पठानकोट वायुसेना अड्डे पर हमला दो कारणों से काफी गंभीर है। पहला कारण यह है कि जम्मू-कश्मीर से बाहर किसी सैन्य प्रतिष्ठान पर पहला यह इतना बड़ा सुनियोजित आतंकी हमला है। क्योंकि अभी तक आतंकी जम्मू-कश्मीर के अंदर ही ज्यादातर सैन्य प्रतिष्ठानों और सुरक्षा बलों के केंद्रों पर हमला करते रहे हैं। बाकी भारत में आतंकियों के निशाने पर नागरिकों के भीड़भाड़ वाले इलाके ही रहे हैं। लेकिन पाकिस्तान में सैन्य प्रतिष्ठानों पर होने वाले हमलों की तर्ज पर पहली बार एक बड़ा हमला भारतीय वायुसेना अड््डे पर किया गया। इससे पहले कश्मीर में अवंतीपुरा वायुसेना अड््डे पर आतंकियों ने हमला बोला था। पठानकोट हमले की गंभीरता का दूसरा कारण यह है कि इस हमले से निपटने में भारतीय सुरक्षा बलों को सत्तर घंटे से ज्यादा समय लगा। लंबे आॅपरेशन और सैन्य प्रतिष्ठानों में इतनी आसानी से आतंकी घुसपैठ ने देश के सैन्य प्रतिष्ठानों की चाकचौबंद सुरक्षा व्यवस्था के दावे की पोल खोल दी है।
किसी भी आतंकी हमले के चार चरण होते हैं। पहले चरण में जब आतंकी हमला होता है तो आम नागरिक उसका शिकार होता है। दूसरा चरण कॉमबेट स्टेज होता है, जिसमें पुलिस और सुरक्षा बलों का नुकसान ज्यादा होता है, जब पुलिस इलाके का घेरा डालती है। मुंबई में आतंकी हमले के दौरान पुलिस अधिकारी हेमंत करकरे की मौत इसका उदाहरण है। तीसरा चरण वह चरण होता है, जब प्रशिक्षित सुरक्षा बल आतंकियों से मुकाबला करते हैं। तीसरे चरण में हमलावरों की या तो मौत होती है या वे पकड़े जाते हैं। ज्यादातर मुकाबलों में आतंकी मारे जाते हैं। पकड़े जाने की संभावना कम होती है। चौथा चरण पूर्ण अधिकार का होता है, जिसमें सुरक्षा बल आतंकियों को मारने के बाद पूरे क्षेत्र की तलाशी लेते हैं।
पठानकोट हमले के पहले चरण में खासा नुकसान हुआ, लेकिन यह नुकसान नागरिकों का न होकर वायुसेना के सैनिकों का हुआ। दूसरे चरण में जब सुरक्षा बलों ने घेरा डाला तो उन्हें तीन आतंकियों को मारने के लिए लंबा संघर्ष करना पड़ा। पहला आतंकी तो सुबह ही मारा गया, लेकिन बाकी तीन शाम चार बजे मारे गए। लेकिन पठानकोट हमले में सबसे बड़ी विफलता थी पूर्ण अधिकार के चौथे और अंतिम चरण में एक लेफ्टिनेंट कर्नल का शहीद होना, क्योंकि इसमें जरूरी सावधानी बरते बिना तलाशी ली गई। एनएसजी यह अंदाज नहीं लगा पाई कि आतंकी के शरीर में विस्फोटक है। पठानकोट हमले के चार चरणों में सुरक्षा बलों को मुश्किलों का सामना करना पड़ा। अब बहस यह हो रही है कि अगर आतंकी एक साथ कुछ और सैन्य प्रतिष्ठानों पर हमला करते तो हम इससे निपटने में कितने सफल रहते। सामान्य रूप से चौथे चरण में सुरक्षा बलों को कोई नुकसान नहीं होता, लेकिन पठानकोट में हो गया।
पठानकोट हमले के बाद भारतीय सुरक्षा बलों की त्वरित कार्रवाई करने की क्षमता सवालों के घेरे में है। क्योंकि इस हमले को लेकर कई महत्त्वपूर्ण जानकारियां पहले से थीं। लेकिन लापरवाही के कारण नुकसान को रोका नहीं गया। वायुसेना के अधिकारियों को खुफिया जानकारी के आधार पर बताया गया कि दो जनवरी की रात साढ़े तीन बजे आतंकी वायुसेना के अड््डे के अंदर फायरिंग शुरू कर देंगे। सही खुफिया जानकारी को बताने के लिए एक जनवरी की शाम को पंजाब के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक कानून एवं व्यवस्था ने पठानकोट में ही वायुसेना के अधिकारियों के साथ बैठक की। लेकिन दिलचस्प स्थिति थी कि वायुसेना ने एक छोटे रैंक के अधिकारी को बैठक में भेज दिया था। बैठक में पंजाब पुलिस की काउंटर इंटेलिजेंस शाखा ने सीमा पार के टेप किए गए टेलीफोनों के आधार पर बताया कि आतंकी दो जनवरी की रात को साढ़े तीन बजे गोलीबारी करेंगे। लेकिन एयरफोर्स ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। यही कारण है कि आतंकियों ने जब गोलीबारी शुरू की तो वायु सेना के कई लोग शहीद हो गए।
पठानकोट एयरबेस में आतंकियों के खिलाफ हुई कार्रवाई के दौरान नियंत्रण और आदेश पर सवाल उठा है। पूरे आॅपरेशन का नियंत्रण और आदेश किसके हाथ में रहेगा इस पर फैसला लेने में काफी देर की गई। पूरी कार्रवाई में नियंत्रण और आदेश की शक्ति एनएसजी के हाथ में रहेगी या सेना के, इस पर फैसला लेने में देरी हो गई। इस कारण नुकसान ज्यादा हुआ। आतंकी मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने और प्रोपगंडा हासिल करने में कामयाब हो गए। पंजाब पुलिस एयरबेस के बाहर ही तैनात थी और पूरे आॅपरेशन से बाहर थी। क्योंकि हमला एयरबेस के अंदर था। लेकिन पठानकोट में सेना के एक डिवीजन के स्थायी रूप से तैनात होने के बाद भी पूरे वायुसेना अड््डे को घेरने और अंदर महत्त्वपूर्ण जगहों को सुरक्षित करने में देरी की गई। वायुसेना के तकनीकी केंद्र को, जहां पर वायुसेना के लड़ाकू विमान थे, घेरा गया लेकिन कई महत्त्वपूर्ण इलाकों में घेराबंदी नहीं की गई।
पठानकोट हमले के बाद आतंकी हमलों के दौरान सुरक्षा बलों द्वारा अपनाई जाने वाली रणनीति और प्रयोग में लाने वाले हथियारों को लेकर नई रणनीति बन रही है। क्योंकि आत्मघाती हमलों ने आतंकवाद का स्वरूप बदला है। आतंकी हमलों के दौरान पिछले कुछ सालों में सुरक्षा बलों का नुकसान आतंकियों से ज्यादा हुआ है, इससे सुरक्षा बल चिंतित हैं। मुंबई हमले से लेकर कश्मीर में होने वाले आतंकी हमलों में सुरक्षा बलों को आतंकियों के मुकाबले ज्यादा नुकसान हुआ है।
सुरक्षा बलों की रणनीति घायल कर पकड़ने की है। इसके चलते सुरक्षा बलों को नुकसान की संभावना ज्यादा होती है। क्योंकि उनकी प्राथमिकता आतंकी को जिंदा पकड़ने की होती है, जिसमें घायल आतंकी को पकड़ना होता है। इस समस्या को देखते हुए दुनिया के कई देशों ने आतंकी हमलों में दुश्मन को सीधे मारने की रणनीति का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। उसी हिसाब से सुरक्षा बलों को हथियार भी दे रहे हैं। अभी तक भारत में रणनीति रही है कि आतंकियों को जिंदा पकड़ा जाए, उनसे और जानकारी हासिल की जाए। खासकर पाकिस्तान के खिलाफ पुख्ता सबूत उपलब्ध करने के लिए भी इस रणनीति को अपनाया गया है। लेकिन इसका एक नुकसान यह है कि घायल अवस्था में भी आतंकी पकड़ में आने से पहले गोलीबारी कर सुरक्षा बलों को ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता है। फिर आत्मघाती दस्तों के हमलों ने आतंकवाद की परिभाषा बदल दी है। क्योंकि इसमें आतंकी खुद मरने के लिए आता है। वह सुरक्षा बलों के हाथों में आने से पहले ही विस्फोटक से अपने आप को उड़ाता है।
पठानकोट हमले के बाद सवाल सीमा सुरक्षा बल पर भी उठा है। सीमा सुरक्षा बल सीमावर्ती इलाकों में आतंकियों की घुसपैठ रोकने में विफल है। इसके कारण कई हो सकते हैं। लेकिन सीमा सुरक्षा बल भी अपनी जिम्मवारी से भाग नहीं सकते हैं। पठानकोट गुरदासपुर सीमा पर पिछले छह महीने में दो बार घुसपैठ हुई। दोनों बार सीमा सुरक्षा बल ने अपनी जिम्मेवारी से हाथ झाड़ लिया, जबकि सच्चाई यह थी कि आतंकियों को लेकर खुफिया सूचना मिली थी।
पठानकोट हमले से पहले आतंकियों की घुसपैठ को लेकर 29 दिसंबर को एक एलर्ट था। आतंकी भारतीय सीमा में 30-31 दिसंबर को आए। खुफिया विभाग ने एक एलर्ट जारी कर बताया था कि सीमा पार के एक गांव मशरूर बड़ा भाई में 19 से 24 साल के आठ लड़के 29 दिसंबर को देखे गए थे, जैश और लश्कर से संबंधित थे। इसी दिन पश्तो भाषा बोलने वाले पठानी सलवार-कमीज पहने चार और लोग पहुंचे, जिन्होंने गांव की मस्जिद में बैठक की। इस बैठक में पाकिस्तानी खुफिया एजेंसियों से संबंधित फील्ड इंटेलिजेंस यूनिट के कुछ लोग भी बाद में शामिल हो गए। इसके बाद ये भारतीय सीमा की तरफ बढ़ गए। सीमा सुरक्षा बल की चौकियों को भी इसकी सूचना दे दी गई थी। लेकिन घुसपैठ को रोका नहीं जा सका। इससे यही साबित होता कि सीमा सुरक्षा के क्षेत्र में बड़ी खामियां हैं और विदेशी ताकतों की घुसपैठ हमारे सीमा सुरक्षा के जिम्मेवार लोगों के बीच भी है।
पठानकोट हमले में ड्रग तस्करों की भूमिका भी जांच के घेरे में है। बताया जा रहा है कि आतंकियों को घुसपैठ करने से लेकर एयरफोर्स बेस तक पहुंचाने में ड्रग तस्करों की भूमिका रही है। अहम सवाल यह है कि पहले भी ड्रग तस्करों के सीमावर्ती इलाके में भारी प्रभाव को लेकर केंद्र और राज्य सरकार की रिपोर्ट आती रही है। लेकिन आज तक केंद्र और राज्य की तरफ से सख्त कर्रवाई नहीं हुई है। गुरदासपुर, अमृतसर और फिरोजपुर जिलों में ड्रग तस्करों का प्रभाव रहा है। गुरदासपुर जिले में रावी नदी के बहाव के कारण कई इलाकों में सीमा पर बाड़बंदी कामयाब नहीं हो पाई है। इसका लाभ ड्रग तस्कर उठाते हैं। ड्रग तस्करों का सीमा पार आना-जाना लगा रहता है। इसमें भारतीय सीमा की सुरक्षा के लिए जिम्मेवार सीमा सुरक्षा बल और पाकिस्तानी सीमा की सुरक्षा के लिए जिम्मेवार पाकिस्तानी रेंजरों की भी मिलीभगत है।
खतरनाक संकेत यह है कि सीमावर्ती जिलों में ड्रग तस्करों का गठजोड़ स्थानीय पुलिस अधिकारी और कई राजनेताओं के साथ है। इस गठजोड़ का खुलासा कई बार हुआ है। लेकिन कार्रवाई के बजाय मामले को दबाया गया है। उधर पाकिस्तानी सीमा में नशीले पदार्थों के तस्करों पर जेहादियों का भारी दबाव होता है। वे जेहादियों को कमाई का एक बड़ा हिस्सा भी देते हैं और भारतीय सीमा में घुसपैठ में उन्हें सहायता भी करते हैं। इसमें तस्कर पुलिस और नेताओं के बीच अपने संबंधों का इस्तेमाल करते हैं।