हवाई दावे
कामयाब नहीं हो पाई देहरादून में अमित शाह की रैली। कहने को उत्तराखंड के भाजपा नेताओं ने परिवर्तन रैली में अपने अध्यक्ष का जलवा दिखाने का दावा किया था। पर भीड़ जुटाने में नाकाम साबित हुए गढ़वाल मंडल के पार्टी नेता। 22 विधानसभा क्षेत्रों से उंगली पर गिने जाने लायक लोग ही जुट पाए। भगत सिंह कोश्यारी, भुवनचंद खंडूड़ी और रमेश पोखरियाल निशंक की उपेक्षा का परिणाम भी कह सकते हैं। खंड़ूड़ी और कोश्यारी तो पार्टी आलाकमान से खफा भी चल रहे हैं। बुजुर्ग बता उन्हें संन्यास दिलाने की मंशा हो तो वे खुश होंगे भी क्यों? नोट बदलने के फैसले ने भी प्रतिकूल असर दिखाया। अमित शाह को सुनने से ज्यादा इच्छुक लोग बैंक शाखाओं के बाहर खड़े होकर नोट बदलवाते दिखे। ले-देकर हरिद्वार के विधायक मदन कौशिक ने बचाई थोड़ी बहुत लाज। कांग्रेसी मुख्यमंत्री हरीश रावत के मुकाबले वैसे भी कोई कद्दावर चेहरा अब तक मैदान में नहीं उतार पाए हैं अमित शाह। सतपाल महाराज, हरक सिंह रावत और विजय बहुगुणा जैसे धुरंधरों को तो दलबदलू होने के चलते बड़ी जिम्मेदारी सौंप नहीं सकता भगवा दल।
विस्तार का धुनी
नीकु पर अब दोहरी जिम्मेवारी है। नीकु यानी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार। सरकार तो चला ही रहे हैं, अपनी पार्टी जद (एकी) के अध्यक्ष का बोझ भी वहन कर रहे हैं। पिछले दिनों अपने पार्टी पदाधिकारियों का एलान किया। ज्यादातर पुराने पदाधिकारियों को ही बनाए रखा है। ज्यादा फेरबदल कर फिजूल का झंझट मोल लेने से फायदा भी क्या? पार्टी में एक तरह का यथास्थितिवाद रखने में कठिनाई भी क्या है? ज्यादा दिन नहीं बीते जब सूबे में जनता दल (एकी) सबसे बड़ी पार्टी थी। लालू यादव की राजद तीसरे नंबर की पार्टी थी। पर अब तीसरे नंबर वाली पहले नंबर पर है तो नीकु की पहले नंबर वाली पार्टी की हैसियत दूसरे नंबर की हो गई है। दोनों सरकार में एक दूसरे की सहयोगी बेशक हों पर नीकु की मंशा अपनी पार्टी को राजद से ज्यादा मजबूत करने की क्यों न होगी। जाहिर है कि इसके लिए वे तैयारी भी कर रहे हैं। लोकसभा चुनाव पहले होगा। उसी में ताकत का अंदाज हो जाएगा। उसके बाद विधानसभा चुनाव होगा तो तस्वीर पूरी तरह साफ दिखेगी। दोनों चुनावों में अभी काफी वक्त है। पर तैयारी तो नीकु लगातार कर रहे हैं। पड़ोस में उत्तर प्रदेश है। वहां नेताजी यानी मुलायम सिंह यादव की पार्टी सत्ता में है। नीकु के यादव से अच्छे रिश्ते नहीं हैं। इसलिए नीकु वहां भी अपने उम्मीदवार उतारेंगे। कम से कम खाता तो खुल जाए। इससे संदेश दे पाएंगे कि पार्टी का अध्यक्ष बनने के बाद बिहार के बाहर भी विस्तार कर दिया। सो, पार्टी के नेताओं में वे कोई बिखराव क्यों करते?
500, 1000 के नोट बदलवाने हैं? लोगों के पास आ रहीं ऐसी फ्रॉड काल्स
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