राजस्थान में भाजपा के रंग-ढंग बेढब हैं। विधानसभा चुनाव से पहले ही पार्टी का वोटबैंक छिन्न-भिन्न होने लगा है। यहां तक कि अगड़े तक रूठ रहे हैं। पार्टी के सबसे वरिष्ठ विधायक घनश्याम तिवाड़ी तो तीन साल से पीछे पड़े थे अपनी ही सरकार के। मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से छत्तीस के आंकड़े का नतीजा अलग पार्टी के रूप में सामने आ चुका है। ब्राह्मण मतदाताओं में तिवाड़ी की अनदेखी से बेचैनी है। जसवंत सिंह के बेटे मानवेंद्र सिंह की बगावत भी भाजपा के लिए झटका है। पिछले लोकसभा चुनाव में वसुंधरा ने जसवंत सिंह को बाडमेर से टिकट नहीं मिलने दिया था। ऊपर से उनके विधायक बेटे मानवेंद्र को भी हाशिए पर पहुंचा दिया।
मानवेंद्र ने भी बाडमेर में राजपूतों की स्वाभिमान रैली कर भाजपा और वसुंधरा दोनों को सबक सिखाने की धमकी दे डाली है। उनकी पत्नी चित्रा सिंह भी जोधपुर संभाग में वसुंधरा के खिलाफ मैदान में कूद चुकी हैं। पार्टी का कट्टर वोटबैंक समझा जाने वाला बनिया वर्ग भी नाखुश है। कम से कम इस तबके के नौजवान तो अपने कारोबार में लगे झटके का ठीकरा नोटबंदी और जीएसटी पर ही फोड़ रहे हैं। गुर्जर, माली और कुमावत भी मुंह फुलाए हैं। खतरा भांप वसुंधरा ने माली समाज के मदनलाल सैनी को पार्टी का सूबेदार बनवा लिया। लेकिन कांग्रेस के धुरंधर अशोक गहलोत के मुकाबले वे माली समाज में हलके साबित हुए हैं। ऊपर से वसुंधरा उन्हें ज्यादा तवज्जो दे भी नहीं रहीं। वे तो अब भी पूर्व सूबेदार अशोक परनामी को ही रखती हैं अपने साथ। सैनी तो पार्टी दफ्तर तक ही सिमट कर रह गए हैं।
कानून का मखौल
महाभारत में लाक्षागृह एक साजिश के तहत बना था ताकि उसे आसानी से आग में जलाया जा सके। पर कोलकाता की दशकों पुरानी बहुमंजिला इमारतें तो जैसे खुद-ब-खुद लाक्षागृह बन चुकी हैं। पश्चिम बंगाल की राजधानी की इमारतों की इस दुर्गति के लिए सरकारी उपेक्षा भी कम जिम्मेवार नहीं। बागड़ी मार्केट में इसी हफ्ते लगी भयावह आग से यही संदेश गया। छह मंजिला इमारत की हजारों दुकानें जल कर खाक हो गर्इं। आग के बाद पहुंचे महापौर और सूबे के दमकल मंत्री शोभन चटर्जी ने बेहिचक मान लिया कि इमारत में आग से बचाव के पुख्ता इंतजाम थे ही नहीं। तो फिर नगर निगम और दमकल विभाग क्या करते रहे? कैसे निगम ने इस बाजार के ट्रेड लाइसेंस का दो महीने पहले ही नवीकरण कर दिया।
साफ है कि आग से बचाव के उपायों को जांचा-परखा ही नहीं गया। पांच साल पहले बड़ा बाजार इलाके के भूमिगत वातानुकूलित बाजार में भी भयानक आग लगी थी। इससे पहले 2008 में नंदराम मार्केट की आग ने भी करोड़ों-अरबों का नुकसान किया था। लेकिन एक भी मामले में किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। इस बार फिर पहले जैसी रस्मअदायगी हो गई। सरकार ने कई समितियां बना डाली। विदेश दौरे पर गर्इं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने दुकानदारों को चेता दिया कि सामान अब फुटपाथ पर नहीं रख पाएंगे। अब तो नगर निगम ने एक नया खुलासा और किया है। यह कि बागड़ी मार्केट की ऊपरी पांच मंजिलें अवैध तरीके से बनाई गई थीं। यह तो और भी चौंकाने वाला पहलू है। सूबे की राजधानी में भी अगर कानून का खुलेआम मखौल उड़ाया जा सकता है तो फिर बाकी इलाकों की बात ही क्या?
(प्रस्तुति : अनिल बंसल)