अतुल कनक

छोटी नदियों की दुर्दशा के कारण बड़ी नदियों के जलप्रवाह में भी कमी आई है। राष्ट्रीय शोध संस्थान, नागपुर ने कुछ दिनों पहले अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि गंगा, यमुना, नर्मदा, गोदावरी और कावेरी सहित देश की चौदह प्रमुख नदियों में देश का कुल पचासी प्रतिशत जल प्रवाहित होता है। ये सभी नदियां इतनी प्रदूषित हो चुकी हैं कि देश की छियासठ फीसद बीमारियों का कारण बन रही हैं।

दक्षिण-पूर्वी राजस्थान के बूंदी जिले में एक छोटा-सा गांव है- सथूर। इस गांव में बरसों से किसी नदी का अस्तित्व लोगों ने नहीं देखा था। पिछले दिनों कोटा के कुछ बुद्धिजीवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने पुराविदों की सहायता से इस गांव में एक छोटी नदी के प्रवाह मार्ग का पता लगाया। चंद्रभागा नामक यह नदी गांव के आसपास एक नाले के रूप में बहती है। दशकों से जो स्थानीय जन इसे नाला मानते आ रहे थे, वे यह जान कर रोमांचित हैं कि यह नाला दरअसल, एक प्राचीन नदी का अवशेष है। अब सथूर की इस नदी का वैभव लौटाने की कोशिशें शुरू हो गई हैं।

यह देश की ऐसी अकेली नदी नहीं है, जो सतत उपेक्षा के कारण गंदे नाले में तब्दील हो गई। जयपुर के अमानीशाह नाले का प्रकरण तो देशभर में चर्चित हुआ था। जब भी जयपुर शहर के आसपास ज्यादा बारिश होती थी, यह नाला उफान पर आ जाता था और आसपास की बस्तियों में बाढ़ जैसे हालात हो जाते थे। बाद में पुराविदों ने बताया कि दरअसल, यह नाला एक प्राचीन नदी ‘द्रव्यवती’ का प्रवाह मार्ग है। उपेक्षा और लोगों की लापरवाही ने एक पूरी नदी को नाला बना दिया था। नदी के पेटे में अतिक्रमण हो गए थे। कुछ सालों पहले इस नदी के पुनरोद्धार का संकल्प सरकार ने लिया। इसमें फिर से जीवन लौटा और आज द्रव्यवती नदी का तट जयपुर शहर के प्रमुख आकर्षणों में एक है।

भारतीय जीवन में नदियों की बहुत महत्ता रही है। इसीलिए नदियों को मां कह कर पुकारा गया। यह उस दौर की बात है, जब दिन की शुरुआत ही नदियों के तट से होती थी। नदी किनारे स्नान और ध्यान घाटों की रौनक बनाए रखते थे। मगर जब इंसान की जरूरत का जल नलों के जरिए घरों तक पहुंच गया, तो नदियां ही क्या, कुंए, झील, तालाब, जोहड़- सब अपना महत्त्व खोने लगे। चूंकि नदियों के जल के उपयोग से पुण्य और सुखों की प्राप्ति की मान्यता जुड़ी हुई है, इसलिए इंसान नदियों से जुड़े अनुष्ठानों के प्रति तो जागरूक रहा, लेकिन नदियों के प्रवाह की शुचिता बनाए रखने की जिम्मेदारी से उसने मुंह मोड़ लिया। धीरे-धीरे नदियां दुर्दशा का शिकार होने लगीं।

महाभारत में एक स्थान पर लिखा है- ‘अति परिचयाद् अवज्ञा भवति।’ अत्यधिक घनिष्ठता कई बार उपेक्षा का कारण बनती है। नदियों के साथ भी यही हुआ। जब तक इंसानों को नदियों की जरूरत थी, वह उन्हें सच्चे मन से पूजता रहा। जब उसकी जरूरत पूरी हो गई, तो उसकी पूजा पाखंड में परिवर्तित हो गई। छोटी नदियों को इस उपेक्षा ने बहुत सताया। चूंकि उनका प्रवाह क्षेत्र कम था, इसलिए उपेक्षा ने उन्हें नालों में बदल दिया।

कई जगह तो नदियों के पेटे में हुए अतिक्रमण ने नदियों के अस्तित्व को पूरी तरह समाप्त कर दिया। मुंबई की मीठी, दहिसार, ओशिवारा और पईसर नदियों की मौजूदा हालत बताती है कि जमीन के लिए इंसान की अनियंत्रित लालसा ने नदियों का क्या हाल कर दिया है। कुछ साल पहले जब चेन्नई में बाढ़ आई, तो मालूम हुआ कि वहां की कोऊम, अडयार और कोर्तलाईयार नदियों के प्रवाह के रास्ते में बस्तियां बस जाने के कारण बरसात का पानी बस्तियों में जा घुसा था।

यह किसी एक नगर की कहानी नहीं है। सारे देश में छोटी नदियां अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रही हैं। पुराणों के अनुसार राजा दुष्यंत और शकुंतला का मिलन कण्व ऋषि के जिस आश्रम में हुआ था, उसके साथ एक नदी भी बहती थी। कोचिंग के लिए देश भर में प्रसिद्ध कोटा शहर में एक ऐतिहासिक स्थल है- कंसुआ। कहते हैं, यहीं महर्षि कण्व का आश्रम था। मगर कंसुआ में उस ‘मालिनी’ नदी का नामोनिशान नहीं मिलता।

हां, प्राचीन मंदिर की छत पर चढ़ कर देखें तो एक नदी के प्रवाह के रास्ते के निशान साफ मिलते हैं, जो अब एक गंदे औद्योगिक नाले का प्रवाह मार्ग है। सत्तर के दशक तक बारिश के दिनों में इस जगह का दृश्य बहुत रमणीक हो जाया करता था। स्पष्ट है कि यह कभी किसी बरसाती नदी का प्रवाह मार्ग रहा होगा।

उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले में करीब आधा दर्जन छोटी नदियों का अस्तित्व संकट में है। इनमें गोमती की सहायक नदियों- तिलोदकी, तमसा, मड़हा, बिसुही और कल्याणी के नाम भी शामिल हैं। तमसा और कल्याणी नदी को तो पौराणिक महत्त्व का माना जाता है। सहारनपुर की पांवधोयी नदी भी गंदे नाले में बदल गई थी, लेकिन उसे लोगों की जागरूकता ने बुरी हालत से मुक्त कराने में कुछ हद तक सफलता पाई है।

पर काली हिंडन, मनसियता और गुंता जैसी नदियां अपने उद्वार की प्रतीक्षा कर रही हैं। उत्तराखंड के कुमांऊ मंडल में स्वाल नदी अपना अस्तित्व खो रही है। बिहार के कटिहार से गुजरने वाली भसना, चापी, कमला और पलटनिया नदियां गर्मी की शुरुआत के साथ ही हांफ गर्इं। सतपुड़ा की दूधी, मछवासा, आंजन, ओल, पलकमती और कोरनी नदियों के हाल भी अच्छे नहीं हैं। मध्यप्रदेश की दूधी नदी को तो कुछ समय पहले तक बारहमासी नदी माना जाता था, लेकिन अब इसका जलस्तर बहुत नीचे जा चुका है। देश की ऐसी अनेक छोटी नदियां समय के थपेड़ों से हार चुकी हैं।

छोटी नदियों की दुर्दशा के कारण बड़ी नदियों के जलप्रवाह में भी कमी आई है। राष्ट्रीय शोध संस्थान, नागपुर ने कुछ दिनों पहले अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि गंगा, यमुना, नर्मदा, गोदावरी और कावेरी सहित देश की चौदह प्रमुख नदियों में देश का कुल पचासी प्रतिशत जल प्रवाहित होता है। ये सभी नदियां इतनी प्रदूषित हो चुकी हैं कि देश की छियासठ फीसद बीमारियों का कारण बन रही हैं। यों देश में 223 नदियों के बारे में पाया गया है कि आप उनमें न तो स्नान कर सकते हैं और न ही उनका जल पीने योग्य है।

यह स्थिति डराती है। खासकर तब, जब विशेषज्ञों का मानना है कि 2030 तक दुनिया में पानी की मांग कुल आपूर्ति से ज्यादा हो जाएगी। इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि हमने नदियों के प्रवाह को बाधित किया है, उनके प्रवाह मार्ग में अवरोध पैदा किए हैं और उनमें अपनी आत्मा का सर्वस्व उड़ेलने वाली छोटी नदियों की परवाह ही नहीं की। नदियों के तटों पर अतिक्रमण कर हम विकास का नारा बुलंद कर रहे हैं।

नदियां दुखी न हों तो क्या करें? ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, नीदरलैंड सहित यूरोप के विविध देशों में शायद इसीलिए नदियों के तटबंध तोड़े जा रहे हैं कि नदियों को उद्दाम प्रवाह की आजादी मिल सके। इस प्रसंग में छोटी नदियों को पुनर्जीवित करना बहुत जरूरी है, क्योंकि छोटी नदियां न केवल किसी क्षेत्र विशेष की जल संबंधी जरूरतों को पूरी करती हैं, बल्कि अनेक छोटी नदियां मिलकर किसी बड़ी नदी को अपने समर्पण से समृद्ध भी करती हैं।

छोटी नदियों को बचाने के लिए संसाधनों से अधिक संकल्प की आवश्यकता है। पंजाब की सात किलोमीटर लंबी कालीबेई नदी नदी के किनारे कभी गुरु नानक देव ने दिन बिताए थे, लेकिन उपेक्षा ने इस नदी को एक गंदे नाले में तब्दील कर दिया। संत बलवीर सिंह सिचेवाल ने इस ऐतिहासिक महत्त्व की नदी के उद्धार का संकल्प लिया। उनकी लगन देखकर लोग जुड़ते गए और आज कालीबेई नदी फिर अपने संपूर्ण सौंदर्य के साथ बह रही है। छोटी नदियों के प्रति संवेदनशील होना ही होगा, वरना आने वाले दिन समूचे समाज के लिए सचमुच बहुत कठिन होंगे।