सुशील कुमार सिंह
भारत में 2006 में राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना का अनावरण किया गया था। इस नीति के अंतर्गत सेवाओं को वेब-सक्षम बनाया गया। डिजिटलीकरण की प्रक्रिया को तेज करने के लिए सार्वजनिक निजी भागीदारी पर जोर दिया गया। इसके बावजूद डिजिटल अवसंरचना के मार्ग में अनेक चुनौतियां अब भी व्याप्त हैं। विषम और दुर्गम क्षेत्रों में जनसंख्या के कम घनत्व और प्राकृतिक बाधाओं के चलते इंटरनेट का न पहुंच पाना डिजिटल सुविधा में रुकावट है।
नागरिक केंद्रित व्यवस्था में सुशासन के लिए तैयार डिजिटल अवसंरचना एक महत्त्वपूर्ण स्थान ले चुकी है। ई-गवर्नेंस एक ऐसा क्षेत्र और साधन है, जिसके जरिए नौकरशाही का समुचित प्रयोग करके व्यवस्था की कठिनाइयों को समाप्त किया जा सकता है। इसके अलावा, आनलाइन सेवा देकर सीधे और बिना रुकावट के कार्य संस्कृति को बनाए रखना आसान है। अब देश की विकास यात्रा कमोबेश डिजिटलीकरण पर निर्भर है।
ऐसे में डिजिटल अवसंरचना को मजबूत बनाना न केवल समय की मांग, बल्कि आम आदमी तक पहुंच बनाने का सशक्त जरिया है। बशर्ते आम आदमी समावेशी और बुनियादी विकास की चुनौतियों से मुक्त होकर सुजीवन की राह पर हो। गौरतलब है कि एक मजबूत आधारभूत डिजिटल ढांचे से उत्पादकता बढ़ा कर जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि करने वाली सेवाओं को समुचित किया जा सकता है। ई-सुविधा, ई-अस्पताल, ई-याचिका और ई-अदालत जैसे कई ऐसे फलक हैं, जिनसे सुशासन को ऊंचाई देना संभव है।
गौरतलब है कि इलेक्ट्रानिक सेवा (ई-सेवा) 1999 में आरंभ किए गए ‘ट्विन्स प्रोजेक्ट’ का ही परिवर्द्धित संस्करण है, जिसे भुगतान की बुनियादी सेवाओं के लिए हैदराबाद-सिंकदराबाद युगल शहरों में शुरू किया गया था, जो अब पूरे देश में फैल चुका है। गौरतलब है कि डिजिटल अवसंरचना तकनीक, नेटवर्क, तंत्र और प्रक्रियाओं का एक ऐसा संग्रह है, जो मानव घटकों के साथ मिलकर सूचना प्रणाली को सुदृढ़ बनाने में मदद करता है।
जाहिर है, इसका विकास इंटरनेट जैसी व्यापक और सघन संरचना से ही संभव है। भारत की 140 करोड़ की आबादी में लगभग अस्सी करोड़ की इंटरनेट तक पहुंच है। अनुमान है कि 2025 तक यह आंकड़ा नब्बे करोड़ हो जाएगा। भारत में डिजिटल संपर्क को बढ़ावा देने की दिशा में व्यापक प्रयास किए गए हैं। मगर अभी सभी तक इसकी पहुंच संभव नहीं हुई है, ऐसे में ई-गवर्नेंस में निहित सुशासन सामाजिक-आर्थिक विकास की दृष्टि से और सुधार की बाट जोह रहा है।
डिजिटल भुगतान जैसी पहल ने वित्तीय सेवाओं को अधिक समावेशी और किफायती बना दिया है। वस्तु एवं सेवा कर इसी डिजिटल अवसंरचना के माध्यम से संग्रह के मामले में नित निए कीर्तिमान बना रहा है। ई-कामर्स के क्षेत्र में हो रही वृद्धि इसी संरचना का एक और उदाहरण है। डिजिटल प्रौद्योगिकी के उपयोग से ई-कामर्स राजस्व वर्ष 2017 के उनतालीस अरब अमेरिकी डालर से बढ़ कर वर्ष 2020 में एक सौ बीस अरब डालर हो गया था। राष्ट्रीय कृषि बाजार और ग्रामीण कृषि बाजार की आधारभूत कमियां भी इसी के चलते काफी हद तक दूर हुई हैं। देश भर में लगभग बाईस हजार ऐसे ग्रामीण कृषि बाजार संचालित हैं, जो किसानों को स्थानीय स्तर पर अपनी उपज बेचने में मदद करते हैं।
हालांकि इस अवसंरचना का लाभ सभी किसानों तक तभी पहुंचेगा, जब उनकी आर्थिक स्थिति बेहतर होगी। राष्ट्रीय स्वास्थ्य पोर्टल, नेशनल टेलीमेडिसिन नेटवर्क और ई-अस्पताल समेत आनलाइन पंजीकरण प्रणाली ने स्वास्थ सेवा की दिशा में कार्य को सरल बनाया है। गौरतलब है कि सार्वजनिक अस्पतालों में आनलाइन पंजीकरण, शुल्क का भुगतान, रक्त उपलब्धता की जानकारी आदि जैसी सेवाओं की शुरुआत 2015 में हो गई थी। डिजिटल अवसरंचना का शिक्षा के क्षेत्र में भी योगदान बहुत तेजी से बढ़ा है।
‘स्वयंप्रभा’ बत्तीस राष्ट्रीय चैनलों के माध्यम से शैक्षणिक ई-सामग्री का प्रसारण करने वाला एक कार्यक्रम है और ‘ई-पाठशाला’ भी इसी से जुड़ा एक महत्त्वपूर्ण मंच है। नेशनल डिजिटल लाइब्रेरी में पैंसठ लाख से अधिक पुस्तकें उपलब्ध हैं। यह अंग्रेजी समेत तमाम भारतीय भाषाओं की पुस्तकों तक निशुल्क पहुंच प्रदान करती है। कोविड-19 के समय ई-शिक्षा कारोबार को भी बढ़ावा मिला। ‘आडिट ऐंड मार्केटिंग’ की शीर्ष एजेंसी केपीएमजी और गूगल की ‘भारत में आनलाइन शिक्षा 2021’ शीर्षक से जारी रिपोर्ट में 2016 से 2021 के बीच ई-शिक्षा का कारोबार आठ गुना बढ़ने की बात कही गई थी।
गौरतलब है कि 2016 में ई-शिक्षा कारोबार महज पच्चीस करोड़ डालर का था, जबकि 2021 में यह दो अरब डालर तक पहुंच गया। जाहिर है, डिजिटल अवसंरचना के बगैर यह आंकड़ा संभव नहीं था। इस दिशा में उत्तरोत्तर वृद्धि जारी है। अब तो डिजिटल विश्वविद्यालय भी तेजी से बढ़ रहे हैं। हालांकि जब तक देश में बुनियादी समस्याएं व्याप्त रहेंगी, डिजिटल अवसंरचना के बावजूद आम आदमी में बड़ा सुधार संभव नहीं होगा।
ताजा आंकड़े बताते हैं कि भारत वैश्विक भूख सूचकांक में 107वें स्थान पर है। उन्नीस करोड़ लोग भुखमरी के कगार पर और सत्ताईस करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार हर चौथा व्यक्ति अशिक्षित है। बेरोजगारी और महंगाई का लगातार बढ़ते रहना इस बात का सूचक है कि आम आदमी को डिजिटल अवसंरचना और ई-गवर्नेंस समेत सुशासन का व्यापक लाभ नहीं मिल पा रहा है।
भारत में 2006 में राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना का अनावरण किया गया था। इस नीति के अंतर्गत सेवाओं को वेब-सक्षम बनाया गया। डिजिटलीकरण की प्रक्रिया को तेज करने के लिए सार्वजनिक निजी भागीदारी पर जोर दिया गया। इसके बावजूद डिजिटल अवसंरचना के मार्ग में अनेक चुनौतियां अब भी व्याप्त हैं। विषम और दुर्गम क्षेत्रों में जनसंख्या के कम घनत्व और प्राकृतिक बाधाओं के चलते इंटरनेट का न पहुंच पाना डिजिटल सुविधा में रुकावट है।
ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी इंटरनेट तक सीमित पहुंच इसमें बड़ी बाधा है। भारत में ढाई लाख पंचायतें, साढ़े छह लाख गांव और लगभग सात सौ जिले हैं, जहां कोई न कोई स्थानीय समस्या बाधक है। कुशल कामगारों, इंजीनियरों और प्रबंधकों के आभाव में डिजिटल जुड़ाव को मजबूत ढांचा दे पाना पूरी तरह संभव नहीं है। साइबर सुरक्षा संबंधी चिंताएं भी बनी हुई हैं।
डिजिटल अवसंरचना के क्षेत्र में मानकीकरण का भी लगभग आभाव है। इसमें तकनीकी बदलाव की दरकार आए दिन बनी रहती है। गौरतलब है कि 10 फरवरी, 2023 को भारत के साथ दक्षिण एशियाई देशों के समूह आसियान की डिजिटल मंत्रियों की तीसरी बैठक का आयोजन हुआ था। उसमें साइबर सुरक्षा में कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग तथा अगली पीढ़ी की स्मार्ट सिटी और ‘सोसायटी 5.0’ में ‘इंटरनेट आफ थिंग्स’ के प्रयोग को बढ़ावा देने की बात निहित थी।
सुशासन, ई-शासन और डिजिटलीकरण का ताना-बाना एक समूची व्यवस्था का परिचायक है। भारत को हाईस्पीड ब्राडबैंड के निर्माण पर ताकत लगाने के साथ-साथ डिजिटल अवसंरचना को सशक्त करने की आवश्यकता है। रोचक यह भी है कि 2018 में भारत में साफ्टवेयर निर्माण करने वाले लोगों की संख्या अमेरिका से अधिक थी। तकनीक, संसाधन और धन के अभाव में भारत का युवा सक्षम उद्यमशीलता को हासिल कर पाने में कठिनाई महसूस कर रहा है। अगर इन्हें आधारभूत संरचना उपलब्ध कराई जाए, तो डिजिटल अवसंरचना को बड़ी ताकत में बदला जा सकता है और आत्मनिर्भर भारत की अवधारणा को बल मिल सकता है।
इंटरनेट की गति, नेटवर्क की सुरक्षा और कौशल से ही डिजिटल अवसंरचना को बड़ा किया जा सकता है, जिसके चलते ई-गवर्नेंस को भी व्यापक स्वरूप मिलेगा। सरकार का काम आसान होगा, जनता का हित सुनिश्चित करना संभव होगा, साथ ही भ्रष्टाचार, जो विकास की जड़ में मट्ठा डालने का काम कर रहा है, उससे भी उबरने का मौका मिलेगा। मगर यह सब बिना जनता को मजबूत किए, संभव नहीं होगा। पहले समावेशी ढांचे को फौलादी बनाया जाए, तब कहीं डिजिटल ढांचा बुलंदी को प्राप्त करेगा और बिना बुलंद डिजिटल ढांचे के प्रतिस्पर्धा से भरे विश्व में स्वयं को प्रथम बनाए रखना संभव नहीं होगा।