ब्रह्मदीप अलूने
चीन और रूस की बढ़ती नजदीकियों से अमेरिका और नाटो की नींद उड़ी हुई है। रूस के मुकाबले चीन कहीं बड़ा प्रतिद्वंद्वी बन कर अमेरिका के सामने आ गया है। इससे निपटने के लिए बाइडेन यूरोप की ओर देख रहे हैं। नाटो यूरोप और उत्तरी अमेरिका के देशों के मध्य एक सैन्य गठबंधन है, जिसका उद्देश्य साम्यवाद और रूस का प्रभाव कम करना रहा है। अब चीन की बढ़ती ताकत से साम्यवाद के मजबूत होने की आशंका नाटो को परेशान कर रही है।
इतिहास को फिर से गढ़ने की महत्त्वाकांक्षाएं अक्सर विध्वंसक परिणामों से आशंकित रहती हैं। चीन और रूस जैसे देश अपने स्वर्णिम इतिहास को दोहराने की कोशिशों में भौगोलिक और सांस्कृतिक विखंडन को दरकिनार करना चाहते हैं, जो असंभव होकर अस्थिरता को बढ़ाते हैं। इसके बाद भी इन राष्ट्रों की शक्तिकी अतिप्रबलता से सब कुछ हासिल करने की कोशिशें बदस्तूर जारी हैं। इससे विश्व शांति के लिए बड़ा खतरा खड़ा हो गया है।
दरअसल पूर्वी यूरोप का यूक्रेन संकट करीब एक हजार साल पहले कीवियाई रूस की उस ऐतिहासिक पहचान से प्रभावित है, जिसे रूसी राष्ट्रपति पुतिन किसी भी स्थिति में बनाए और बचाए रखने के लिए दृढ़ संकल्पित नजर आ रहे हैं। कीवियाई रूस मध्यकालीन यूरोप का एक राज्य था। आधुनिक रूस, बेलारूस और यूक्रेन तीनों अपनी पहचान कीवियाई रूस राज्य से लेते हैं। अब ये राज्य अलग-अलग हैं।
यूक्रेन रूसी पहचान से अलग होने को बेताब है, वहीं रूस और बेलारूस साथ-साथ खड़े नजर आते हैं। यूक्रेन पर दबाव बनाने के लिए रूस ने बेलारूस में अपने सैनिकों के साथ अत्याधुनिक और विध्वंसक हथियार जमा कर लिए हैं। रूस यूक्रेन को केवल एक अन्य देश के रूप में नहीं देखता है, वह उसे बहुस्लाविक राष्ट्र मानता है। सामरिक सुरक्षा के लिए भी रूस के लिए यूक्रेन सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। इसलिए वह उसे कूटनीतिक और सैन्य रणनीति की धुरी के तौर पर ज्यादा देखता है। यूक्रेन रूस की पश्चिमी सीमा पर है। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जब पश्चिमी देशों ने तत्कालीन सोवियत संघ पर हमला किया था, तब यूक्रेन के इलाके से ही उसने अपनी रक्षा की थी। यूक्रेन की सीमा पश्चिम में यूरोपीय देशों और पूर्व में रूस के साथ लगती है।
पिछले तीन दशकों में मध्य और पूर्वी यूरोप की राजनीतिक स्थिति में बड़े बदलाव हुए हैं। इससे सामरिक प्रतिद्वंद्विता भी तेजी से बढ़ी है। इस क्षेत्र में दुनिया की बड़ी शक्तियों के बीच भू-राजनीतिक मुकाबला चरम पर है। यूक्रेन पश्चिमी देशों के साथ अपने रिश्तों को मजबूत करने की लगातार कोशिश कर रहा है। 1991 में सोवियत संघ के बिखराव के बाद यूक्रेन एक स्वतंत्र देश के रूप में उभरा था। उसका भौगोलिक जुड़ाव यूरोप से है। इसे सामरिक रूप से एक शक्तिशाली देश माना जाता है। इसका एक कारण यह भी है कि अविभाजित सोवियत संघ के अधिकांश परमाणु केंद्र यूक्रेन में ही थे।
इसलिए यह न केवल रूस के लिए अहम बना रहा, बल्कि यूरोपीय देशों की नजर भी इस पर बनी रही। 2002 में जब यूक्रेन ने नाटो में शामिल होने की आधिकारिक प्रक्रिया शुरू करने का एलान किया तो रूसी राष्ट्रपति पुतिन को यह नागवार गुजरा। खुफिया एजेंसी केजीबी का मानना है कि पश्चिमी देशों के गोपनीय अभियानों के कारण सोवियत संघ का विघटन हुआ था। पुतिन केजीबी के अधिकारी रहे हैं और उनके कार्यों में बदला और पुराना गौरव लौटाने की चेष्टा अक्सर दिखाई देती है। इसीलिए उन्होंने यूक्रेन को कमजोर करने के लिए उसके एक क्षेत्र क्रीमिया को 2014 में रूस में मिला लिया था।
पुतिन के इस कदम की वैश्विक स्तर पर कड़ी आलोचना हुई थी। इसके बाद रूस के पर प्रतिबंध लगाए गए थे और पश्चिम के साथ इसके अलगाव को और बल मिला था। क्रीमियाई शहर सेवास्तोपोल का बंदरगाह प्रमुख नौसैनिक अड्डा है और यहां रूसी पोतों की मौजूदगी तनाव का कारण बन गई है। इस समय यूक्रेन की सीमा पर रूस का पूरा दबाव है। वहां युद्ध पूर्व के हालात साफ दिख रहे हैं।
रूस का आरोप है कि नाटो देश यूक्रेन को लगातार हथियारों की आपूर्ति कर रहे हैं और अमेरिका दोनों देशों के बीच के तनाव को भड़का रहा है। रूस चाहता है कि नाटो की सेनाएं 1997 के पहले की तरह सीमाओं पर लौट जाएं और नाटो गठबंधन पूर्व में अब अपनी सेना का और विस्तार न करे और पूर्वी यूरोप में अपनी सैन्य गतिविधियां बंद कर दे। इसका मतलब ये होगा कि नाटो को पोलैंड और बाल्टिक देशों एस्तोनिया, लातविया और लिथुआनिया से अपनी सेनाएं वापस बुलानी होंगी।
रूस पर सामरिक दबाव बनाने के लिए नाटो और अमेरिका के लिए यूक्रेन निर्णायक भूमिका में नजर आता है। नाटो की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक समुद्री सुरक्षा है, जिसके लिए उसने अटलांटिक महासागर और हिंद महासागर को केंद्र में रखा है। उसके लिए काला सागर भी सामरिक रूप से अहम है जो रूस और यूक्रेन से जुड़ा है। नाटो जमीन, आसमान, अंतरिक्ष और साइबर चुनौतियों से निपटने के लिए अपनी सेना को अत्याधुनिक बनाने की ओर अग्रसर है। इसमें उसकी सीधी प्रतिद्वंदिता रूस और चीन से है।
गौरतलब है कि सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस के नेतृत्व में सामूहिक सुरक्षा और सामूहिक हितों के प्रति एक दूसरे पर निर्भरता बढ़ाने के लिए आठ दिसंबर 1991 को एक स्वतंत्र राष्ट्र संगठन- कामनवेल्थ आफ इंडिपेंडेंट स्टेट्स (सीआइएस) का गठन किया गया था, जिसे मिंस्क समझौता कहा जाता है। सोवियत संघ के विघटन के परिणामस्वरूप अस्तित्व में आए राज्यों की सीआईएस के अंतर्गत सामूहिक नीतियां बनाई गई थीं। यह संगठन मुख्य रूप से व्यापार, वित्त, कानून निर्माण, सुरक्षा और सदस्यों के बीच तालमेल बनाने जैसे काम करता है।
इस संगठन की स्थापना में यूक्रेन का भी अहम योगदान रहा था। लेकिन रूस को लेकर यूक्रेन के हस्तक्षेप से अब स्थितियां बदल गई हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन ने रूस को चेतावनी दी है कि रूस ने यदि यूक्रेन पर हमला किया तो उस पर कड़े प्रतिबंधों का सामना करना पड़ेगा। कूटनीतिक रूप से यह माना जा रहा है कि रूस के लिए सबसे बड़ा आर्थिक झटका यह हो सकता है कि रूस की बैंकिंग प्रणाली को अंतरराष्ट्रीय भुगतान प्रणाली से काट दिया जाए।
यूक्रेन संकट में रूस के साथ चीन का आना नई आर्थिक और सामरिक व्यवस्था की संभावनाओं को बढ़ा सकता है। यूक्रेन में संकट बढ़ने पर चीन अगर रूस का खुले रूप से समर्थन करता है तो यूरोपीय संघ इसका विरोध कर सकता है। यूरोपीय संघ चीन का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है। यूक्रेन संकट के बढ़ने पर पश्चिम के देश भी रूस पर प्रतिबंध लगा सकते हैं।
ऐसे में चीन रूस को बड़ी आर्थिक मदद दे सकता है। इस मदद में वैकल्पिक भुगतान व्यवस्था तैयार करना, रूस के बैंकों और कारोबारी प्रतिष्ठानों को कर्ज देना और रूस से तेल की खरीद जैसे कदम शामिल हैं। 1991 में सोवियत संघ के विघटन और वैश्वीकरण की नीति के बाद वैश्विक परिस्थितियां बदलने के साथ चीन का आर्थिक दबदबा बढ़ा और उसे रूस पर बढ़त हासिल हो गई। इसी का प्रभाव है कि चीन का रूस से सीमा विवाद लगभग समाप्त हो चुका है।
चीन रूस की बढ़ती नजदीकियों से अमेरिका और नाटो की नींद उड़ी हुई है। रूस के मुकाबले चीन कहीं बड़ा प्रतिद्वंदी बन कर अमेरिका के सामने आ गया है। इससे निपटने के लिए बाइडेन यूरोप की ओर देख रहे हैं। नाटो यूरोप और उत्तरी अमेरिका के देशों के मध्य एक सैन्य गठबंधन है जिसका उद्देश्य साम्यवाद और रूस का प्रभाव कम करना रहा है।
अब चीन की बढ़ती ताकत से साम्यवाद के मजबूत होने की आशंका नाटो को परेशान कर रही है। अमेरिका और चीन के बीच जारी व्यापार युद्ध पर भी रूस का रुख साम्यवाद को मजबूत करता नजर आ रहा है जो वैश्विक तौर पर चीन-रूस की भागीदारी को प्रतिबिंबित करता है। जाहिर है, यूक्रेन को लेकर जो युद्ध की जो आशंकाएं गहरा रही हैं, उसका वैश्विक असर बेहद खतरनाक हो सकता है। यह नए शीत युद्ध के उभरने के स्पष्ट संकेत हैं जो पहले से ज्यादा विनाशकारी हो सकते हैं।