योगेश कुमार गोयल

हालांकि महामारी विज्ञान के अध्ययनों से यही निष्कर्ष सामने आता है कि कैंसर के 70-90 फीसद मामले पर्यावरण से जुड़े हैं, जिनमें कैंसर का कारण बनने वाले पर्यावरणीय जोखिमों में जीवनशैली सबसे महत्त्वपूर्ण कारक है, जिसमें सुधार करके कैंसर की सुनामी को रोका जा सकता है।

दुनिया भर में कैंसर के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। ‘ग्लोबल कैंसर आब्जर्वेटरी’ (ग्लोबोकान) के मुताबिक जनसांख्यिकीय परिवर्तनों के चलते विश्वभर में 2040 तक कैंसर के मामले प्रतिवर्ष 2.84 करोड़ तक पहुंच सकते हैं, जो 2020 के मुकाबले सैंतालीस फीसद ज्यादा होंगे। 2020 में दुनिया भर में कैंसर के करीब 1.93 करोड़ नए मामले आए थे और लगभग एक करोड़ लोगों की इससे मौत हुई थी। विभिन्न अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के अनुसार कैंसर मरीजों की संख्या वैश्वीकरण और बढ़ती अर्थव्यवस्था से जुड़े जोखिमों के चलते बढ़ सकती है।

भारत में कैंसर के बढ़ते मामले देश के स्वास्थ्य ढांचे के लिए गंभीर चुनौती बन रहे हैं। ‘वर्ल्ड कैंसर रिपोर्ट’ के मुताबिक भारत में 2018 में कैंसर के करीब 11.6 लाख मामले आए थे, जिनमें से 7,84,800 लोगों की मौत हो गई थी। विश्व स्वास्थ्य संगठन और उसके साथ कार्य करने वाली संस्था ‘इंटरनेशनल एजेंसी फार रिसर्च आन कैंसर’ भी भारत को लेकर कुछ चिंताजनक रिपोर्टें जारी कर चुकी है, जिनमें कहा गया है कि प्रत्येक दस भारतीय में से एक को कैंसर होने और प्रत्येक पंद्रह में से एक व्यक्ति की कैंसर से मौत होने की आशंका है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के अनुसार दुनिया के बीस फीसद कैंसर मरीज भारत में हैं। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) की ताजा रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में आगामी पांच वर्षों में कैंसर के मामले बारह फीसद तक बढ़ जाएंगे और 2025 तक कैंसर मरीजों की संख्या 15.69 लाख के पार हो जाएगी। पुरुषों में फेफड़ों, मुंह, पेट और श्वासनली में कैंसर सबसे आम है, जबकि महिलाओं में स्तन कैंसर के मामले तेजी से बढ़े हैं।

अमेरिका के जाने-माने कैंसर विशेषज्ञ डा जेम अब्राहम ने चेतावनी दी है कि आने वाले समय में भारत को कैंसर जैसी लंबे समय तक परेशान करने वाली बीमारियों की सुनामी का सामना करना पड़ सकता है। उनके मुताबिक वैश्वीकरण, बढ़ती अर्थव्यवस्था, बढ़ती आबादी और बदलती जीवनशैली के कारण भारत में कैंसर जैसी असाध्य बीमारियों के मामले बहुत तेजी से बढ़ेंगे।

हालांकि उनका कहना है कि कैंसर की रोकथाम और उपचार के लिए टीके, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, डेटा डिजिटल तकनीक का विस्तार, लिक्विड बायोप्सी से निदान, जीनोमिक प्रोफाइलिंग, जीन संपादन प्रौद्योगिकियों का विकास और अगली पीढ़ी के इम्युनोथैरेपी तथा सीएआरटी सेल थेरेपी का इस्तेमाल कैंसर के उपचार को नया रूप देंगे और डिजिटल तकनीक, सूचना प्रौद्योगिकी तथा टेली-हेल्थ से मरीजों और विशेषज्ञों के बीच की खाई कम होगी। पिछले कुछ वर्षों में कैंसर पर विभिन्न टीके तैयार किए गए हैं, फिलहाल इन पर परीक्षण हो रहे हैं, जिनके पहले चरण में सफलता मिली है।

केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्यमंत्री ने जुलाई 2022 में संसद में एक सवाल के जवाब में बताया था कि देश में 2018 में कैंसर मरीजों की संख्या 13,25,232 थी, जो 2019 में बढ़ कर 13,58,415 और 2020 में 13,92,179 तक पहुंच गई। 2018-2020 में दो वर्षों में कैंसर के मामलों में पांच फीसद यानी करीब 67 हजार की वृद्धि हुई। भारत में कैंसर के बढ़ते मामलों को लेकर दिसंबर 2022 में राज्यसभा में आधिकारिक आंकड़ों के हवाले से केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने बताया था कि देश में पिछले दो वर्षों के भीतर कैंसर से मौत के मामले बढ़े हैं। इससे अनुमानित मृत्यु दर 2020 में 7,70,230 थी, जो 2021 में बढ़ कर 7,89,202 और 2022 में 8,08,558 हो गई।

देश में कैंसर के मामलों में चालीस फीसद से ज्यादा मरीज फेफड़े, स्तन, अन्नप्रणाली यानी ईसोफेगस, मुंह, पेट, यकृत यानी लीवर और गर्भाशय ग्रीवा कैंसर से पीड़ित हैं, जिनमें फेफड़ों के कैंसर से 10.6 फीसद, स्तन कैंसर से 10.5, अन्नप्रणाली कैंसर से 5.8, मुंह के कैंसर से 5.7, पेट के कैंसर से 5.2, लीवर कैंसर से 4.6 और गर्भाशय ग्रीवा कैंसर से 4.3 फीसद लोग पीड़ित हैं। आइसीएमआर के मुताबिक कैंसर के मामले महिलाओं की तुलना में पुरुषों में ज्यादा देखे जा रहे हैं।

2021 में उत्तर भारत में प्रति एक लाख व्यक्ति पर 2408 और पूर्वोत्तर में प्रति एक लाख व्यक्ति पर 2177 कैंसर रोगियों के मामले सामने आए। मुंह, फेफड़े, पेट, कोलोरेक्टल, ग्रसनी, ग्रासनली आदि के कैंसर के अलावा अन्य कैंसर की दर भी भारतीय पुरुषों में प्रति एक लाख पर पांच या उससे ज्यादा मरीजों की है। महिलाओं में स्तन, गर्भाशय ग्रीवा तथा कोलोरेक्टल कैंसर के सर्वाधिक मामले सामने आते हैं और इनके अलावा अन्य प्रकार के कैंसर के मामले महिलाओं में प्रति एक लाख पर पांच से कम दर्ज किए गए हैं।

आइसीएमआर तथा नेशनल सेंटर फार डिजीज इन्फारमेटिक्स एंड रिसर्च (एनसीडीआईआर) द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार 2025 तक 7.6 लाख पुरुषों और 8.1 लाख महिलाओं को कैंसर हो सकता है। भारत में कैंसर के कुल मामलों का करीब 27 फीसद तंबाकू जनित होने की संभावना जताई गई है। इसके अलावा स्तन कैंसर के 2.4 लाख मामले सामने आने का अनुमान है, जबकि फेफड़ों के कैंसर के 1.1 लाख तथा मुंह के कैंसर के 90 हजार मामले सामने आ सकते हैं।

रिपोर्ट में 2020 में कैंसर के कुल मामलों में 27.1 फीसद (3.71 लाख) मामले तंबाकू से संबंधित कैंसर के, 14 फीसद (2 लाख) महिलाओं में सर्वाधिक होने वाले स्तन कैंसर के, 5.4 फीसद (75 हजार) मामले सर्विक्स कैंसर के और गैस्ट्रोइंटेस्टिनल ट्रैक्ट कैंसर (भोजन नली का कैंसर) के करीब 19.7 फीसद (2.7 लाख) मामले होने का अनुमान था। भोजन नली का कैंसर आगामी वर्षों में दूसरी तरह के कैंसर के मुकाबले ज्यादा लोगों को अपनी चपेट में लेगा।

देश के पूर्वोत्तर राज्यों में कैंसर के मामले सबसे ज्यादा सामने आ रहे हैं। उनमें तंबाकू से जुड़े कैंसर के मामले सर्वाधिक हैं और ये पुरुषों में ज्यादा हैं। भारत में कैंसर के सर्वाधिक मामले मिजोरम की राजधानी आइजल में सामने आए हैं, जहां पुरुषों की प्रति एक लाख आबादी पर 269.4 कैंसर मरीज हैं। वहीं महिलाओं में अरुणाचल प्रदेश के पपुम्परे जिले में प्रति लाख आबादी पर 219.8 मामले हैं। विभिन्न रिपोर्टों के अनुसार पुरुषों में होने वाले कैंसर के पचास फीसद मामले तंबाकू के कारण होते हैं, जबकि बीस से तीस फीसद मामले खानपान, प्रजनन और यौन व्यवहार आदि से जुड़े हैं।

हालांकि महामारी विज्ञान के अध्ययनों से यही निष्कर्ष सामने आता है कि कैंसर के 70-90 फीसद मामले पर्यावरण से जुड़े हैं, जिनमें कैंसर का कारण बनने वाले पर्यावरणीय जोखिमों में जीवनशैली सबसे महत्त्वपूर्ण कारक है, जिसमें सुधार करके कैंसर की सुनामी को रोका जा सकता है। जीवनशैली में आए बड़े बदलावों के कारण भी कैंसर के मामलों में बढ़ोतरी हो रही है।

दरअसल, आज के आधुनिक युग में लोग न केवल तेजी से शहरों की ओर रुख कर रहे हैं, बल्कि पुरानी पीढ़ियों की तुलना में उनके आहार और रहन-सहन में बड़ा बदलाव आ रहा है। जीवनशैली में आ रहे ऐसे बदलावों का असर शरीर पर धीरे-धीरे दिखता है और परिणाम कई बार कैंसर जैसी बीमारी के रूप में सामने आता है।

आज देश में कैंसर के बढ़ते मामलों के लिए गतिहीन जीवनशैली, जंक फूड, शराब तथा तंबाकू का सेवन और खराब वायु गुणवत्ता आदि कई कारण जिम्मेदार हैं, जो शरीर की कोशिकाओं की संरचना में बदलाव का कारण बनते हैं। बहरहाल, देश में कैंसर मरीजों की बढ़ती संख्या के मद्देनजर कैंसर विशेषज्ञों और चिकित्सकों का साफतौर पर यही कहना है कि अगर लोगों की आदतों और जीवनशैली में अपेक्षित बदलाव नहीं आया, तो आने वाले वर्षों में स्थितियां और बिगड़ेंगी।