चिंताजनक है कि स्मार्ट फोन में गुम लोगों के आंकड़े भले व्यक्तिगत जीवन से जुड़े हैं, इनका असर पूरी सामाजिक-पारिवारिक व्यवस्था पर पड़ रहा है। बुजुर्गों के साथ संवाद रखने से लेकर बच्चों की परवरिश तक, सब कुछ प्रभावित हो रहा है।वैवाहिक रिश्तों का बिखरना आज सामुदायिक चिंता का विषय बन गया है। समाज के हर तबके में परिवार टूट रहे हैं। मन से जुड़ने का भाव नदारद है। संवादहीन साथ अब हर घर का किस्सा है। बातचीत ही नहीं, तो जज्बात भी गायब हो रहे हैं। पति-पत्नी अजब-गजब व्यस्तता में उलझे हैं। घर में मौजूद और ठीक बगल में बैठा इंसान भी असल में घर से अनुपस्थित है।

विडंबना है कि दूर बसे अपनों की खैरियत जानने की सुगमता देने वाले स्मार्ट फोन अब करीबी रिश्तों में भी खटास पैदा कर रहे हैं। दुनिया से जुड़ जाने की सहूलियत देने वाला स्मार्टफोन अपनों और अपने परिवेश से ही काट रहा है। आभासी दुनिया में प्रशंसा बांटते और बटोरते युवाओं को जज्बात और जिम्मेदारियों के मोर्चे पर बेवजह पीछे धकेलने वाले हालात पैदा कर रहा है।

‘स्मार्टफोन और मानवीय संबंधों पर उसका असर- 2022’ विषय पर कराए गए एक अध्ययन में सड़सठ फीसद लोगों ने माना कि अपने जीवनसाथी के साथ समय बिताने के वक्त भी वे फोन में झांकते रहते हैं। उन्यासी फीसद ने कहा कि वे जीवनसाथी के साथ सहज बातचीत को कम वक्त दे पाए, चाहते तो अधिक समय दे सकते थे। आमने-सामने बैठकर बातें करने को बेहतर मानने के बावजूद अध्ययन में शामिल अट्ठासी फीसद लोगों ने माना कि स्मार्टफोन का ज्यादा इस्तेमाल जीवनसाथी के साथ रिश्ते बिगाड़ रहा है। इस अध्ययन में दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, हैदराबाद, बंगलुरु, अहमदाबाद और पुणे जैसे शहरों में बसे लोगों को शामिल किया गया था।

दरअसल, स्मार्टफोन ने मानवीय सहजता और दिनचर्या दोनों को बुरी तरह प्रभावित किया है। संवाद और सूचनाओं का माध्यम बन कर आए फोन ने लोगों की जिंदगी पर ही कब्जा जमा लिया है। हर आयु वर्ग के लोगों का लंबा समय इस उपकरण के साथ बीत रहा है। इसी अध्ययन में सामने आया है कि विवाहित उपयोगकर्ता प्रतिदिन औसतन 4.7 घंटे फोन पर बिताते हैं। यह अवधि पति और पत्नी दोनों के लिए समान है। यानी दोनों ही असल के बजाय आभासी संसार को समय दे रहे हैं। समझना मुश्किल नहीं कि तिहत्तर फीसद लोगों ने अपने जीवनसाथी के प्रति यह शिकायत जताई है कि वे फोन में ज्यादा उलझे रहते हैं।

असल में देखा जाए तो यह सिर्फ आंकड़ों में समझने-परखने भर की बात नहीं है। स्मार्टफोन का हद से ज्यादा इस्तेमाल वाकई लोगों के विचार और व्यवहार पर दुष्प्रभाव डाल रहा है। इसी अध्ययन के मुताबिक सत्तर फीसद लोगों को स्मार्टफोन देखते समय जीवनसाथी कुछ कहता है, तो वे झल्ला जाते हैं। हैरानी नहीं कि हमारे घरों में अब मामूली विवाद भी तूल पकड़ने लगे हैं।

अनदेखी और उपेक्षा का भाव भी बहुत-सी आपराधिक घटनाओं का कारण बन रहा है। बीते साल ओड़ीशा के बोलांगीर जिले में सत्रह साल के एक किशोर ने फोन खरीदने के लिए अपनी पत्नी को राजस्थान ले जाकर पचपन साल के शख्स को बेच दिया। दो महीने पहले ही यह शादी हुई थी। उस किशोर ने सोशल मीडिया के जरिए ही प्रेम होने के बाद चौबीस साल की उस लड़की से शादी की थी।

महज एक स्मार्टफोन के लिए सोच-समझ ही नहीं, जीवनभर के साथ वाले रिश्ते से जुड़ी संवेदनाएं तक वह बेच आया। 2016 में अमेरिका के लास वेगस में बसे एक शख्स का अपने स्मार्टफोन से ही शादी कर लेने का चकित करने वाला समाचार था। फोन से शादी करने वाले शख्स ने कहा था कि ‘लोग अपने फोन से इतना अधिक जुड़े हुए हैं कि वे हमेशा उसके साथ रहते हैं और यह शादी जैसा ही लगता है। लोग अपने फोन के साथ ही सोते, उठते और बैठते हैं।’ ऐसे में ‘स्मार्टफोन और मानवीय संबंधों को लेकर हुए इस ताजा सर्वे के आंकड़े भी विवाहित जीवन में फोन तक ही सिमट गई जिंदगी का खाका सामने रखते हैं।

यकीनन, जरूरत के लत बन जाने की स्थितियां स्मार्ट फोन के कसते घेरे में सुस्त हो रही इंसानी समझ की कटु हकीकत है और रीतते स्नेह संवाद की भी। आभासी संसार में बीत रहे वक्त ने बुनियादी बातों और हालात के प्रति परिपक्व लोगों की समझ भी कम कर दी है। चिंताजनक है कि स्मार्टफोन में गुम लोगों के आंकड़े भले व्यक्तिगत जीवन से जुड़े हैं, इनका असर पूरी सामाजिक-पारिवारिक व्यवस्था पर पड़ रहा है।

बुजुर्गों के साथ संवाद रखने से लेकर बच्चों की परवरिश तक, सब कुछ प्रभावित हो रहा है। अब शादीशुदा लोगों की मौजूदगी भी डेटिंग एप्स से लेकर आभासी दुनिया के अजब-गजब संबंधों तक, हर जगह देखने को मिल रही है। एक ओर तलाक के आंकड़े बढ़ रहे हैं, तो दूसरी ओर विवाहेतर संबंधों से जुड़े अपराध भी आए दिन सामने आते हैं।

जीवनसाथी से मिल रही उपेक्षा पति-पत्नी दोनों में ही भावनात्मक टूटन ला रही है। साथ ही हर समय चलने वाले वार्तालाप या सोशल मीडिया की व्यस्तता, शक और संदेह उपजाने की भी वजह बन रहे हैं। महानगरों ही नहीं, दूरदराज के इलाकों में भी पुलिस थानों तक शादीशुदा जोड़ों के बीच मोबाइल फोन के हद से ज्यादा इस्तेमाल से हो रहे विवादों के मामले भी पहुंच रहे हैं।

एक ओर युवा अभिभावकों द्वारा बच्चों को समय देने के बजाय कम उम्र में ही स्मार्टफोन थमा दिया जा रहा है, तो दूसरी ओर वे खुद अपने बुजुर्ग अभिभावकों से दूर हो रहे हैं। ‘द लिबर्टी इन लाइफ आफ ओल्डर पीपल 2022’ नाम से दस शहरों में कराए गए एक सर्वेक्षण में करीब पैंसठ फीसद वरिष्ठ नागरिकों ने बताया कि मोबाइल फोन और अन्य तकनीक को अपनाने से युवा पीढ़ी के साथ उनका व्यक्तिगत संवाद प्रभावित हुआ है। 72.5 फीसद बुजुर्गों ने माना कि उनकी पीढ़ी के लोग परिवार में वरिष्ठजनों के साथ ज्यादा समय बिताते थे।

वहीं अभिभावकों और बच्चों को लेकर किए गए मिशिगन यूनिवर्सिटी के जर्नल में छपे ताजा अध्ययन के मुताबिक खुद तकनीकी उपकरणों में गुम अभिभावक रोते बच्चे को चुप कराने के लिए उसे स्मार्टफोन, आईपैड जैसे डिजिटल उपकरण दे देते हैं। यह बालमन को दिशाहीन करने वाला बर्ताव है। बच्चों की तेजी से बदलती मन:स्थिति का कारण डिजिटल उपकरणों में उलझे रहने के रूप में सामने आया है।

बच्चों में उदासी और खुशी के आवेग की अधिकता जैसे लक्षणों की जांच करते हुए अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि छोटे बच्चों के रोने पर डिजिटल उपकरणों में उलझाए रखना भविष्य में बच्चों के व्यवहार पर दुष्प्रभाव डालता है। विशेष रूप से बच्चे खुद को संयमित रखना नहीं सीख पाते। कई अन्य अध्ययन भी बताते हैं कि स्मार्टफोन बच्चों को आक्रामक और आत्मकेंद्रित बना रहे हैं। जबकि विवाहित जीवन में नई पीढ़ी की सही और स्वस्थ परवरिश भी एक अहम दायित्व है।

वैवाहिक जीवन से जुड़ी कई परेशानियों का कारण जीवनसाथी के साथ सार्थक संवाद न होना ही है। घर-परिवार में सार्थक विमर्श की दरकार होती ही है। एक दूजे को समय दिए बिना रिश्ते में संवाद और सहजता नहीं आ सकती। इस अध्ययन का एक अहम पक्ष यह भी है कि अधिकतर लोग स्मार्टफोन के ज्यादा इस्तेमाल का नुकसान समझ रहे हैं। स्मार्टफोन के नुकसान को समझते हुए नब्बे फीसद लोगों ने अपने जीवनसाथी के साथ अर्थपूर्ण बातचीत करके बेहतर वक्त बिताने की इच्छा भी जताई है। ऐसे में स्मार्टफोन के उपयोग में भी आत्मनियमन जरूरी है। समझना आवश्यक है कि कोई तकनीकी सहूलियत जीवन को आसान बनाए, न कि मुश्किल।