ब्रह्मदीप अलूने

भारत की तरफ से दूसरे देशों को दी जाने वाली आर्थिक सहायता का सबसे बड़ा लाभ इस पड़ोसी देश को मिलता है। हालांकि चीनी प्रभाव से अब स्थितियां बदल रही हैं। भूटान की युवा पीढ़ी भारत और चीन से समान संबंध रखना चाहती है और वह इन दोनों देशों के विवादों से दूरी बनाए रखने की पक्षधर है।

भूटान के प्रधानमंत्री लोटे शेरिंग और नरेश जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक के बीच भारत और चीन से संबंधों को लेकर उभरे कूटनीतिक मतभेद हैरान और परेशान करने वाले हैं। दरअसल, भूटान के प्रधानमंत्री ने विस्तारवादी चीन के अतिक्रमण और सुरक्षा खतरों को काल्पनिक बताकर नजरअंदाज करने की कोशिश की है। वहीं भूटान नरेश नामग्याल वांगचुक ने भारत के साथ परंपरागत संबंधों को उच्च स्थान पर रखते हुए दोनों देशों के साझा राष्ट्रीय सुरक्षा हितों पर पांच सूत्रीय व्यापक खाके पर आगे बढ़ने पर सहमति जताई है।

भारत और तिब्बत के बीच बसे भूटान को भारत की सामरिक सुरक्षा के लिए बेहद अहम माना जाता है। देश के पूर्वोत्तर राज्यों को चीनी खतरे से दूर रखने के लिए सिलीगुड़ी गलियारे का बड़ा महत्त्व है। भूटान की भौगोलिक स्थिति उसे सुरक्षा कवच प्रदान करती है। यही कारण है कि भारत भूटान से रिश्ते के दायित्व को बेहद जिम्मेदारी से निभाता रहा है।

आजादी के कुछ वर्षों बाद ही 1949 में जवाहरलाल नेहरू और किंग जिग्मे वांगचुक ने भारत और भूटान के मध्य मैत्री संधि पर हस्ताक्षर किए थे, जिसके अनुसार भूटान की सुरक्षा और विदेश नीति का संचालन भारत के हाथों में रहा। इस वजह से भूटान और चीन के बीच कभी राजनयिक संबंध नहीं रहे। मगर पिछले कुछ वर्षों में स्थितियां बदली हैं और अब भूटान की युवा पीढ़ी भारत पर निर्भरता को कम करने की बात कहने लगी है।

कुछ दिनों पहले भूटान के प्रधानमंत्री लोटे शेरिंग ने एक साक्षात्कार में भूटान की सीमा पर चीनी अतिक्रमण के तथ्यों को खारिज करते हुए कहा था कि डोकलाम एक अंतरराष्ट्रीय सीमा है और भूटान की जमीन पर कोई चीनी निर्माण नहीं हुआ है। लोटे शेरिंग के इस बयान को भारत के लिए अप्रत्याशित माना गया, क्योंकि 2017 में भारत और चीन के बीच डोकलाम को लेकर सैन्य तनातनी हुई थी। तब भूटान ने डोकलाम में चीन की ओर से सीमा पर अवैध निर्माण की शिकायत की थी। यह क्षेत्र भारत, चीन और भूटान के त्रिकोण पर स्थित है। चीन यहां नए निर्माण की कोशिश कर रहा था, जिसे भारतीय सेना ने रोक दिया।

भारत और चीन के बीच के दो अहम दर्रे- नाथू-ला और जेलप-ला- यहां खुलते हैं। इसके पतले आकार और संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए ही इस गलियारे को भारत का ‘चिकन्स नेक’ कहते हैं। पश्चिम बंगाल में स्थित यह गलियारा भारत की मुख्यभूमि को उसके पूर्वोत्तर राज्यों से जोड़ता है। भारत ने यहां सड़क निर्माण पर आपत्ति जताते हुए कहा था कि यहां सड़क बनाने की योजना चीन की भारत को घेरने की सामरिक रणनीति का हिस्सा है। भारत को चिंता है कि इस सड़क का काम पूरा हो गया तो देश के पूर्वोत्तर राज्यों को देश से जोड़ने वाले बीस किलोमीटर चौड़े इस इलाके पर चीन की पहुंच बढ़ जाएगी।

भारत तीन दिशाओं- दक्षिण, पश्चिम और पूर्व- में भूटान के लिए सीमा बनाता है, जबकि उत्तर में भूटान की सीमाएं चीन से लगी हुई हैं। सुरक्षा की दृष्टि से अपने भू-रणनीतिक स्थान के कारण भूटान भारत के लिए बेहद अहम है। भारत भूटान को बड़े पैमाने पर आर्थिक, सैनिक और तकनीकी मदद मुहैया कराता है। भारत की तरफ से दूसरे देशों को दी जाने वाली आर्थिक सहायता का सबसे बड़ा लाभ इस पड़ोसी देश को मिलता है।

भूटान में सैकड़ों भारतीय सैनिक तैनात हैं और वे भूटानी सैनिकों को प्रशिक्षण भी देते हैं। हालांकि चीनी प्रभाव से अब स्थितियां बदल रही हैं। भूटान की युवा पीढ़ी भारत और चीन से समान संबंध रखना चाहती है और वह इन दोनों देशों के विवादों से दूरी बनाए रखने की पक्षधर है।

2021 में भूटान और चीन ने एक ‘थ्री स्टेप रोडमैप’ समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। उस पर चीन ने दावा किया था कि सीमा निर्धारण को लेकर बातचीत की रफ्तार तेज करने और दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संबंध बनाने में अर्थपूर्ण भागीदारी आगे बढ़ेगी। वहीं भूटान ने भी दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने की और प्रतिबद्धता जताई थी।

चीन के भूटान से विवाद समाप्त करने की इन कोशिशों को भारत के लिए एकतरफा और नई सुरक्षा चुनौती समझा गया। यह भी दिलचस्प है कि माओ की नीति के अनुसार संपूर्ण भूटान चीन का भाग समझा जाता है। वहीं चीन के आक्रामक इरादों को भांपते हुए भारत ने भूटान की सुरक्षा कर यह सुनिश्चित किया हुआ है कि चीन किसी भी तरह इस देश पर कब्जा न जमा सके। इन सबके बाद भी भूटान चीन से जो समझौते कर रहा है, वह भारत और भूटान दोनों के लिए संकट बढ़ाने वाले हैं।

चीन डोकलाम यानी भारत-चीन-भूटान त्रिकोण के पास 269 वर्ग किलोमीटर का इलाका लेकर बदले में भूटान के उत्तर में 495 वर्ग किलोमीटर का जकारलुंग और पासमलुंग घाटियों के इलाके से अपना दावा छोड़ना चाहता है। चीन जो इलाका भूटान से मांग रहा है, वह भारत के सिलीगुड़ी गलियारे के करीब है।

सिलीगुड़ी गलियारे, जिसे ‘चिकन्स नेक’ भी कहा जाता है, भारत के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। वह उसे पूर्वोत्तर राज्यों तक पहुंचने के लिए सुरक्षित रास्ता देता है। अगर चीन सिलीगुड़ी गलियारे तक पहुंचने में कामयाब हो जाएगा, तो भारत की पूर्वोत्तर की सीमा पर सुरक्षा संकट गहरा सकता है। चीन इसके बाद चुंबी घाटी तक रेल लाइन बिछा सकता है।

भूटान को चीन के प्रभाव से बचाए रखने के लिए भारत ने कोई कमी नहीं रखी है। भूटान को मिलने वाली विदेशी सहायता में सबसे बड़ा योगदान भारत का होता है। भारत उसका सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार भी है। भूटान भारत के सहयोग और निवेश से बिजली पैदा करता और उसे भारत को बेचता है।

यह तथ्य भी सामने आया है कि चीन ने भूटान में उत्तरी, पश्चिमी और उत्तर-पूर्वी सीमा के भीतर अपने गांव बसा लिए हैं। 2020 में वैश्विक पर्यावरण सुविधाओं पर आधारित एक बैठक में चीन ने यह दावा करके सबको अचरज में डाल दिया था कि पूर्वी भूटान में स्थित सकतेंग वन्यजीव अभयारण्य को किसी अंतरराष्ट्रीय परियोजना में इसलिए शामिल नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह चीन और भूटान के बीच एक विवादित क्षेत्र है। चीन ने भूटान के जिस क्षेत्र पर दावा किया था वह इलाका भूटान की पूर्वी सीमा पर स्थित अरुणाचल प्रदेश के तवांग जिले को छूता है।

चीन अरुणाचल प्रदेश को अवैधानिक रूप से दक्षिणी तिब्बत बताता रहा है। भूटान में चीन से निपटने का बिल्कुल सामर्थ्य नहीं है। भूटान का एक तबका चीन से राजनयिक संबंध बढ़ाने की बात कहता और यह आरोप लगाता है कि भारत उनके देश में अनुचित तरीके से प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर रहा है। दक्षिण एशिया में भूटान एकमात्र ऐसा देश है जिसका चीन के साथ कोई कूटनीतिक संबंध नहीं है। कभी भारतीय नागरिकों के लिए भूटान जाना अपने ही घर में जाने जैसा होता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है।

हाल ही में भारत यात्रा के दौरान भूटान नरेश ने भारत-भूटान सीमा पर पहली एकीकृत जांच चौकी स्थापित करने के साथ पेट्रोलियम, उर्वरक और कोयला के क्षेत्र में द्विपक्षीय साझा व्यापार बढ़ाने की दिशा में आगे बढ़ने के संकेत दिए हैं। भूटान नरेश के भारत से संबंध मित्रवत ही रहे हैं और अभी तक यह भारत के लिए बहुपयोगी भी रहा है। मगर लोकतांत्रिक सरकार आने के बाद भूटान की राजनीतिक परिस्थितियों में तेजी से बदलाव आ रहे हैं। जाहिर है, दक्षिण एशिया का एक और पड़ोसी देश भारत की सामरिक चुनौतियों को बढ़ा रहा है।