बिहार में लोकसभा सीटों के बंटवारे को लेकर राजग के घटक दल दावे चाहे जितने करें पर अभी भी यह बंटवारा अबूझ पहेली ही बना हुआ है। दुविधा भाजपा के भीतर ज्यादा है। ऊपर से 2014 के सहयोगी दलों लोजपा (पासवान) और रालोसपा (कुशवाहा) की चुप्पी सब कुछ सहज नहीं होने का संकेत है। यों सूत्रों की मानें तो फिलहाल 40 में से जद (एकी) और भाजपा दोनों के 16-16 सीटों पर चुनाव लड़ने की सहमति की बात अंतिम दौर में है। बची आठ सीटों में से चार पासवान को और दो कुशवाहा को देने की चर्चा है। दो सीटें पप्पू यादव जैसे कद्दावर निर्दलियों के लिए प्रस्तावित हैं। जद (एकी) की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में नीतीश कुमार ने गठबंधन के भविष्य पर छाई धुंध को खुद छांटने की कवायद की। फरमाया कि तालमेल होगा और मौजूदा गठबंधन बना रहेगा। सीटों के बंटवारे के मामले में नीतीश की भाजपा आलकमान से चर्चा जारी है।

अब पेच पर गौर करें। पिछले चुनाव में राजद और कांग्रेस का गठबंधन था। नीतीश अकेले थे। भाजपा ने पासवान और कुशवाहा से गठबंधन किया था। पासवान को सात और कुशवाहा को तीन सीटें दी थीं। बाकी सीटें खुद लड़ी। भाजपा को 22, पासवान को 6 और कुशवाहा को तीन यानी तबके राजग को कुल 31 सीटों पर मिली थी छप्परफाड़ सफलता। मुख्यमंत्री होते हुए भी बेचारे नीतीश की पार्टी दो पर ही अटक गई थी। अब 2009 पर गौर करें तो पाएंगे कि तब भाजपा और जद (एकी) एक साथ थे। नीतीश ने भाजपा को महज 15 सीटें ही दी थीं। लालू के साथ महागठबंधन के बाद विधानसभा चुनाव में भी जद (एकी) का प्रदर्शन बेहतर रहा था। भाजपा को इस चुनाव में झटका लगा था। नीतीश को डर है कि भाजपा को ज्यादा आंखें दिखाई तो मुख्यमंत्री की कुर्सी खतरे में पड़ेगी।

कुर्सी का मोह वापस लालू की शरण में जाने को मजबूर करेगा। लिहाजा 25 सीटों की रट अब छोड़नी पड़ी है। भाजपा भी कितना झुकेगी। बेशक उसे लालू, कांग्रेस, मांझी और वामपंथियों के गठबंधन से खतरा महसूस हो रहा है पर अपने मौजूदा सांसदों और जीती हुई सीटों को गंवाना भी तो घाटे का ही सौदा कहलाएगा। यानी 16 से नीचे जाना केंद्र में अपनी हैसियत चुनाव से पहले ही कम आंकना माना जाएगा। लुका-छिपी के इस खेल को पासवान और कुशवाहा चुपचाप देख रहे हैं। वे भी अपनी मौजूदा सीटों को क्यों गंवाना चाहेंगे? भाजपा को शिकस्त देने की रणनीति के तहत अगर लालू यादव और कांग्रेस ने इन दोनों को भाजपा से ज्यादा सीटों की पेशकश कर दी तो क्या होगा? कुशवाहा तो यों भी नीतीश से नाखुश ही चल रहे हैं। पिछले दिनों उन्होंने एक सार्वजनिक सभा में चुटकी भी ली थी कि कुशवाहा और यादव मिल जाएं तो बिहार के सियासी समीकरणों को बदल सकते हैं। यानी बिहार में राजग की सियासी संभावनाओं पर अनिश्चय के बादल आसानी से छंटते नहीं लगते।