सत्येंद्र किशोर मिश्र

स्वतंत्रता के बाद से लघु, सूक्ष्म और मझोले उद्योग एक लंबा सफर तय कर चुके हैं, पर भारत के औद्योगीकरण में एमएसएमई का योगदान कभी एक-सा नहीं रहा है। शुरुआती दशकों में एमएसएमई क्षेत्र की उच्च रोजगार क्षमता को देखते-समझते हुए भी, उनकी भूमिका को सही ढंग से पहचाना नहीं जा सका। जबकि एमएसएमई क्षेत्र के विकास के लिए तेज और विशेष प्रयास की जरूरत थी। नए भारत में आत्मनिर्भर भारत की बुनियाद एमएसएमई क्षेत्र ही बन सकता है।

आजादी के समय भारतीय अर्थव्यवस्था गरीबी, बेरोजगारी, प्रतिव्यक्ति निम्न आय, निरक्षरता और औद्योगिक पिछड़ेपन की जकड़ में थी। यह स्वीकृत तथ्य है कि औद्योगीकरण के जरिए आर्थिक विकास की मजबूत बुनियाद पर बेहतर सामाजिक-आर्थिक लक्ष्य हासिल किए जा सकते हैं। दो हजार वर्षों से अधिक का भारतवर्ष का गौरवशाली आर्थिक संपन्नता का इतिहास दरअसल, लघु उद्योगों के रूप में उद्यमिता, हस्तशिल्प और कौशल की परंपरा ही थी।

भारत में नियोजन के शुरुआती दौर में लघु उद्योगों को नजरंदाज कर, बड़े उद्योगों के जरिए औद्योगिक विकास की कोशिशें हुर्इं, तो उसके अच्छे नतीजे भी दिखे। बाद में उदारीकरण तथा वैश्वीकरण के कारण बाजारवाद, निजीकरण और प्रतिस्पर्धी माहौल भी सामने आया। बड़े और भारी उद्यागों की सीमाएं भी दिखीं। गरीबी, बेरोजगारी और मुद्रास्फीति के मामलों में विफल साबित हुए।

अनुकूल पूंजी-उत्पाद अनुपात तथा रोजगार की ऊंची संभावनाएं लघु उद्योगों की महत्त्वपूर्ण विशेषता है। शायद बहुत देर से औद्योगिक विकास में लघु उद्योगों की भूमिका को पहचानते हुए, इसके विकास की कोशिशें हुर्इं। समझना होगा कि ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ की संकल्पना में इसे रफ्तार देने की जरूरत है।

लघु उद्योग, आर्थिक विकेंद्रीकरण कर आय तथा संपत्ति की असमानताओं के साथ-साथ भौगोलिक असंतुलन को कम करते हैं। उपभोक्ताओं को विविधता और विकल्प उपलब्ध कराते हैं। स्थानीय ज्ञान और कौशल, कलात्मकता का कम पूंजी के साथ उपयोग करते हैं, साथ ही बड़े उद्योगों के सहायक उद्यम का भी कार्य करते हैं। भारत में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों यानी एमएसएमई को ‘विकास का इंजन’ और ‘अर्थव्यवस्था का पावरहाउस’ जैसे विशेषणों से नवाजा जाता है।

समावेशी विकास में शायद सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका एमएसएमई क्षेत्र की हो सकती है। आज भारत में सवा छह करोड़ से अधिक एमएसएमई इकाइयों में ग्यारह करोड़ से अधिक लोगों को रोजगार प्राप्त है। एमएसएमई की जीडीपी में तीस फीसद तथा निर्यात में अड़तालीस फीसद से अधिक योगदान के साथ आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका है। एमएसएमई कुल औद्योगिक इकाइयों में पंचानबे फीसद से अधिक हिस्से के साथ भारत की सामाजिक-आर्थिक प्रगति की बुनियाद है।

भारतीय अर्थव्यवस्था में एमएसएमई क्षेत्र की लगभग 6.34 करोड़ इकाइयों में से विनिर्माण क्षेत्र की इकाइयों का जीडीपी में 6.11 फीसद, सेवा क्षेत्र की इकाइयों का जीडीपी में 24.63 फीसद तथा सकल विनिर्माण उत्पादन में 33.4 फीसद योगदान है। एमएसएमई क्षेत्र ग्यारह करोड़ से अधिक लोगों को रोजगार प्रदान करने के साथ भारत के कुल निर्यात में लगभग अड़तालीस फीसद योगदान करता है।

लगभग इक्यावन फीसद एमएसएमई इकाइयां ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित हैं, जिनमें बड़ी संख्या में ग्रामीण कार्यबल को संयोजित होने का अवसर उपलब्ध होता है। कुल एमएमएमई उद्यमों में निन्यानबे फीसद से अधिक सूक्ष्म उद्यम हैं। समावेशी विकास को बढ़ावा देने के साथ-साथ बड़े पैमाने पर ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजन में इनकी विशेष भूमिका है। भारत में विशाल असंगठित कार्यबल को देखते हुए रोजगार की दृष्टि से एमएमएमई क्षेत्र की जिम्मेदारी बढ़ जाती है।

मगर पिछले कुछ वर्षों से एमएसएमई क्षेत्र लगातार अनेक प्रकार की गंभीर समस्याएं झेल रहा है। एशियाई विकास बैंक के अनुसार कोरोना महामारी के दौरान इस क्षेत्र में रोजगार तथा विक्रय राजस्व में काफी गिरावट आई। कच्चे माल की लागतों में तीस से पचास फीसद की बढ़ोतरी दर्ज की गई, जबकि यह क्षेत्र महामारी से पूर्व के स्तर तक पहुंचने को अब भी प्रयासरत है।

अधिकांश एमएसएमई के पास लागतों में बढ़ोतरी की भरपाई करने के लिए पर्याप्त पूंजी नहीं है। बावजूद इसके, एमएसएमई क्षेत्र भारत के आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए औद्योगीकरण की ओर बढ़ रहा है। एमएसएमई क्षेत्र वैश्विक बाजार, डिजिटल कौशल विकास तथा किफायती उद्यम प्रौद्योगिकी के माध्यम से वैश्विक प्रतिस्पर्धी बाजार में खुद को स्थापित करने को तत्पर है।

एमएसएमई क्षेत्र का विकास भारतीय अर्थव्यवस्था की बुनियादी जरूरत है, जो इसे वैश्विक आर्थिक संकटों तथा प्रतिकूलताओं को झेलने में ताकत तथा जुझारूपन प्रदान करता है। देश भर में इक्यावन फीसद एमएसएमई इकाईयां ग्रामीण क्षेत्रों में हैं और बाकी उनचास फीसद नगरीय क्षेत्रों में स्थित हैं। यानी, लगभग सवा तीन करोड़ ग्रामीण क्षेत्रों में तथा शेष 3.09 करोड़ इकाइयां नगरीय क्षेत्र में स्थापित हैं।

सर्वाधिक 2.3 करोड़ एमएसएमई इकाइयां व्यापार में लगी हुई हैं। विनिर्माण क्षेत्र में लगभग 1.97 करोड़ एमएसएमई इकाइयां उत्पादक कार्यों के माध्यम से अर्थव्यवस्था के औद्योगिक विकास में योगदान कर रही हैं। इस क्षेत्र की अस्सी फीसद इकाइयां पुरुषों के स्वामित्व में हैं और इसके मात्र पांचवें हिस्से का स्वामित्व महिलाओं के पास है।

एमएसएमई इकाइयों में से लगभग आधे पर स्वामित्व ग्रामीण तथा नगरीय दोनों क्षेत्रों में अन्य पिछड़े वर्ग का है, जबकि अन्य के स्वामित्व में लगभग एक तिहाई है। अनुसूचित जाति के स्वामित्व में 12.45 फीसद तथा अनुसूचित जनजाति के स्वामित्व में मात्र 4.10 फीसद एमएसएमई इकाइयां हैं। सबसे खराब स्थिति अनुसूचित जनजाति की है, विशेषकर नगरीय क्षेत्र में मात्र 1.43 फीसद एमएसएमई इकाइयों का मालिकाना हक यानी उनका संचालन अनुसूचित जनजाति के हाथों में हैं।

एमएसएमई इकाइयों के बढ़ते आकार के साथ अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा ओबीसी का हिस्सा घटता हुआ है। मध्यम आकार की एमएसएमई इकाइयों में ओबीसी का स्वामित्व 23.85 फीसद, अनुसूचित जनजाति का 1.09 फीसद तथा अनुसूचित जनजाति का अमूमन शून्य है। सूक्ष्म तथा लघु एमएसएमई के जरिए औद्योगीकरण को बढ़ावा देकर न केवल असंगठित क्षेत्र में रोजगार की दशा और दिशा सुधारी जा सकती है, बल्कि सामाजिक-आर्थिक असमानता को भी कम किया जा सकता है।

राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण तथा एमएसएमई वार्षिक रिपोर्ट 2022-23 के आंकड़ों के अनुसार, एमएसएमई क्षेत्र में कुल 11.10 करोड़ रोजगार में से विनिर्माण में 3.6 करोड़, व्यापार में 3.88 करोड़ तथा अन्य क्षेत्रों में 3.62 करोड़ लोग रोजगार में लगे हैं। अनुमानत: 6.31 करोड़ सूक्ष्म उद्यमों में 10.8 करोड़ व्यक्ति कार्यरत हैं, जो उद्योग में कुल रोजगार का लगभग सत्तानबे फीसद है। एमएसएमई क्षेत्र की 3.31 लाख लघु तथा 0.05 लाख मध्यम आकार की इकाइयों में क्रमश: 32 लाख (2.88 फीसद) तथा 1.8 लाख (0.16 फीसद) लोगों को रोजगार प्राप्त है।

एमएसएमई क्षेत्र में नगरों में प्राप्त रोजगार की कुल संख्या 6.12 करोड़ है, जबकि ग्रामीण क्षेत्र में रोजगार की संख्या 4.98 करोड़ से अधिक है। एमएसएमई क्षेत्र में रोजगार का वितरण लिंगानुसार देखने पर पता चलता है कि तीन चौथाई से अधिक, 8.5 करोड़ पुरुषों को एमएसएमई क्षेत्र में रोजगार प्राप्त है, जबकि 2.7 करोड़ महिलाओं को, जो कि इस क्षेत्र में कुल श्रमबल के एक चौथाई से कम हैं। रोजगार में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की सख्त जरूरत है।

स्वतंत्रता के बाद से लघु, सूक्ष्म और मझोले उद्योग एक लंबा सफर तय कर चुके हैं, पर भारत के औद्योगीकरण में एमएसएमई का योगदान कभी एक-सा नहीं रहा है। शुरुआती दशकों में एमएसएमई क्षेत्र की उच्च रोजगार क्षमता को देखते-समझते हुए भी, उनकी भूमिका को सही ढंग से पहचाना नहीं जा सका। शायद भारतीय अर्थव्यवस्था में उनके महत्त्व को समझा ही नहीं जा सका।

जबकि एमएसएमई क्षेत्र के विकास के लिए तेज और विशेष प्रयास की जरूरत थी। नए भारत में आत्मनिर्भर भारत की बुनियाद एमएसएमई क्षेत्र ही बन सकता है। भारत के असंगठित क्षेत्र को सामाजिक-आर्थिक विकास का हिस्सा बनाने के लिए भी एमएसएमई क्षेत्र की भूमिका को आगे बढ़ाने की सख्त जरूरत है।