यह मैं बड़े दुख और संताप में लिख रहा हूं, साथ ही निराशा के साथ, ऐसी निराशा जो घोर हताशा में बदल रही है। चूंकि मैंने इस लेख का विषय पठानकोट स्थित वायु सेना के ठिकाने पर हुए आतंकी हमले को बनाया है, मैंने निश्चय किया कि कागज पर उतारने से पहले और अंत में प्रकाशित होने के लिए देने से पहले मुझे हर शब्द और पद को अतिरिक्त सावधानी के साथ चुनना चाहिए।

सबसे पहले, मैं उन सात व्यक्तियों को सलाम करता हूं जिनकी जान इस आतंकी हमले ने ले ली। उनमें से पांच, सेना के सेवानिवृत्त जवान थे और फिर से ड्यूटी पर लगाए गए थे, और संभवत: अब उन्हें प्रशिक्षण या परेड में नहीं लगाया जाना था; उनमें से एक अति दक्ष होने के बावजूद अपनी जान गंवा बैठा, और एक की जिंदगी आतंकियों का मुकाबला करते हुए चली गई। मैं इन मौतों पर उनके परिवारों के साथ और करोड़ों देशवासियों के साथ शोकमग्न हूं।

मुकाबले के तीन स्तंभ
दूसरी बात यह कि मुझे इस बात का अफसोस है कि मई 2014 में यूपीए सरकार के हटने के बाद से, आंतरिक सुरक्षा से जुड़े कई काम अधूरे पड़े हैं। इनमें सबसे अहम है, राष्ट्रीय आतंकवाद निरोधक केंद्र (एनसीटीसी) का गठन। आतंकवाद से निपटने के मुख्य स्तंभ इस प्रकार हैं: (क) खुफिया सूचनाएं, (ख) विश्लेषण और (ग) एक कमान और नियंत्रण। पचास फीसद से अधिक सूचनाएं दरअसल कच्ची सूचनाएं होती हैं, वे व्यावहारिक तौर पर उपयोगी नहीं होतीं। सूचनाओं को जांच-परख कर खुफिया जानकारी में बदलना विश्लेषण के जरिए ही संभव होता है और यह विशेषज्ञता का काम है। आतंकवाद-विरोधी कार्रवाई की जटिल दुनिया में उच्च गुणवत्ता के विश्लेषण के लिए कई अनुशासनों की खूबियां को साथ लाने की दरकार होती है, जिसमें सीमा प्रहरी से लेकर कंप्यूटर तकनीक के धुरंधर, पुलिसकर्मी से लेकर रसायन विज्ञान या इंजीनियरिंग या मनोविज्ञान के प्रोफेसर और जासूस तथा वैज्ञानिक तक की दक्षताएं शामिल हैं। तीसरा स्तंभ है एक कमान और नियंत्रण का, जो आतंकवाद-विरोधी कार्रवाई का जिम्मा ले और उसे संचालित करे।

एनसीटीसी के मसले पर मैंने कई महीनों तक सोच-विचार किया था। हमने इस मामले में अनेक विशेषज्ञों को भी जोड़ा था। हमने आतंकवाद-निरोधक तंत्र के कई मॉडलों का अध्ययन किया। मैं इस बात का कायल था कि एनसीटीसी अपरिहार्य है, विशेषकर एक संघीय व्यवस्था में, जहां राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के चलते पुलिस प्रशासन के बहुतेरे ढांचे हैं। हमने खुफिया ब्यूरो के तहत हर राज्य में मल्टी एजेंसी सेंटर (एमएसी) के तौर पर इसकी शुरुआत पहले ही कर दी थी, और एनसीटीसी के गठन के लिए दो या तीन और साहसिक कदम उठाने की जरूरत थी। अफसोस की मेरी भावना के पीछे वजह यह है कि गृह मंत्रालय से इकतीस जुलाई 2012 को विदा होने से पहले मैं एनसीटीसी की अधिसूचना जारी कराने में कामयाब नहीं हो सका। यह एक लंबी कहानी है, जो फिर कभी। फिलहाल यह बताना काफी है कि अंध और अतार्किक विरोध ने एनसीटीसी की राह रोक दी।

एक बुनियादी फर्क
पिछले दस दिनों में बहुत कुछ कहा और लिखा गया है (हालांकि मैं स्वीकार करता हूं कि मैंने वह सारा कुछ सुना या पढ़ा नहीं है)। ऐसा लगता है कि इस सब में देश के सामने खड़े खतरे की प्रकृति में आए एक बुनियादी परिवर्तन को नजरअंदाज कर दिया गया है। भारत पर हुए सबसे भयावह आतंकवादी हमलों में से एक वह था जो 2008 में 26 नवंबर से 29 नवंबर के चार दिनों में हुआ। उसके बाद चार और बड़े आतंकवादी हमले हुए, तथा कई छोटे भी। बड़े हमले पुणे, मुंबई, दिल्ली और हैदराबाद में हुए। एक बुनियादी फर्क जो इन्हें अतीत में हुए बड़े हमलों से अलग करता था, वह यह था कि इनमें पाकिस्तान से तार जुड़े होने का कोई सबूत सामने नहीं आया। ये हमले भारत में ही जनमे और पले-बढ़े आतंकवादियों ने अंजाम दिए। जांच इंडियन मुजाहिदीन या सिमी, और दिल्ली में हुए हमले के मामले में एक कश्मीरी गुट की तरफ इशारा कर रही थी। इसी तरह, विभिन्न राज्यों में हुई आतंकवादी घटनाओं के सुराग भारतीय आतंकवादी गुटों की तरफ इंगित कर रहे थे।

वह बुनियादी फर्क 2015 से मिट गया है। लगता है, हम 2008 से पहले के दिनों में लौट आए हैं। पाकिस्तान एक राज्य के तौर पर या गैर-राज्य के तौर पर इन घटनाओं के पीछे है। पंजाब के गुरदासपुर जिले के दीनानगर (27 जुलाई, 2015), जम्मू-कश्मीर के ऊधमपुर (5 अगस्त, 2015) और पंजाब के पठानकोट (2 जनवरी, 2016) में हुए आतंकवादी हमलों और कुछ छोटी घटनाओं का इशारा साफ तौर पर पाकिस्तान की तरफ है।

तीसरे, पिछले साल के मध्य से बदली हुई स्थिति का सामना सरकार के आतंकवाद निरोधक तंत्र ने जिस ढंग से किया है, उससे मुझे निराशा हुई है। यह पक्का अनुमान है कि विदेश मंत्रालय, सेना और आंतरिक सुरक्षा प्रतिष्ठान ने स्थिति में आए बदलाव को न तो लक्षित किया है और न ही उसके बारे में आपस में बात की है।

पठानकोट में हुए आतंकी हमले से जिस ढंग से निपटा गया, उसे पूरे देश ने देखा है। मेरी निराशा घोर हताशा में बदली है। नई घटनाओं को पुराने अनुभवों के चश्मे से देखा जा रहा है। आतंकवाद से मुकाबले के लिए ‘एक कमान और नियंत्रण’ के कोई लक्षण नहीं दिख रहे। सेवानिवृत्त जवानों को फिर से काम पर लगाया जा रहा है, जो सशस्त्र चौकीदार से बेहतर नहीं हैं। वायु सेना के लिए सुरक्षा गारद एक बचाव दल है जो वायुसेना की परिसंपत्तियों की हिफाजत में लगा है। राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (एनएसजी) एक लक्ष्य-केंद्रित आतंकवाद-विरोधी बल है, न कि युद्ध के मैदान में लड़ने वाली इकाई। फिर भी, उन्हीं को सबसे पहले बुलाया गया। लड़ने के लिए तैयार और प्रशिक्षित आतंकवाद-विरोधी बल है सेना का विशेष बल। पर उसके निकट होते हुए भी वायुसेना के ठिकाने की रक्षा में उसे नहीं लगाया गया।

संस्थागत उपाय की जरूरत
गृहमंत्री क्या राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, गृह सचिव, आंतरिक सुरक्षा के विशेष सचिव और खुफिया ब्यूरो तथा रॉ के प्रमुखों से रोजाना मिलते हैं? लगता नहीं है। क्या एक जनवरी से ऐन पहले के दिनों में मल्टी-एजेंसी सेंटर (एमएसी) ने कोई सूचनाएं मुहैया करार्इं थीं? हम नहीं जानते। क्या आतंकवादियों से सुरक्षा बलों के भिड़ने के फौरन बाद सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति की बैठक हुई? इस पर कोई आधिकारिक जानकारी नहीं है। लेकिन यह मालूम है कि दो जनवरी के बाद गृहमंत्री ने कोई बैठक नहीं की।

लोगों की सुरक्षा का मामला व्यक्तियों पर नहीं छोड़ा जा सकता, भले वे कितने ही बुद्धिमान क्यों न हों। हमें एक संस्थागत व्यवस्था की जरूरत है, और आतंकवादी हमले से निपटने के लिए उस संस्थागत व्यवस्था का नेतृत्व निश्चय ही कुशाग्र व्यक्तियों के पास होना चाहिए।

एनसीटीसी के गठन की जरूरत क्यों है? पठानकोट के बाद किसी और आतंकवादी हमले का इंतजार न करें। एनसीटीसी की अधिसूचना के मसविदे को राज्यों की चिंताओं और आग्रहों के मद्देनजर संशोधित किया गया था। संशोधित मसविदे में इस बात की गुंजाइश छोड़ी गई थी कि अगर कोई राज्य एनसीटीसी का अंग बनने को इच्छुक न हो, तो वह बाद में इसमें शामिल हो सकता है (जैसा कि वैट के मामले में हुआ था)। संशोधित मसविदा गृह मंत्रालय के पास है। उसकी एक प्रति प्रधानमंत्री कार्यालय में भी है।

स्तब्ध और संशयग्रस्त राष्ट्र को फिर से हौसला बंधाने का सबसे अच्छा संदेश और हमारे दुश्मनों को चेतावनी देने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि हम आतंकवाद को एक गंभीर खतरे की तरह लेते हुए एनसीटीसी को अधिसूचित करने की तरफ बढ़ें।