मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लिए भी कोरोना कम मुसीबत लेकर नहीं आया। अपने मंत्रिमंडल का गठन भी नहीं कर पाए बेचारे। कमलनाथ सरकार के त्यागपत्र के बाद चौहान ने 23 मार्च को सूबे के मुख्यमंत्री के रूप में चौथी बार शपथ ली थी। इससे एक दिन पहले 22 मार्च को प्रधानमंत्री की अपील पर देशभर में जनता कर्फ्यू था। चौहान ने जल्दबाजी में अकेले ही शपथ ली थी। मंत्रिपरिषद का चयन करने का वक्त ही नहीं मिला था। मिलता भी कैसे? कांग्रेस से इस्तीफा देने वाले विधायकों से किए गए वादों पर भी तो खरा उतरना था। चर्चा तो यहां तक थी कि ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थकों में से एक को उपमुख्यमंत्री भी बनाया जाएगा। इसी कुर्सी की हसरत भाजपा के नरोत्तम मिश्र की भी होगी ही। आखिर दल बदलुओं के समर्थन से कर्नाटक में बनी भाजपा सरकार में भी तो मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के साथ एक-दो नहीं बल्कि तीन उपमुख्यमंत्री हैं। बहरहाल कोरोना से जारी जंग से बतौर सरकार अब मुख्यमंत्री शिवराज चौहान अकेले ही लड़ रहे हैं। मंत्रियों का चयन एक तो कैसे ही उनके लिए हंसी खेल नहीं है। ऊपर से आलाकमान की मंजूरी भी लेनी पड़ेगी। इस्तीफा देकर कांग्रेस छोड़ने वालों की फिक्र तो करनी ही पड़ेगी। पर उनके चक्कर में अपनी पार्टी के कद्दावर नेताओं की उपेक्षा भी नहीं कर सकते। पाठकों को बता दें कि मुख्यमंत्री इकलौते सरकार तो जरूर चला सकते हैं पर कैबिनेट की बैठक नहीं बुला सकते। कैबिनेट तभी मानी जाती है जब मुख्यमंत्री के अलावा कम से कम एक मंत्री तो जरूर हो। फिलहाल उन्हें सारे फैसले कैबिनेट से अनुमोदन की प्रत्याशा में करने पड़ रहे हैं। चौहान अकेले नहीं हैं। ऐसी ही परिस्थिति से येदियुरप्पा को भी जूझना पड़ा था। जिन्होंने कुमार स्वामी सरकार के पतन के बाद खुद मुख्यमंत्री पद की शपथ तो पिछले साल 26 जुलाई को अवश्य ले ली थी पर मंत्रिमंडल का गठन एक महीने बाद कर पाए थे। इस दौरान शिवराज चौहान की तरह ही अपने सूबे में वे भी ‘वन मैन आर्मी’ रहे।

नायाब मिसाल
कोरोना विषाणु के वैश्विक प्रकोप और उसके कारण 130 करोड़ की आबादी वाले देश भारत में जारी तीन हफ्ते की लॉकडाउन अवधि में राजस्थान सरकार ने बेहतर प्रदर्शन कर अपनी धाक जमाई। पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इसका श्रेय खुद लेने के बजाए दिन-रात जूझ रहे कोरोना योद्धाओं को ही दिया। सूबे के औद्योगिक शहर भीलवाड़ा का उदाहरण सारे देश की नौकरशाही के लिए अनुकरणीय हो गया है। भीलवाड़ा के जिला कलेक्टर राजेंद्र भट्ट तो एक भी दिन चैन की नींद नहीं सोए। कमाल तो यह है कि भट्ट सीधे आइएएस सेवा में नहीं आए। राजस्थान राज्य सिविल सेवा से तरक्की पाकर आइएएस बने हैं। कलेक्टर का पद आइएएस के लिए है। मातहतों से उत्तम तालमेल बनाया उन्होंने। उनकी चौकसी, मेहनत और कुशलता ने भीलवाड़ा को बचा लिया तभी तो देश के कैबिनेट सचिव ने भी सराहना की उनकी। दूसरे कलेक्टरों को भीलवाड़ा माडल अपनाने की सलाह भी दे डाली। स्वास्थ्य महकमे को देख रहे वरिष्ठ आइएएस रोहित कुमार सिंह ने भी दूरदृष्टि से काम लिया और सूबे में कोरोना का संक्रमण बेकाबू नहीं होने दिया। टीम भावना से काम करने के लिए शोहरत है उनकी। पहले केंद्र सरकार के सड़Þक परिवहन मंत्रालय में रहते हुए भी यश कमाया था। मुख्य सचिव से लेकर जमीनी कार्यकर्ता तक शासन-प्रशासन का पूरा तंत्र राजस्थान में समन्वय के साथ कोरोना के खिलाफ महायुद्ध लड़ रहा है। राजधानी जयपुर के रामगंज इलाके में हुए कोरोना के विस्फोट ने अलबत्ता राज्य सरकार को परेशान कर दिया। मुख्यमंत्री ने इस इलाके के लिए अलग से एक आइएएस को नोडल अफसर बना दिया। सरकार को विश्वास है कि भीलवाड़ा की तरह रामगंज से भी निपट लेगी। अशोक गहलोत कर्मठ अफसरों के पारखी माने जाते हैं। उनका प्रोत्साहन मिलने से नौकरशाह गुटबाजी भुलाकर मिशन भाव से जुटे हैं।

नई डगर
जन धन की हानि और अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव को तो कोरोना के संदर्भ में हर कोई चर्चा कर रहा है। पर सियासत और सियासी दिग्गजों को होने वाले इसके नुकसान का आकलन करने की अभी हमें फुर्सत ही नहीं। बेचारे ज्योतिरादित्य सिंधिया को ही लें। भाजपा में कौन-कौन से मंसूबे लेकर शामिल हुए थे। केंद्र सरकार में बरास्ता राज्यसभा मंत्री बन गए होते अब तक तो। उनके समर्थक पूर्व विधायकों का भी पुनर्वास हो चुका होता। पर कोरोना ने व्यवधान डाल दिया। कोरोना के कारण चुनाव आयोग को राज्यसभा और विधान परिषदों के चुनाव भी टालने पड़ गए। पर दिल की धड़कन तो शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से पूछो कितनी बढ़ गई थी। पिछले साल 28 नवंबर को ली थी उद्धव ने शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन के नेता के नाते महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की शपथ। उनका बेटा आदित्य ठाकरे मंत्री है उनकी सरकार में। उद्धव की दुविधा यह है कि वे विधान मंडल के किसी भी सदन के सदस्य नहीं हैं अभी तक। इस रूप में अधिकतम छह महीने ही रह सकते हैं मुख्यमंत्री। योजना तो निर्वाचन के जरिए विधान परिषद सदस्य बन जाने की थी पर कोरोना के कारण कौन जाने कब करा पाएगा चुनाव आयोग यह चुनाव। लिहाजा नई तरकीब सोच ली। गुरुवार को महाराष्ट्र मंत्रिमंडल ने उद्धव ठाकरे को विधान परिषद का सदस्य नामित करने की सिफारिश कर दी राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से। पाठकों को बता दें कि सरकार की सिफारिश पर राज्य विधान परिषद में समाज के दो नामचीन लोगों को नामित कर सकते हैं राज्यपाल। दोनों सीटें खाली भी पड़ी हैं। जिस बैठक में यह प्रस्ताव पारित हुआ, उसकी अध्यक्षता उपमुख्यमंत्री अजीत पवार ने की। मामला उद्धव के हित से जुड़ा था तो इस बैठक से खुद को अलग रख ठीक ही किया उन्होंने। हो सकता है कोश्यारी इस सिफारिश पर तत्काल कोई फैसला न लें पर नियमानुसार तो वे मंत्रिपरिषद की सलाह को ठुकरा नहीं पाएंगे। राज्यपाल की मंजूरी मिली तो नया सियासी इतिहास बनेगा एक नामित सदस्य के मुख्यमंत्री बनने का। निर्दलीय विधायक के नाते किसी सूबे का मुख्यमंत्री बने रहने का रिकार्ड तो खैर पहले ही झारखंड में मधु कोड़ा के नाम दर्ज है।
प्रस्तुति : अनिल बंसल