लोकसभा चुनाव को लेकर खासी चौकन्नी दिख रही हैं दीदी। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने पहले तो असम के एनआरसी को इसी नजरिए से मुद्दा बनाया। फिर रोजगार और उद्योग धंधों के सवाल पर विरोधियों की तमाम आलोचनाओं का जवाब देने की मंशा से कोलकाता से सटे राजरहाट इलाके में सिलिकॉन वैली का शिलान्यास कर दिया। इंफोसिस के अलावा रिलायंस जियो ने भी यहां भारी-भरकम निवेश का एलान किया है। फिर भला क्यों न बम-बम हों ममता और उनके समर्थक। रही एनआरसी मुद्दे पर ममता बनर्जी न केवल सक्रिय हैं बल्कि अपनी बात को तार्किक तरीके से पेश कर रही हैं।

एनआरसी के मसौदे से जो चालीस लाख नाम बाहर छोड़े गए हैं उनमें 25 लाख बंगाली हिंदू ठहरे। जबकि बंगाली मुसलमान महज 13 लाख ही हैं। ममता ने एक और सवाल उठाया है कि केंद्र की भाजपा सरकार क्या बांग्लादेश से आने वाली हिल्सा मछली और जामदानी साड़ी को भी घुसपैठिया करार देगी। दरअसल भाजपा अध्यक्ष ने पिछले हफ्ते सूबे की तृणमूल कांग्रेस सरकार और उसके नेताओं पर तीखा हमला बोला था। भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार में लिप्त होने का आरोप भी लगा दिया था। पर तृणमूल कांग्रेस ने भाजपा आलाकमान को लेकर दलील दे डाली कि वे सूबे की संस्कृति के बारे में कुछ भी नहीं जानते।

सीमावर्ती इलाकों में भाजपा को बंगाल विरोधी बताते हुए चुनाव प्रचार भी शुरू कर दिया है तृणमूल कांग्रेस ने। भाजपा आलाकमान भले दावा कर गए कि पश्चिम बंगाल में अगली सरकार भाजपा की बनेगी, लेकिन जमीनी हकीकत को समझने वालों के गले यह दावा कतई नहीं उतर रहा। कांग्रेस और वाम मोर्चे को पछाड़ने का मतलब सूबे की सत्ता पर काबिज हो जाना तो नहीं हो सकता। अभी तो तृणमूल कांग्रेस की तुलना में कुछ भी नहीं है भाजपा का जनाधार।

नीतीश का संकट
नीतीश कुमार लोकसभा चुनाव में अपने अच्छे दिन को लेकर बेफिक्र कैसे हो सकते हैं? मुजफ्फरपुर बालिका गृहकांड के मुख्य अभियुक्त बृजेश ठाकुर की वजह से कितनी किरकिरी हो गई। अब राजधानी पटना के राजीव नगर की उपबस्ती नेपाली नगर में मानसिक तौर पर विक्षिप्त महिलाओं के आश्रय गृह की सर्वेसर्वा मनीषा दयाल के कारण खूब आलोचना हो रही है नीतीश सरकार की। बृजेश ठाकुर के मामले की तो सीबीआइ पटना हाई कोर्ट की निगरानी में जांच कर रही है। लेकिन आसरा आश्रय गृह के मामले को सूबे की पुलिस ही खंगाल रही है। इस गृह से चार महिलाओं के गायब होने की खबर फैली तो खलबली मच गई। जांच-पड़ताल के दौरान दो महिलाएं वापस आ भी गर्इं। लेकिन कौन नहीं जानता कि मनीषा की पहुंच बहुत ऊंची है। सत्ता के गलियारों में धमक है।

नीतीश सरकार के कई मंत्रियों और आला अफसरों से करीबी रिश्ते हैं। विरोधी दलों में भी पहचान है। सचमुच में कानून मनीषा के मामले में स्वतंत्र रूप से अपना काम कर पाएगा, इस पर हर कोई संदेह जता रहा है बिहार में। सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों तक पहुंच हो तो हल्ला कोई करेगा भी नहीं। नीतीश कुमार दावे तो सुशासन और पारदर्शिता के करते रहे हैं तो फिर इन मामलों की भनक क्यों नहीं लगी उन्हें? अब तो तमाम आश्रय गृहों की छानबीन की मांग उठ रही है। ऐसे में नीतीश कुमार अपनी छवि को धूमिल होने से कैसे बचा पाएंगे।