योगेश कुमार गोयल
विश्व बैंक की एक रपट में कहा गया है कि अच्छे वेतनमान और सुविधाओं के लोभ में आज भी विकासशील देशों से बड़ी संख्या में नर्सें विकसित देशों में नौकरी के लिए जाती हैं, जिससे विकासशील देशों को प्रशिक्षित नर्सों की गंभीर समस्या का सामना करना पड़ रहा है।
किसी भी राष्ट्र के नागरिकों की स्वास्थ्य रक्षा में नर्सों की भूमिका हमेशा से महत्त्वपूर्ण रही है, लेकिन कोरोना काल में इनका योगदान सबसे उल्लेखनीय रहा। इस बुरे दौर में नर्सें स्वयं संक्रमित होने के खतरे के बावजूद अपनी जान की परवाह किए बिना लोगों के इलाज और उनके प्राण बचाने में जुटी रहीं।
कोरोना काल में नर्सों की अहम भूमिका से इतर देखें तो सामान्य दिनों में भी जब पेशेवर डाक्टर दूसरे मरीजों को देखने में व्यस्त रहते हैं, तब अस्पतालों में भर्ती मरीजों की चौबीसों घंटे देखभाल का उत्तरदायित्व नर्सों पर ही रहता है। इसलिए उनसे उम्मीद की जाती है कि वे रोगियों का मनोबल बढ़ाने के साथ-साथ उनकी बीमारी को नियंत्रित करने में मित्रवत व्यवहार करें तथा उनके प्रति स्नेहशीलता का परिचय दें।
यही कारण है कि रोगियों की उचित देखभाल के लिए नर्सों का शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक स्तर पर शिक्षित, प्रशिक्षित तथा अनुभवी होना बहुत महत्त्वपूर्ण माना जाता है। नर्सिंग एक ऐसा कार्यक्षेत्र है, जिससे जुड़े लोग कभी बेरोजगार नहीं रहते। सरकारी और निजी अस्पतालों, सैन्य बलों, नर्सिंग होम, अनाथालयों, वृद्धाश्रमों तथा कुछ अन्य क्षेत्रों में ऐसे लोगों को रोजगार उपलब्ध हो ही जाता है। वैसे नर्सों का कार्य सिर्फ मरीजों की देखभाल तक सीमित नहीं होता, बल्कि योग्य नर्सों के लिए शैक्षिक, प्रशासनिक और शोध कार्यों से संबंधित अवसर भी उपलब्ध होते हैं।
दुनिया में अधिकांश देशों में प्रशिक्षित नर्सों की कमी है, लेकिन विकासशील देशों में यह कमी कुछ अधिक देखने को मिलती है। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अच्छे वेतनमान और सुविधाओं के लोभ में आज भी विकासशील देशों से बड़ी संख्या में नर्सें विकसित देशों में नौकरी के लिए जाती हैं, जिससे विकासशील देशों को प्रशिक्षित नर्सों की गंभीर समस्या का सामना करना पड़ रहा है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनियाभर में अमीर और गरीब दोनों प्रकार के देशों में नर्सों की कमी है। विकसित देश अपने यहां नर्सों की कमी को अन्य देशों से नर्सें बुलाकर पूरा कर लेते हैं और उनको वहां पर अच्छा वेतन और सुविधाएं देते हैं, जिससे नर्सें विकसित देशों में जाने में देर नहीं करतीं।
दूसरी ओर विकासशील देशों में नर्सों को अधिक वेतन और सुविधाओं की कमी रहती है और आगे का भविष्य भी अधिक उज्ज्वल नहीं दिखाई देता, जिससे वे विकसित देशों के बुलावे पर नौकरी के लिए चली जाती हैं। भारत में महानगरों तथा बड़े शहरों में चिकित्सा व्यवस्था कुछ ठीक होने के कारण इन इलाकों में नर्सों की संख्या में इतनी कमी नहीं है, जितनी कि छोटे शहरों और गांवों में है।
किसी भी देश में नर्सों की कमी उस देश की खराब चिकित्सा व्यवस्था को बताती है। नर्सों की कमी का सीधा प्रभाव नवजात शिशु और बाल मृत्यु दर पर भी पड़ता है। अच्छे वेतन और सुविधाओं के लिए पहले जितनी अधिक संख्या में प्रशिक्षित नर्सें विदेश जाती थीं, आज उसमें कुछ कमी आई है। दरअसल आज सरकारी अस्पतालों में नर्सों को अच्छा वेतन और अन्य सुविधाएं मिल रही हैं, जिससे उनकी स्थिति सुदृढ़ हुई है और यही कारण है कि भारत से प्रशिक्षित नर्सों का पलायन कुछ हद तक रुका है। हालांकि तस्वीर का एक पहलू यह भी है कि कुछ राज्यों तथा गैर-सरकारी क्षेत्रों में नर्सों की स्थिति आज भी संतोषजनक नहीं है, जहां उन्हें लंबे समय तक कार्य करना पड़ता है और फिर भी वे सुविधाएं उपलब्ध नहीं हो पातीं, जिनकी वे हकदार हैं।
भारत में विदेश के लिए नर्सों के पलायन में पहले की अपेक्षा कमी आने के बावजूद रोगियों की संख्या में लगातार वृद्धि होने के कारण रोगी और नर्स के अनुपात में अंतर बढ़ा है। कुछ समय पहले तक विदेश से शानदार पेशकश के चलते देश से बड़ी संख्या से नर्सिंग प्रतिभाओं का पलायन हुआ, जिसके चलते हमारे यहां नर्सिंग पेशेवरों की संख्या में काफी गिरावट दर्ज की गई।
मगर कुछ समय से भारतीय चिकित्सा परिषद द्वारा देश में नर्सिंग व्यवस्था को पुनर्जीवित करने और नर्सों की कमी के मामले में स्थिति में सुधार के लिए जो कदम उठाए जा रहे हैं, वे काबिले-तारीफ हैं। मगर अब भी यही देखने में आ रहा है कि चिकित्सकों, नर्सिंग कर्मियों और पैरामेडिकल स्टाफ की कमी को दूर करने के आधे-अधूरे प्रयास ही हो रहे हैं।
भारत में वर्तमान में प्रति एक हजार लोगों पर लगभग 1.7 प्रशिक्षित नर्सें ही हैं, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) द्वारा प्रति एक हजार लोगों पर चार नर्सों के मानदंड के विपरीत है। इस संबंध में इंडियन नर्सिंग काउंसिल (आइएनसी) का कहना है कि काम करने की खराब स्थिति और कम वेतन देश से नर्सों के पलायन का सबसे बड़ा कारण है। हालांकि विश्वभर में प्रशिक्षित नर्सों की मांग को देखते हुए भारत में भी युवाओं का इस पेशे की ओर रूझान बढ़ा है।
कुछ समय पहले तक नर्सिंग क्षेत्र पर महिलाओं का ही एकाधिकार माना जाता था, लेकिन अब पुरुष भी इस क्षेत्र में भागीदारी कर रहे हैं। नर्सिंग न केवल दुनिया भर में एक सम्मानजनक पेशा माना जाता है, बल्कि इसे दुनिया के सबसे बड़े स्वास्थ्य पेशे के रूप में भी जाना जाता है। यही कारण है कि सरकारों द्वारा भी नर्सिंग क्षेत्र को प्रोत्साहन देने के लिए कई महत्त्वपूर्ण योजनाएं क्रियान्वित की जा रही हैं और अब देश भर में ‘जनरल नर्सिंग मिडवाइफरी’ (जीएनएम) तथा ‘आग्जिलरी नर्सिंग मिडवाइफरी’ (एएनएम) कालेज खोले जाने की योजना है, ताकि देश में प्रशिक्षित नर्सों की कमी को पूरा किया जा सके।
इसी कड़ी में इस वर्ष पेश किए गए बजट में नए नर्सिंग कालेज सह-संस्थान स्थापित करने के लिए 570 करोड़ रुपए खर्च करने की घोषणा की गई है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक आगामी दो वर्षों में 157 नए नर्सिंग कालेजों की स्थापना की जानी है। फिलहाल भारत में कुल 5324 नर्सिंग संस्थान हैं, जो दो वर्षों के बाद बढ़ कर 5481 हो जाएंगे, जिससे प्रतिवर्ष स्नातक होने वाले छात्रों की संख्या में बढ़ोतरी के साथ स्वास्थ्य क्षेत्र में नर्सों की कमी भी कुछ हद तक पूरी होने की उम्मीद है।
माना कि 157 नए सरकारी नर्सिंग कालेज खुलने से बेरोजगार युवाओं को रोजगार के नए अवसर मिलेंगे और स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र के नर्सिंग स्टाफ में कुछ बढ़ोतरी होगी लेकिन डब्लूएचओ के मानदंडों के मुकाबले देश में नर्सों की संख्या पहले ही इतनी कम है कि उसकी पूर्ति इतने भर नर्सिंग कालेजों से हो पाना संभव नहीं है।
वास्तविकता यही है कि स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र की दशा और दिशा सुधारने के लिए सरकारों द्वारा कितनी ही बड़ी-बड़ी घोषणाएं की जाती रही हों, पर कोरोना संक्रमण के भयावह दौर में देश का स्वास्थ्य ढांचा किस प्रकार चरमराता दिखाई दिया था, वह सभी ने देखा। ऐसे में सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में अभी बहुत सुधार की जरूरत महसूस की जा रही है।
नर्सिंग स्टाफ किसी भी अस्पताल की रीढ़ माना जाता है, लेकिन आज भी खासकर बहुत सारे ग्रामीण अंचलों में स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच इतनी कमजोर है कि अस्पतालों में चिकित्सक तो दूर, नर्सिंग स्टाफ ही उपलब्ध नहीं होता। ऐसे में बेहद जरूरी है कि सबसे पहले सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि नए नर्सिंग कालेज खोलने की जो घोषणा की गई है, वे तय अवधि में शुरू भी हो जाएं। इसके अलावा अन्य स्वास्थ्य कर्मियों की कमी को दूर करने के भी ठोस प्रयास किए जाएं।