बीच में बेशक खटास रही हो पर फिर मधुर हो गए हैं नीतीश कुमार और सुशील मोदी के रिश्ते। तभी तो भाजपाई कह रहे हैं कि विरोधी कितने भी जलें, नीतीश और मोदी की जोड़ी का रंग फीका नहीं पड़ने वाला। इस बार भी पहले की तरह ही सुशील मोदी उपमुख्यमंत्री हैं। रही नीतीश की बात तो वे न केवल मुख्यमंत्री हैं बल्कि अब तो अपनी पार्टी के सिरमौर भी वही हैं। अपनी पार्टी में स्थिति सुशील मोदी की भी कम मजबूत नहीं।

दल बेशक अलग हैं पर नीतीश और मोदी एक ही सिक्के के दो पहलू दिखते हैं। सियासी गलियारे में नीतीश को मोदी का संरक्षक तो मोदी को नीतीश की छाया कहा जाता है। एक-दूसरे के प्रति कर्तव्य के निर्वाह में कोई भी पीछे नहीं। नीतीश हर अहम मौके पर मोदी को साथ रखते हैं। तभी तो विरोधी हमला नीतीश पर करें तो जवाब मोदी की तरफ से आता है। मुजफ्फरपुर बालिका गृह कांड ने सुर्खियां बटोरी और नीतीश सरकार की मंत्री मंजू वर्मा के इस्तीफे की मांग उठी तो विरोध सबसे पहले सुशील मोदी ने किया। मंजू वर्मा भाजपा की नहीं, जद (एकी) की ठहरीं। इससे मोदी को कोई फर्क नहीं पड़ा।

यह बात अलग है कि बाद में मंजू वर्मा को इस्तीफा देना ही पड़ा। भतीजे राजद नेता तेजस्वी जब भी चाचा नीतीश पर हमला करते हैं, जवाब सबसे पहले सुशील मोदी ही देते हैं। नीतीश की छाया बनना मोदी को महंगा पड़ता है। मसलन, उनकी पार्टी के नेता ही उनसे खफा रहते हैं। वे भूल जाते हैं कि जब भाजपा और जद (एकी) गठबंधन टूट गया था तब भी नीतीश और सुशील मोदी का आपसी प्रेम खत्म नहीं हुआ था। दोनों एक-दूसरे की सीधे आलोचना करने से बचते थे। जैसे ही फिर से भाजपा और जद (एकी) साथ आए, सबसे ज्यादा खुशी सुशील मोदी के चेहरे पर नजर आई। आखिर मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री की बेहतर तालमेल वाली ऐसी दूसरी कोई सियासी जोड़ी है भी कहां?