे में सदन में जवाब तलब होगा तो कुछ जवाब तो चाहिए ही। उधर, यह भी कहा लाने लगा है कि जब सरकार की नाक के नीचे कांग्रेस से जुड़े लोग इस तरह तस्करी कर फलते-फूलते रहें तो भाजपा के लोग कहां पहुंच गए होंगे।

ऐसा तो हो नहीं सकता कि ऐसे धंधों में कांग्रेस के ही लोग जुड़े हुए हो। अभी चाहे जितना भी हड़कंप मचा हो, धरपकड़ के लिए बस मौतें ही क्यों चाहिए होती है, इसका जवाब किसी को नहीं मिल रहा है।

जब नाम हो गुमनाम
उत्तराखंड कांग्रेस में हाल ही में शामिल हुए राज्य भाजपा सरकार के बर्खास्त कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत अब कांग्रेस में अपने को नहीं पचा पा रहे हैं। भाजपा के बाद कांग्रेस में भी वे दबाव की राजनीति नहीं कर पाए। कांग्रेस ने सिर्फ उनकी पुत्रवधु को टिकट दिया।

उत्तराखंड गठन के बाद वे पहली बार विधानसभा का मुंह नहीं देख पाएंगे। कांग्रेस में हरक सिंह रावत की उपेक्षा लगातार जारी है। हद तब पार हो गई जब देहरादून में कांग्रेस की राष्ट्रीय महामंत्री प्रियंका गांधी कांग्रेस का घोषणापत्र विधानसभा चुनाव के लिए जारी करने आई थीं।

घोषणापत्र जारी करते वक्त प्रियंका गांधी ने मंच पर बैठे पार्टी के सभी नेताओं का नाम लिया लेकिन हरक सिंह रावत का नाम नहीं लिया। इससे मंच पर बैठे हरक सिंह रावत का चेहरा उतर गया। प्रदेश कांग्रेस के नेताओं ने भी उन्हें नहीं पूछा।

जब मीडिया के सामने हरक सिंह की मौजूदगी में यह सवाल उठा कि प्रियंका गांधी ने हरक सिंह का नाम क्यों नहीं लिया तो कांग्रेसी बगलें झांकने लगे। प्रेस के सामने हरीश रावत ने यह कहकर मामले को रफा-दफा करना चाहा कि हरक सिंह रावत हमारी पार्टी के बड़े नेता हैं।

हरक सिंह रावत का चेहरा कांग्रेस के घोषणात्र जारी करने के समय से मुरझाया रहा। उनके चेहरे से लग रहा था जैसे वह भाजपा छोड़कर कांग्रेस में आने की अपनी गलती का अहसास कर रहे हैं।

(संकलन : मृणाल वल्लरी)