रंजना मिश्रा
सरकार, समाज और पर्यटन उद्यमी मिलकर स्थितियों में काफी कुछ बदलाव ला सकते और पर्यटन को देखने-समझने का एक नया नजरिया विकसित कर सकते हैं, जो सतत, जिम्मेदार, विकासशील और टिकाऊ पर्यटन को बढ़ावा देगा। यह इतना बड़ा क्षेत्र है कि अगर दुनिया के पैमाने पर देखें तो रोजगार प्राप्त करने वाला हर दसवां व्यक्ति पर्यटन के क्षेत्र में काम कर रहा है और जीडीपी में इस क्षेत्र का बड़ा योगदान है।
दुनिया भर में पर्यटन उद्योग ऊंचाइयां छू रहा था कि अचानक कोरोना महामारी ने दस्तक दे दी और सब कुछ थम गया। दुनिया के हर हिस्से और हर तबके पर इसका गहरा असर पड़ा। बड़ी-बड़ी अर्थव्यवस्थाएं चरमराने लगीं, चलती-फिरती जिंदगी थम गई। इसका सबसे ज्यादा असर पर्यटन क्षेत्र पर पड़ा। बंदिशों ने पर्यटन के पैरों में बेड़ियां डाल दीं। पर्यटन उद्योग से जुड़े करोड़ों लोगों को इसकी मार झेलनी पड़ी, जिससे अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुंचा।
पूर्णबंदी की वजह से भारत में पर्यटकों की संख्या में तिरानबे फीसद गिरावट दर्ज की गई, दूसरी लहर में उन्यासी फीसद और तीसरी लहर में चौंसठ फीसद की कमी आई। महामारी से पहले भारत में करीब चार करोड़ लोग पर्यटन उद्योग से जुड़े थे, लेकिन कोरोना की वजह से करीब तीन करोड़ लोगों का रोजगार छिन गया। राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, दूसरी लहर के दौरान अप्रैल-जून 2020 तक भारत की जीडीपी में 24.4 फीसद की गिरावट दर्ज की गई थी, जो देश के इतिहास में अब तक की सबसे बड़ी गिरावट थी।
वहीं महामारी की वजह से दुनिया भर की जीडीपी में दो खरब डालर की कमी आई। कोरोना ने जब पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी और पर्यटन की रफ्तार को पटरी से उतार दिया, तो ऐसे वक्त में देश की पहली जरूरत थी, लोगों के पस्त हौसलों में जान फूंकना तथा पर्यटन की गति को दुबारा रफ्तार देना। अच्छी बात है कि अब पर्यटन उद्योग में घरेलू और वैश्विक दोनों स्तरों पर सुधार देखने को मिल रहा है।
पर्यटन उद्योग की तरफ से पेश की गई रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय पर्यटन का बाजार 2024 तक बयालीस अरब डालर और 2025 तक पैंतालीस अरब डालर तक पहुंच जाएगा। वर्ल्ड इकोनामिक फोरम ने यात्रा और पर्यटन विकास सूचकांक 2021 में 4.1 अंकों के साथ भारत को चौवनवां स्थान दिया था। 2019 में भारत की रैंकिंग चौंतीस थी। राष्ट्रीय पर्यटन नीति 2022 में पर्यटन को उद्योग का दर्जा दिया जाएगा, जिसमें हरित पर्यटन और डिजिटल पर्यटन पर जोर होगा। राष्ट्रीय पर्यटन नीति का लक्ष्य 2030 तक भारत को विश्व के शीर्ष पांच पर्यटन केंद्रों में शुमार करना है, जो टिकाऊ, जिम्मेदार और समावेशी पर्यटन को बढ़ावा दे।
मगर पर्यटन को बढ़ावा देना ही काफी नहीं है। इसके साथ-साथ प्रकृति का संरक्षण भी करना होगा। उत्तराखंड में सबसे ऊंची चोटियों और ग्लेशियरों पर जम कर कचरा फेंका जा रहा है। होटल, रेस्तरां और कचरे का प्रबंधन करने वाली एजंसियां भी पहाड़ों पर कचरा फेंक कर अपनी जिम्मेदारी पूरी समझ रहे हैं। ग्लेशियर और ऊंची पर्वत चोटियां जीवन देने वाली नदियों और झरनों का अहम स्रोत हैं।
जिस प्राकृतिक विशिष्टता के कारण पर्यटक यहां आते हैं, उसे खतरे में नहीं डाला जा सकता। असल में यात्री पर्यावरण को प्रभावित करते हैं और ये प्रभाव पर्यावरण के साथ-साथ आर्थिक और सामाजिक स्थितियों पर भी पड़ता है। इसलिए अब टिकाऊ और जिम्मेदार पर्यटन भारत जैसे देश की जरूरत है। सरकार, समाज और पर्यटन उद्यमी मिलकर स्थितियों में काफी कुछ बदलाव ला सकते और पर्यटन को देखने-समझने का एक नया नजरिया विकसित कर सकते हैं, जो सतत, जिम्मेदार, विकासशील और टिकाऊ पर्यटन को बढ़ावा देगा।
यह इतना बड़ा क्षेत्र है कि अगर दुनिया के पैमाने पर देखें तो रोजगार प्राप्त करने वाला हर दसवां व्यक्ति पर्यटन के क्षेत्र में काम कर रहा है और जीडीपी में इस क्षेत्र का बड़ा योगदान है। यह सेवा क्षेत्र को गति प्रदान करता है। पर्यटन उद्योग के विकास के साथ हवाई सेवा, होटल, भूतल परिवहन आदि व्यवसायों में भी वृद्धि होती है। भारत में आने वाले विदेशी यात्रियों से विदेशी मुद्रा की प्राप्ति होती है। पर्यटन से सांस्कृतिक आदान-प्रदान में मदद मिलती है।
आंकड़ों के मुताबिक भारत में पर्यटन की गुंजाइश काफी है। इसका कारण है, हमारे देश में ऐतिहासिक और प्राकृतिक क्षेत्रों की बहुलता। साथ ही चिकित्सा पर्यटन, योग जैसे नए-नए क्षेत्रों को भी पर्यटन से जोड़ा जा रहा है। इस साल हमें यह सोचने की जरूरत है कि हमारे देश में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए और क्या-क्या किया जा सकता है। नए क्षेत्रों जैसे चिकित्सा पर्यटन, साहित्यिक पर्यटन आदि में भी अनेक संभावनाएं हैं, इसके अलावा ऐतिहासिक क्षेत्रों, धर्म तथा तीर्थ स्थानों से जुड़े पर्यटन को बढ़ावा देने की जरूरत है। हमारे देश में पर्यटन के क्षेत्र में अब भी बहुत-सी चुनौतियां हैं।
पर्यटकों को अब भी कई बुनियादी सुविधाओं से संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जैसे खराब सड़कें, पानी, सीवर, होटल और दूरसंचार व्यवस्था आदि। विशेषकर विदेशी पर्यटकों की सुरक्षा पर्यटन के विकास में एक बड़ी बाधा है। विदेशी नागरिकों, खासकर महिलाओं पर हमले भारत की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल उठाते हैं। भारत में पर्यटन उद्योग के लिए कुशल जनशक्ति की कमी भी एक बड़ी चुनौती है।
पर्यटक तभी आकर्षित होंगे, जब वे आराम से, सहूलियत और सुरक्षा के साथ कहीं जा सकेंगे। इसलिए हमें अवसर के साथ-साथ चुनौतियों पर भी पूरा ध्यान देना होगा। हमारे पास पर्यटकों को आकर्षित करने वाले स्थान तो मौजूद हैं, लेकिन वहां व्यवस्था की कमी के कारण इन पर्यटन स्थलों का भरपूर लाभ नहीं उठा पाते। वैश्विक पैमाने पर पर्यटन के क्षेत्र में हमारे देश की रैंकिंग अभी काफी नीचे है।
इसका कारण यही है कि हम पर्यटकों को आधारभूत सुविधाएं मुहैया कराने में अभी काफी पीछे हैं। इसके अलावा हमें केवल विदेशी पर्यटकों पर ही ध्यान केंद्रित नहीं करना चाहिए, घरेलू पर्यटन को भी बढ़ावा देना चाहिए, क्योंकि किसी भी देश का पर्यटन क्षेत्र अपने घरेलू पर्यटन को बढ़ाए बिना प्रगति नहीं कर सकता। हमारे देश में पर्यटन को लेकर सबसे बड़ी चुनौती पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन की है।
किसी भी स्थल की वहन क्षमता (कैरिंग कैपेसिटी) को ध्यान में रखते हुए वहां व्यवस्था करने की आवश्यकता है, क्योंकि अक्सर ऐसा होता है कि पर्यटन स्थलों में सुविधाएं तो सीमित होती हैं, लेकिन लोगों की भीड़ बहुत बढ़ जाती है, जिससे इन स्थलों के सीमित संसाधनों पर दबाव बहुत बढ़ जाता है और इससे हमारी धरोहरों पर भी खतरा मंडराने लगता है। इसलिए इन पर्यटन स्थलों पर आने वाले पर्यटकों की संख्या, उन स्थलों की वहन क्षमता के आधार पर निर्धारित करनी होगी। देश के प्रमुख पर्यटन स्थलों में फैली गंदगी एक बड़ी समस्या है, जिसके कारण पश्चिमी देशों के पर्यटक ऐसी जगहों में जाना पसंद नहीं करते। भारत अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को उजागर करने में वैसी सफलता नहीं हासिल कर पाया, जैसी कि पश्चिम के देशों को हासिल हुई है।
पर्यटन उद्योग में भौतिक, सामाजिक और डिजिटल सभी प्रकार के बुनियादी ढांचे का तेजी से विकास होना चाहिए। पर्यटकों की सुरक्षा बेहद जरूरी है। देश के नागरिकों को पर्यटकों के साथ उचित व्यवहार करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए, ताकि उन्हें धोखाधड़ी जैसी समस्याओं का सामना न करना पड़े। भारत में मौसम के हिसाब से पर्यटन उद्योग में उतार-चढ़ाव आता है, इस समस्या को हल करने के लिए पर्यटन के अन्य रूपों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। हर राज्य की अपनी खासियत है, उस ओर पर्यटकों को आकर्षित करना होगा। पर्यटन के क्षेत्र में कुशल कार्य बल के स्तर में भी सुधार की जरूरत है, क्योंकि जिस हिसाब से मांग और अवसरों में बढ़ोतरी होती है, उसी हिसाब से कुशल जनशक्ति की जरूरत बढ़ती है। उम्मीद है कि इस साल इन तमाम चुनौतियों पर ध्यान दिया जाएगा।